हम चुप रहेंगे (21 मार्च 2022)

दावत …

किसी शायर ने खूब कहा है। यह भी एक बात है अदावत की/ रोजा रख्खा जो हमने दावत की। मगर यहां मामला अदावत का नहीं, बल्कि शिष्टाचार और समन्वय से जुड़ा है। जिसके चलते शिवाजी भवन में इन दिनों यह शेर सुनाई दे रहा है। कारण अपने पपेट जी ने एक दावत रखी थी। होली के 2 दिन पहले। यह दावत, दीपोत्सव पर्व की सफलता को लेकर थी। जिसमें अपने 7 जिलों के मुखिया, अल्फा जी, डेल्टा जी, उम्मीद जी और कप्तान को भी बुलाया था। यहां पर पपेट जी गलती कर गये। वह भी एक नहीं 3-3।

पहली गलती दीपोत्सव पर्व शासन का आयोजन था। उसका श्रेय लेना अपने मामाजी का हक बनता है। दूसरी गलती… दावत के पहले किसी को भी विश्वास में नहीं लिया। तीसरी गलती यह कि … सहभोज के लिए वक्त और दिन गलत चुना। नतीजा सभी ने दूरी बनाते हुए रोजा (उपवास) रख लिया।

बेचारे … अपने पपेट जी अपनी ही दावत में केवल खुद ही हीरो बनकर रह गये। ऐसा शिवाजी भवन वाले बोल रहे है। मगर हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

समझौता …

एक बार फिर घटना अपने पपेट जी से जुड़ी है। हमारे पाठक नाराज ना हो। यह नहीं सोचे कि … क्या बार-बार पपेट जी को ही लपेट लेते है हम। मगर इसमें हमारा क्या दोष? हमारी भी मजबूरी है। घटना हुई है तो चुप रहना भी जरूरी हो जाता है। अभी का ताजा मामला है। शासकीय कार्य में बाधा का। जिसमें 353 में प्रकरण दर्ज हुआ। उसी को लेकर घटना हुई है। स्मार्ट भवन में बैठक हुई। जिसमें वरिष्ठ कमलप्र्रेमी नेता और पपेट जी के अलावा, अपने फूलपेंटधारी भी थे। उनका वहां क्या काम? ठीक … मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम तर्ज पर। मगर फूलपेंटधारी मौजूद रहे। दोनों महिला अधिकारी भी पहुंची। आमने-सामने बात हुई। लेकिन शिवाजी भवन में सवाल उठ रहा है। फूलपेंटधारी आखिर वहां क्या कर रहे थे? उनको किसने बुलाया था? क्या अपने पपेट जी के ट्रबल – शूटर है, फूलपेंटधारी। बहरहाल समझौता अभी हुआ नहीं है और आसार भी नहीं है। इसलिए हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

शुष्क दिवस …

अपने उम्मीद जी ने परम्परानुसार शुष्क दिवस घोषित किया था। सोमरस की बिक्री पर। रंग पर्व पर यह परम्परा है। इसीलिए एक दिन पहले ही शौकीन मिजाज अपनी तलब का इंतजाम कर लेते है। वजह … दुकाने बंद रहती है। मगर शहर के गणमान्य- धनमान्य के लिए शुष्क दिवस कोई मायने नहीं रखता। आखिर इन लोगों की जेब में गुलाबी रंग का पॉवर होता है। तभी तो गणमान्य क्लब में शुष्क दिवस की रात सोमरस का वितरण हुआ। स्टेशन रोड़ स्थित क्लब के सदस्यों में इसकी चर्चा है। ताज्जुब की बात यह है कि कागजों पर इस क्लब से 7 जिलो के मुखिया का भी नाम जुडा है। तभी तो सोमरस वाले विभाग के किसी भी अधिकारी ने इस तरफ झांका तक नहीं। मगर अब विभाग वाले ही दबी जुबान से बोल रहे है। शुष्क दिवस नहीं, सोम दिवस था। अब सच और झूठ का पता तो अपने उम्मीद जी ही लगवा सकते है। क्योंकि हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

शुल्क …

बाबा के दरबार में कब-कौनसा शुल्क लागू हो जाये? कब-किस शुल्क को हटा दिया जाये? यह अपने बाबा महाकाल भी नहीं जानते है। मगर एक इंसान है। जिसे हम अपने फूलपेंटधारी के नाम से जानते है। उनको पता रहता है। कब-कौनसा शुल्क लगाना है। इतिहास में नाम दर्ज करवा रहे है। तभी तो जो शुल्क आज तक नहीं लगा। उसको लगाने के मौखिक निर्देश दिये है। बाबा के दरबार में तो यही चर्चा है। आम जनता से दूर हो चुके बाबा को, अब 56 भोग खिलाने का भी शुल्क लगेंगा। प्रति भोग 100 रूपये। मतलब 56 भोग के लिए 5600 रूपये भक्त को खर्च करने होंगे। इसके पहले आज तक कभी ऐसा शुल्क नहीं लगा और ना ही किसी ने सोचा। लेकिन अपने फूलपेंटधारी ने यह कदम उठाया है। पंडे-पुजारियों में तो यही चर्चा है। देखना यह है कि शुल्क कब लागू होता है और अपने उम्मीद जी इस शुल्क को लेकर क्या कदम उठाते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

रिकार्ड …

एक बार फिर बात बाबा के दरबार से जुड़ी है। मगर इससे अपने फूलपेंटधारी का कोई लेना-देना नहीं है। इसका संबंध महाकाल वन से है। जहां पर एक विशेष संप्रदाय के लिए विशेष रास्ता बनाया गया है। उसके लिए सवाल भी खड़े हो रहे है। रास्ता बंद कैसे किया जाये। इसके लिए रिकार्ड खंगाला गया। हर धर्मस्थल का एक सरकारी रिकार्ड होता है। मगर विशेष संप्रदाय के धर्मस्थल का सरकारी कागजों में कोई रिकार्ड दर्ज नहीं है। कागजों पर यह बात साबित हो गई है। जिस सर्वे नम्बर पर धर्मस्थल बताया जा रहा है। उस सर्र्वे नम्बर पर कुछ भी दर्ज नहीं है। अब देखना यह है कि इस विशेष रास्ते को बंद करने के लिए, कौनसा रास्ता खोजा जाता है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

कठोर …

अपने अल्फा जी को लेकर वर्दी में यह चर्चा आम है। वह बहुत कठोर और अनुशासन पसंद इंसान है। अच्छे-अच्छे उनके सामने खड़े होने के बाद थर्राते है। लेकिन रंग पर्व के दूसरे दिन अपने अल्फा जी अलग अंदाज में नजर आये। उनका वह रूप वर्दी ने देखा, जो आज तक नहीं देखा था। हालांकि उनको मुस्कुराते हुए भी नहीं देखा है। रंग पर्व की मस्ती में उनका यह अंदाज देखकर अब चर्चा है। चर्चा यह है कि अपने अल्फा जी बिलकुल नारियल की तरह है। ऊपर से कठोर मगर अंदर बिलकुल नरम। तभी तो वर्दी किसी शायर की गजल गुनगुना रही है। जिसके अल्फाज है … हर आदमी में होते है 10-20 आदमी… जिसको भी देखना कई बार देखना। अपने अल्फा जी पर यह गजल सटीक भी बैठ रही है। वर्दी तो यही बोल रही है। मगर हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

बेआबरू …

वर्दी इन दिनों मरहूम शायर चाचा गालिब को याद कर रही है। जिसमें इशारा अपनी 5 पेटी डिमांड वाली मैडम की तरफ है। जिनको रातों-रात पद से हटाया गया। वजह सभी को पता है। वर्दी को हमदर्दी की जगह बदनामी मिल रही थी। इसी बदनामी के चलते वर्दी ने 5 पेटी डिमांड वाली मैडम के जाने पर खुशी मनाई। किसी ने भी हमदर्दी नहीं दिखाई। कोई विदाई नहीं हुई। मैडम चुपचाप निकल गई। अब उनके करीबी वर्दी वाले चाचा गालिब को याद करते हुए बोल रहे है। बड़े बेआबरू होकर तेरे कूंचे से हम निकले। जिसमें हम आखिर क्या कर सकते है। बस अपनी आदत के अनुसार चुप रह सकते है।

इसलिए …

वैसे तो वर्दी पर आरोप लगना सामान्य बात है। मारापीटी- वसूली आदि-आदि। रोजाना वर्दी सुर्खियों में रहती है। मगर कभी-कभी वर्दी दबाव में ऐसा काम कर जाती है । जो उसको नहीं करना चाहिये। ताजा मामला एक एजेंट की पिटाई से जुड़ा है। एजेंट की गलती यह थी कि उसने हिन्दूवादी संगठन पदाधिकारी के भतीजे की बाइक को सीज कर दिया। जिसके बाद तो वर्दी इस कदर दबाव में आई। उसने एजेंट को ना केवल पकडक़र सारा मामला निपटाया, बल्कि जोरदार कुटाई भी कर दी। नतीजा एजेंट को अस्पताल की शरण लेनी पड़ी। जिसके बाद अगर कोई यह कहता है कि … वर्दी दिखाती है हमदर्दी … तो हम अपनी आदत के अनुसार चुप रहना पसंद करेंगे।

रणनीति …

हरे-हरे रंग के नोट लेते वक्त, हाथ गुलाबी करवाने वाले विभाग से तो हमारे पाठक परिचित होंगे। उसी विभाग ने राजधानी में एक बार फिर तलब किया है। एक भवन अनुज्ञा के मामले को लेकर। जिसमें शिवाजी भवन और ग्राम निवेश विभाग भी शामिल है। 23 मार्च को बुलाया है। जिसके चलते एक बैठक गोपनीय तौर पर हुई। इस बैठक में आर्थिक अपराध वाले विभाग के मुखिया भी शामिल हुए। ऐसी चर्चा कोठी के गलियारों में सुनाई दे रही है। रणनीति बनाई गई। राजधानी में कैसे और क्या जवाब देना है। अब देखना यह है कि देवास रोड वाले मामले में गोपनीय रणनीति कितना काम करती है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

– प्रशांत अंजाना

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