कैद से लौटी युवती, इंदौर से रतलाम ले गए दलाल, फिर शाजापुर में शादी करवा दी

इंदौर, अग्निपथ। दलालों और सहेलियों के षड्यंत्र से दो लाख रुपए में बेच दी गई आदिवासी युवती ने कैद से बाहर आते ही रोते-रोते अपनी आपबीती सुनाई। उसने बताया, बाहर निकलने के इंतजार में एक-एक दिन गुजार रही थी, लेकिन 100 दिन बाद भी आजादी नहीं मिली। रोंगटे खड़े कर देने वाली आपबीती सुनाते हुए 22 वर्षीय आदिवासी युवती मां से लिपटकर रोने लगी। कुछ संभलकर उसने आगे बताया, मैं हर रोज भगवान से कहती, किसी तरह इस कैद से बाहर निकाल दो।

उसने कहा, एक बार हिम्मत कर सब्जी लेने के बहाने बाजार गई और वहीं से इंदौर के लिए भाग निकली। रास्ते में एक पिकअप में बैठ गई, लेकिन कुछ देर बाद ही दलाल और उसके गांव के गुंडे मुझे तलाशते हुए गाडिय़ों से आ पहुंचे। उन्होंने पिकअप को रोककर तलाशी ली और मुझे पकडक़र घर ले गए। उन्होंने मुझे एक कमरे में कैद कर दिया। मैं रोई, गिड़गिड़ाई, लेकिन किसी ने मेरी एक न सुनी। लगा मैं अब इस काल कोठारी से कभी बाहर ही नहीं निकल पाऊंगी।

युवती ने बताया, दलाल के परिवार में उसका एक भाई, भाभी और उनके दो बेटे भी थे। वहीं युवती की मां ने बताया, थाने पर बेटी का इंतजार कर रहे थे तब दलाल के साथी व गांव वालों ने हमें 1 लाख रुपए और 10 बीघा जमीन अपने नाम कराने का लालच दिया और कहा, शिकायत वापस ले लो।

जैसे ही दरवाजे की ओर बढ़ती, परिवार वाले रोक लेते थे

युवती ने बताया, मेरी शादी जबरदस्ती उससे करवा दी जिसे मैं जानती तक नहीं थी। उसने मुझे पैसे देकर खरीदा था। वह मेरे साथ मारपीट और शारीरिक शोषण करता। दिनभर तो किसी तरह कट जाता, लेकिन रात होते ही घर और मां की याद आती। खाना मैं बनाती पर मुझे तभी मिलता जब सभी खा चुके होते। परिवार के लोग हर वक्त मुझ पर निगाह रखते थे। दरवाजे की ओर बढ़ती तो दौडक़र आ जाते।

इंदौर से दलाल मुझे रतलाम ले गए, फिर शाजापुर में शादी करवा दी

युवती ने बताया, शादियों में कैटरिंग का काम करने के दौरान एक युवक को मुंह बोला भाई बनाया था। सहेली दीपा के साथ द्वारकापुरी थाना क्षेत्र में रह रही थी। दोनों मुझे बस से इंदौर से रतलाम ले गए। फिर पूजा के घर तीन दिन रही। दीपा ने रतलाम निवासी सलोनी, पूजा और अन्य लोगों के साथ मिलकर मुझे दलाल को बेच दिया। वह मुझे कार में जबरदस्ती बैठाकर शाजापुर ले गया और कोर्ट मैरिज करा दी।

मदद के सारे दरवाजे बंद हुए तब विश्वास जीतने की कोशिश भी की

वह बताती है, जब दो महीने बीत गए और मुझे लेने कोई नहीं आया तब समझ में आ गया कि अब मेरी पूरी जिंदगी यहीं गुजरेगी। तब मैंने तरकीब सोची कि परिवार के साथ कुछ दिन अच्छे से रहने का नाटक करती हूं। जब इन्हें मुझ पर भरोसा हो जाएगा तब मौका पाकर भाग जाऊंगी। एक दिन दलाल को किसी काम से बाहर जाना पड़ा। बस मौका पाकर मैं सब्जी लाने निकली और भाग आई।

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