हम चुप रहेंगे ( 7 मार्च 2022)

सुरक्षा …

हमारे माननीयों के साथ अकसर सुरक्षाकर्मी रहते है। फिर भले ही उनको किसी से भी कोई खतरा ना हो। मगर इससे खुद को अतिविशिष्टजन समझने में आसानी रहती है। सीधी भाषा में इसे स्टेटस सिंबल बोला जाता है। इसी चक्कर में एक काले कोटधारी आ गये। उन्होंने भी अपने बदबू वाले शहर के ताऊजी से जुगाड करके सुरक्षाकर्मी ले लिया। अतिविशिष्ट खुद को समझने लगे। लेकिन एक दूसरे काले कोटधारी को यह बात अखर गई। उन्होंने भी सुरक्षा के लिए आवेदन दे दिया। हवाला भी दिया। 3 बार हमला हो चुका है। मुझे भी सुरक्षा दो। नतीजा … मांगने वाले को तो सुरक्षा नहीं मिली, मगर जिनको मिली थी। उनकी सुरक्षा जरूर हटा दी गई। जिसको लेकर हम तो बस अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहेंगे।

दबाव …

अपने पपेट जी पर प्रेशर जल्दी असर करता है। इस कदर असर करता है। वह हर मिनिट में अपने निर्णय को खुद ही बदल देते है। यह नजारा दीपोत्सव में देखने को मिला। अपने मामाजी खुद दीपक लेकर आये थे। जिनको व्यवस्थित रखवाना था। इसके लिए अपने पपेट जी इस कदर दबाव में आ गये कि … उन्होंने 4 दफा दीये ऐसे नहीं वैसे रखों-वैसे नहीं ऐसे रखो… के निर्देश दे डाले। दीये जमाने वाले भी तंग आ गये। दबी जुबान में बोल दिये। आप ही खुद आकर जमा दो। लेकिन पपेट जी इसे नहीं सुन पाये। इधर मीडिया भी यह तमाशा देखकर मजे ले रहा था। मगर, हम यह सब देखकर भी, अपनी आदत के अनुसार चुप थे।

घमंड …

बाबा के दरबार वाले फूलपेंटधारी को बहुत घमंड था। कोई उनको झुका नहीं सकता है। कई कमलप्रेमी उनके व्यवहार से दु:खी है… परेशान है। मगर उनका घमंड नहीं तोड सकते है। इसलिए चुप रहते है। उनकी यह इच्छा बाबा महाकाल ने पूरी कर दी। वह भी उसी दिन, जिस दिन बाबा दुल्हा बने थे। तभी बाबा ने चमत्कार दिखाया। ऐसा कि …. फूलपेंटधारी ना केवल मनाते नजर आये, बल्कि न्याय देवता को मनाने के लिए पीछे-पीछे भागते रहे। जिसका वीडियों भी बन गया। मामला बैठक व्यवस्था का था। न्याय देवता की जगह पर किसी और को बैठा दिया था। बस … बाबा की कृपा से फूलपेंटधारी का घमंड तत्काल टूटा। जिसे देखकर मंदिर से लेकर कमलप्रेमी सभी खुश है। खुलकर बोल रहे है। अच्छा हुआ… बाबा ने घमंड तोड दिया। देखना यह है कि घमंड टूटने के बाद अपने फूलपेंटधारी के व्यवहार में कोई सुधार आता है या नहीं। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

बेदाग …

अपने मामाजी खुश है। कमलप्रेमियों से नहीं? बल्कि अपने उम्मीद जी और कप्तान से। तभी तो दीप उत्सव रिकार्ड लेने के बाद फोन किया। अपने उम्मीद जी को। बोले कि … कारकेट जहां पर बदलेगा… वहां आकर मिलना। इंदौर जाते वक्त की घटना है। पंथपिपलई पर मामाजी से मुलाकात हुई। अपने मामाजी ने दोनों की पीठ थपथपाई बोले कि … अदभूत और बेदाग… दोनों को बधाई। मामाजी की इस बधाई के दोनों हकदार भी थे। इसलिए हम भी दोनों को बधाई देते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

नाकाम …

एक तरफ जहां अपने मामाजी खुश है। बधाई दे रहे है। वहीं अपने पपेट जी नाराज है। उनकी नाराजगी अपने उम्मीद जी से है। जिन्होंने इस रिकार्ड के लिए अपनी टीम खुद बनाई। शिवाजी भवन के अधिकारियों से सीधे संवाद किया। सीधे निर्देश दिये। लेकिन पपेट जी से दूरी बनाकर रखी। तभी तो अपने पपेट जी केवल रिकार्ड देने वालो को दाल-बाफले खिलाकर खुश है। बाकी अपनी ही टीम से नाराज है। शिवाजी भवन में तो यही चर्चा है। मगर, हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

मौका …

अपने विकास पुरूष की एक आदत को कमलप्रेमी भले ही पसंद नहीं करते है। लेकिन अपुन को उनकी यह आदत पसंद है। मौका मिले तो चूको मत। फिर भले ही पर्ची की अदला-बदली करना पड़े या फिर सुरक्षा को गच्चा देना पड़े। दीपोत्सव की घटना है। मामाजी को शिप्रा विहार करना था। ताकि दोनों तरफ दीप जलते हुए देख सके। सुरक्षा के लिहाज से मामाजी के लिए अलग व्यवस्था थी। जिसमें केवल 4 सीट की व्यवस्था थी। अपने विकास पुरूष को मामाजी के खास सुरक्षाकर्मी ने रोक दिया। 4 की व्यवस्था है। मगर विकास पुरूष की आदत है। वह चकमा देकर अंदर कूद गये। सुरक्षाकर्मी देखता ही रह गया। अब कुछ नहीं कर सकता था। तो चुप रहा। मगर कमलप्रेमी इसकी चर्चा कर रहे है। जिसमें हम क्या कर सकते है। बस … अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

सिफारिश …

कमलप्रेमियों की युवा इकाई में सिफारिश से बने मुखिया की बहुत चर्चा है। जिसके पीछे शनिवार को आये प्रदेश मुखिया की तरफ इशारा है। नये-नवेले युवा इकाई के मुखिया को सिफारिश से पद तो मिल गया। मगर उनके पास युवाओं की सशक्त टीम नहीं है। तभी तो प्रदेश मुखिया का जैसा शानदार स्वागत होना था। वैसा नहीं हो पाया। कार्यक्रम स्थल पर भी युवाओं की भीड नजर नहीं आई। कुर्सियां खाली दिखी। ऐसा युवा कमलप्रेमी ही बोल रहे है। युवाओं की बात में दम भी है। मगर हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

शक्कर …

शीर्षक एक कहावत से जुड़ा है। गुरू गुड़- चेला शक्कर वाली। इसमें गुरू अपने वजनदार जी है और चेला बदबू वाले शहर के उनके प्रतिनिधि। जिनके ऊपर सोशल मीडिया पर लिखना शुरू हो गया है। लिखने वाले भी कमलप्रेमी दरबार के करीबी है। जिन्होंने वजनदार जी के चेले पर खुलकर लिखा है। ठेकेदार को चमका रहे है। सडक़ निर्माण में बाधा डाल रहे है। इशारा सीधे भ्रष्टाचार की तरफ है। सच- झूठ का फैसला अपने वजनदार जी या बदबू वाले शहर के कमलप्रेमी खुद कर ले। क्योंकि हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

कहानी …

अपने बचपन में हम सभी ने एक कहानी पढ़ी होगी। भेडिया आया- भेडिया आया। इस कहानी को रविवार के दिन वर्दी याद करती रही। इशारा … बच्चा मिला-बच्चा मिला की तरफ था। सवाल यह है कि वर्दी को भेडिये वाली कहानी क्यों याद आई। इसको लेकर वर्दी चुप है। तो हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

– प्रशांत अंजाना

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