नगर निगम के हाथ से निकली कवेलू कारखाने की जमीन

अधिकारियों के ढीले रवैये के बाद संभागायुक्त ने विकास प्राधिकरण को जमीन सौंपने का लेटर लिखा

उज्जैन, अग्निपथ। नीलगंगा क्षेत्र में कवेलू कारखाने की बेशकीमती जमीन नगर निगम के हाथ से निकल गई है। नगर निगम ने इस जमीन पर प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मल्टी बनाने की प्लानिंग की थी लेकिन यह प्लानिंग केवल कागजों तक ही सीमित रही। दो साल तक निगम का कोई प्रोजेक्ट जमीन पर नहीं आने की वजह से संभागायुक्त संदीप यादव ने जमीन को उज्जैन विकास प्राधिकरण को सौंपने का फैसला कर लिया है।

फरवरी 2020 में जिला प्रशासन ने कवेलू कारखाने की करीब 139 बीघा जमीन को कब्जे से मुक्त कराने की कार्यवाही की थी। इस जमीन के एक बड़े हिस्से के अवैध तरीके से सौदे और उन सौदो के नामांतरण तक हो चुके थे। कई हिस्सो के मामले कोर्ट में प्रचलित थे। लगभग 75 प्रतिशत हिस्से पर अवैध कब्जे हो चुके थे। जमीन रिक्त कराए जाने के दौरान प्रशासनिक टीम को यहां से 150 से ज्यादा मकान(झोपड़े) हटाने पड़े।

रिक्त कराए जाने के बाद इस जमीन को नगर निगम को सौंप दिया गया था। पूर्व निगम आयुक्त क्षितिज सिंघल के कार्यकाल में नगर निगम को यह जमीन मिली और यहां प्रधानमंत्री आवास योजना की मल्टी बनाने की प्लानिंग तैयार की गई। क्षितिज सिंघल का तबादला हो गया, अंशुल गुप्ता आयुक्त बन गए लेकिन कवेलू कारखाने की जमीन पर आवास की योजना कागजो पर ही बनती बिगड़ती रही।

4 साल से प्रयास में था प्राधिकरण

उज्जैन विकास प्राधिकरण की कवेलू कारखाने की जमीन पर लगातार नजर बनी हुई थी। भाजपा नेता जगदीश अग्रवाल जब प्राधिकरण के अध्यक्ष थे तब ये प्रयास आरंभ हुए थे। प्राधिकरण भी जमीन का आवासीय सह व्यवसायिक उपयोग करना चाहता है। नगर निगम और विकास प्राधिकरण दोनों ही शासकीय संस्थान है लेकिन नगर निगम के हाथ से जमीन चले जाने का सबसे ज्यादा नुकसान शहर के गरीब तबके के लोगों का होगा। प्राधिकरण के पास गरीब तबके के लोगों के लिए कोई योजना नहीं है, जबकि जमीन नगर निगम के हाथ में रहती तो यहां सस्ती दरों पर गरीब लोगों को आवास मुहैया कराए जा सकते थे।

पुरानी है जमीन की कहानी

  • कवेलू कारखाने की 139 बीघा जमीन की कहानी बहुत पुरानी है, सन 1920 से 1930 तक सिंधिया राजघराने के स्वामित्व वाली भूमि पर ग्वालियर टाईल्स वर्क्स लिमिटेड के नाम से कारखाना हुआ करता था।
  • यहां टाइल्सों का निर्माण होता था, जिसके पट्टेदार रामरतन मुन्नालाल, और हवीकथत राय विष्णु विनायक थे। सन् 1930 में इसके दिवालिया होने पर सिंधिया घराने द्वारा उनके स्वामित्व की भूमि पर निर्मित भवन में स्थापित मशीनरी व पड़े हुए सामान की नीलामी टाईम्स ऑफ इंडिया में इश्तहार प्रकाशित करवाया जिसमें उज्जैन के स्वर्गीय मन्नी भाई लद्दा भाई चावड़ा ने इस भूमि पर स्थापित मशीनरी एवं सामान 15001 (पन्द्रह हजार एक) रुपये में सिंधिया घराने से खरीद लिया था।
  • उस समय सिंधिया घराने की कवेलू कारखाने की 139 बीघा जमीन पर टाईल्स फेक्ट्री को छोडकऱ जंगल हुआ करता था जिसमें यादव समाज के लोग अपने पशुओं को चराने लाया करते थे।
  • देश की आजादी के बाद राजे राजवाड़े खत्म हो गये और उनकी संपत्ति भी शासन की हो गई। यादव समाज ने जहाँ वह पशु चराया करते थे उस जमीन को प्रजापतियों को ईंट के भट्टे लगाने के लिये किराये पर देने लगे इधर लद्दा परिवार ने भी मशीनरी और सामान तो निकाला ही साथ ही कारखाने की भूमि पर भी कब्जा कर लिया।
  • मंन्नी भाई की मृत्यु पश्चात उनके वारिसों ने अवैध तरीके से शासन की इस ताकायमी भूमि को बेचना प्रारंभ कर दिया।
  • तत्कालीन तहसीलदार की मिलीभगत से कुछ खरीददारों ने नामांतरण भी करवा लिये थे परंतु शहर के कुछ सजग नागरिकों की शिकायत पर उस समय के जिलाधीश शिवशेखर शुक्ला ने नामांतरण को निरस्त किया।

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