दुनिया कह रही हम नाखुश हैं? ये चुनौती है चेहरे पर खुशी लाने की

सारी दुनिया में खुशहाल दिवस (हैप्पीनेस डे) के रूप में मनाया जाने वाला 20 मार्च भारत के लिये बुरी खबर लेकर आया। प्रति वर्ष विश्व खुश देशों की सूचकांक सूची रिपोर्ट यूनाइटेड नेशंस सेस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशंस नेटवर्क की तरफ से जारी की जाती है। 149 देशों के लिये वर्ष 2021 हेतु जारी की गयी सूची में सबसे खुशहाल देशों की सूची में पिछली चार बार की तरह फिनलैंड सबसे शीर्ष पर है। उसके बाद डेनमार्क, स्विटजरलैंड, आइसलैंड और हॉलैंड है।

भारतीयों के लिये सबसे बुरी खबर यह है कि 149 देशों की सूची में हमारे देश का क्रम 139वां है। वर्ष 2020 में 156 देशों की जारी सूची में हम 144वें स्थान पर थे। भारत खुश देशों की सूची में जगह भले ही न बना पाया हो पर उसके नाखुश देशों की सूची में शीर्ष 5 में जगह बनाने में सफलता जरूर पा ली है। नाखुश देशों में जिम्बाम्बे सबसे शीर्ष पर है। तानाशाही वाला देश जिम्बाम्बे वर्ष 2020 में भी नाखुश देशों की सूची में शीर्ष पर था।

गरीबी, भुखमारी और बेरोजगारी का दंश झेल रहा जिम्बाम्बे राजनैतिक अस्थिरता के कारण बदहाली की स्थिति में है। नाखुश देशों की जारी सूची में तंजानिया दूसरे नंबर पर है यहाँ के अधिकांश निवासी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते हैं। तंजानिया के लोगों की मासिक औसत आय 70 रुपये प्रतिमाह है। बीमारी व गरीबी के बीच हाल-बेहाल है। तीसरे नंबर पर है जार्डन यहाँ का बहुत बड़ा हिस्सा रेगिस्तान है।

राजनैतिक अस्थिरता यहाँ की भी समस्या है। नाखुश देशों की सूची में 138 करोड़ की आबादी वाला हमारा भारत चौथे स्थान पर है जो हम सब के लिये विचारणीय प्रश्न होना चाहिये। पाँचवें नंबर पर कम्बोडिया है जो 2019 में 76वें नंबर पर था इस साल नाखुश देशों की सूची में पाँचवें नंबर पर है।

विश्व हैप्पीनेस डे मनाने का प्रस्ताव 12 जुलाई 2012 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पारित किया था कि प्रतिवर्ष 20 मार्च को विश्व हैप्पी नेस दिवस मनाया जायेगा, तब से सारी दुनिया के लोगों में खुशी के महत्व को याद दिलाने के लिये मनाया जाता है इस दिन को मनाने का विचार प्रसिद्ध समाजेसी जेमी इलियन के दिमाग में सबसे पहले आया था।

इलियन के विचार से ही प्रेरित होकर संयुक्त राष्ट्र महासभा के तत्कालीन महासचिव जनरल बून ने 20 मार्च 2013 को पहला अंतरार्राष्ट्रीय हैप्पी दिवस के रूप में मनाया गया। आज की वर्तमान परिस्थितियों में दुनिया भर के लोगों के जीवन का सबसे अहम पड़ाव है खुश होना। और इस वर्ष तो रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के बीच इस दिवस की सार्थकता और अधिक थी।

नाखुश देशों की सूची में भारत का पाँचवें स्थान पर आना हम सब भारतीयों के लिये तो चुनौती है ही परंतु सबसे ज्यादा चिंता की बात हमारे देश के राजनैतिक दलों और उसके नेताओं के लिये होना चाहिये क्योंकि देश का सत्यानाश करने के लिये भारत के राजनैतिक दलों में नागरिकों को ‘मुफ्त’ देने के लिये प्रतिस्पर्धा चल रही है।

\कोई मुफ्त राशन तो कोई मुफ्त बिजली, कोई मुफ्त जमीन, मकान पर सब्सिडी, मुफ्त पानी दे रहा है। वोट की खातिर नेता सब कुछ मुफ्त बाँटने को तैयार है। मध्यमवर्गीय नागरिक की जेब से टैक्स के रूप में रुपये निकालकर ज्यादा मतदान करने वाले लोगों को सब कुछ मुफ्त में दिया जा रहा है। सरकार ने हालात यह कर दिये हैं कि आदमी काम करना ही नहीं चाहता क्योंकि जब बिना काम करे उसे मुफ्त में गेहूं, चावल, नमक मिल रहा है तो वह अपने शरीर को क्यों कष्ट दें?

देश पर राज करने वाले राजनैतिक दलों को चाहिये तो यह था कि वह करोड़ों भारतीयों के हाथों को काम देते और इसके एवज में इन्हें पारिश्रमिक के एवज में अनाज देते तो शायद देश का इतना सत्यानाश ना हुआ होता, परंतु आजादी के बाद से ही सत्ता सिंहासन पर बैठने वाले बेरोजगार हाथों को काम देने में अक्षम और नकारा साबित हुये इस कारण नेताओं ने मात्र वोट की खातिर देश को गड्ढे में धकेल दिया। बेरोजगार रोजगार न माँगे इसलिये उन्हें सब चीजें मुफ्त में दे दी ताकि वह खाये और पड़े रहे।

खैर, मुफ्त में अनाज, बिजली, पानी, इलाज, मकान, जमीन दे सकते हो परंतु 138 करोड़ भारतीयों के अधरों पर मुस्कान या खुशी नहीं ला सकते हो। लबों पर खुशी के लिये हमें प्रकृति के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना होता है, कृतज्ञता के भाव पर ध्यान देना होगा, अपने नये शौकों पर काम करना होगा, दूसरों के लिये निस्वार्थ सेवा भाव जगाना होगा तब हमारा भारत नाखुश देशों की हद से बाहर आ सकेगा और हैप्पीनेस देशों की सूची में सम्मानजनक स्थान बना सकेगा।

-अर्जुन सिंह चंदेल

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