हम चुप रहेंगे ( 21 फरवरी 2022)

पत्र …

निवेदन है कि हम लोगों को संगठन में काम करने में दिक्कत आ रही है। हमने कमंडल के पदाधिकारियों को हमारी समस्या बताई। लेकिन वह कहने लगे कि कमंडल के मुखिया का मामला है। इसलिए हम मदद नहीं कर सकते है। संगठन में ऊपर अवगत कराये। कमंडल के मुखिया और एक महिला पदाधिकारी का अफेयर चर्चा का विषय है। इस कारण हम महिलाओं को दूसरे कार्यकर्ता कमेंट करते है। महिला पदाधिकारी को समझाने की कोशिश करी। तो वह कहती है कि … भाई बनाकर खेलो… तो किसी को शक नहीं होता है। संगठन इस दिक्कत का निराकरण करे। यह पत्र हूबहू वहीं है, जो हमको मिला है। इसमें एक कमंडल में चल रहे प्रेम- प्रसंग का जिक्र है। इशारा उसी कमंडल की तरफ है। जो इन दिनों कमलप्रेमियों के बीच चर्चा का विषय है। मगर हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

किस्मत …

अपने शिवाजी भवन के अधिकारियों की किस्मत ही खराब है। तभी तो अच्छा-खासा सहभोज का निमंत्रण, अचानक निरस्त कर दिया गया। अपने पपेट जी ने स्नेह दिखाने के लिए यह कदम उठाया था। इंदौर रोड की चर्चित होटल को आर्डर भी दे दिया था। बंगले पर ही सहभोज होना था। 5 दर्जन अधिकारियों का। फिर अचानक ना जाने क्या हुआ। सहभोज निरस्त की सूचना आ गई। किसी की कुछ समझ नहीं आया। आखिर ऐसा क्यों हुआ। अब सभी को इंतजार है। भविष्य में निमंत्रण आयेंगा या नहीं? फिलहाल सभी चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

खाली …

ग्रांड होटल का विवादित आवास आवंटन तो हमारे पाठकों को तो याद होगा। आवास नियमों के विपरीत साझेदारी में बंगला आवंटित किया गया था। सीधी भाषा में बोला जाये तो कागजों पर किसी और का नाम था। मगर रहने वाले अपने फूलपेंटधारी थे। जिसको लेकर विवाद खड़ा हो गया था। अपने पपेट जी की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो रहे थे। अब अंदरखाने है कि अपने फूलपेंटधारी ने इस आवास को खाली कर दिया है और अपने नाम से आवंटित बंगले में शिफ्ट हो गये है। अब ऐसा क्यों हुआ…इसको लेकर तो हम अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहेंगे।

तब होता है …

अपना सोचा कब होता है/वह जब चाहे तब होता है। किसी शायर की यह गजल इन दिनों अपने उम्मीद जी पर सटीक बैठ रही है। मामला 11 लाख दीप पर्व से जुड़ा है। जिसको लेकर पहली बैठक जब हुई थी। जिसमें अपने विकास पुरूष भी शामिल थे। तब अपने उम्मीद जी ने साफ लफ्जों में कहा था। दीप पर्व कोई रिकार्ड के लिए नहीं हो रहा है। मगर फिर अचानक ही सबकुछ बदल गया। अपने उम्मीद जी को ही इस रिकार्ड के लिए मैदान में उतरना पड़ा। एक के बाद एक बैठके ली। केवल इसलिए कि … रिकार्ड बनाना है। तभी तो कोठी के गलियारों में … वो जब चाहे तब होता है… गजल सुनाई दे रही है। जिसको सुनकर हम भी क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

जलवा …

किसी भी कमलप्रेमी से यह सवाल पूछकर देखों। इन दिनों किसका जलवा है। एक ही नाम सबकी जुबान पर है। अपने विकास पुरूष का। इस कदर जलवा है कि जो जमीन बिक गई हो। उसी को वापस, उसी कीमत पर खरीदने की क्षमता रखते है। जिस कीमत पर कुछ साल पहले बेची गई थी। भले ही रजिस्ट्री भी हो गई। मामला इंदौर रोड़ की जमीन का है। जो कि एक पंजाप्रेमी होटल वाले भय्या की थी। उन्होंने बेच दी थी। तब अपने विकास पुरूष ने रूचि नहीं दिखाई थी। मगर अब जमीन का मोह जाग गया। नतीजा … बिकवाने वाले दलाल को वर्दी का मेहमान बनवा दिया। फिर वही हुआ … जिसकी अपेक्षा थी। खरीदने वालो ने उसी दाम पर वापस बेच दी। ऐसी चर्चा कमलप्रेमी, अपने विकास पुरूष के जलवे के साथ कर रहे है। सच- झूठ का फैसला हमारे समझदार पाठक खुद कर ले। क्योंकि हमको तो आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

थप्पड़ …

बाबू …. थप्पड़ से नहीं प्यार से डर लगता है। यह डायलॉग फिल्मों में अच्छा लगता है और तालिया भी बजती है। मगर असल जिंदगी में थप्पड़ की कीमत चुकानी पड़ती है। वह भी साढ़े 7 पेटी। हमारे पाठकों को भरोसा नहीं हो रहा होगा। मगर यह सच है। एक घटना याद दिलाते है। घट्टिया अनुभाग की है। जहां पर उच्च शिक्षा के प्रोफेसर और प्राचार्य में लडाई हुई थी। वीडियों भी वायरल हुआ था। उसी से जुड़ा मामला है। चक्रम के अधिकारी ने थप्पड़ मारने वाले को नोटिस थमा दिया है। आवास और जलकर वसूली का। 80 महीने का साढ़े 7 पेटी जमा कराना है। वह भी मात्र 15 दिन में। देखना यह है कि थप्पड़ कांड के नायक अब क्या करते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

धंधा …

आज के युग का सबसे बेहतर धंधा क्या है। शहरी क्षेत्र के आसपास जमीन खरीदो। सरकारी खर्च पर सडक़ बनवा दो। फिर 4 गुनी कीमत पर कालोनी काट दो। अभी तक तो इस खेल में पीएचडी केवल अपने विकास पुरूष को थी। मगर अब उनके पदचिन्हों पर एक और कमलप्रेमी नेता चल चुके है। ऐसी कमलप्रेमियों में चर्चा है। नेताजी ने अभी-अभी 35 बीघा जमीन खरीदी है। उस जमीन के बगल से ही शानदार सडक़ बन रही है। नतीजा जो जमीन करीब साढ़े 3 खोखे की है। उसकी कीमत जल्दी ही 4 गुना होने वाली है। कमलप्रेमी तो यही बोल रहे है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

लिफाफा…

सवाल लगाओं- लिफाफा पाओं। यह संस्कृति कोई नई नहीं है। मगर पंजाप्रेमी नेता के खिलाफ, अगर कोई पंजाप्रेमी माननीय ही सवाल लगा दे? तब जरूर थोड़ा खटकता है। ऐसा हम नहीं, बल्कि पंजाप्रेमी ही बोल रहे है। सवाल माइनिंग से जुड़ा था। शीतकालीन सत्र में इसे लगाया था। नतीजा … माननीय को लिफाफा मिल गया। जिसकी चर्चा पंजाप्रेमियों में दबी जुबान से सुनाई दे रही है। जिसमें हम क्या कर सकते है। हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

– प्रशांत अंजाना

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