महाकाल मंदिर: परंपरा के नाम पर दो नियम

1500 का टिकट कटाकर सोला-धोती पहनने को मजबूर, सामान्य श्रद्धालुओं के पेंट-शर्ट-जींस में दर्शन की अनुमति

उज्जैन, अग्निपथ। महाकाल मंदिर में गर्भगृह में दर्शन के दो अलग अलग नियम बना कर रखे गये हैं। इनको परंपरा का हवाला दिया गया है। पंडे पुजारियों द्वारा परंपरा के नाम पर श्रद्धालुओं की आस्था से खिलवाड़ किया जा रहा है। गर्भगृह में सामान्य और वीआईपी श्रद्धालुओं के प्रवेश के दो अलग अलग नियम बनाकर रखे गये हैं। इससे लोग परेशान हो रहे हैं। समय अलग से खराब हो रहा है और कुछ लोगों की इससे दुकानदारी भी चल रही है।

गर्भगृह में प्रवेश के दौरान 1500 रु. गर्भगृह दर्शन टिकट पर श्रद्धालुओं को सोला धोती और महिलाओं को साड़ी पहनना अनिवार्य किया गया है। सुबह से दोपहर 12.30 बजे तक दर्शन के दौरान सभी से इसका पालन करवाया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर सामान्य श्रद्धालुओं के प्रवेश के दौरान किसी भी वेशभूषा में दर्शन की पात्रता दे रखी है। ऐसा क्यों किया गया है, यह समझ से परे है। दोनों ही श्रद्धालु हैं और गर्भगृह में प्रवेश कर रहे हैं। ऐसे में गर्भगृह में प्रवेश के दो अलग अलग नियम क्यों बनाकर रखे गये हैं। श्रद्धालुओं को इस तरह की परंपरा को थोपकर परेशान क्यों किया जा रहा है।

श्रद्धालुओं को लंबा करना पड़ता है इंतजार

मंदिर के आधा दर्जन कर्मचारियेां को सोला धोती पहनाने के काम पर लगाया गया है। इनमें महिला और पुरुष कर्मचारी भी शामिल हैं। मंदिर के चार नंबर गेट के दो कक्षों में सोला धोती पहनाने का काम किया जा रहा है। वहीं कोटितीर्थ कुंड गेट के पास स्थित वीआईपी कंटेनर में भी सोला धोती पहनाने की व्यवस्था की गई है। श्रद्धालुओं को कभी कभी इसके लिये लंबा इंतजार भी करना पड़ता है। श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाने से सोला धोती की कमी हो जाती है। श्रद्धालुओं के गर्भगृह दर्शन से आने का इंतजार किया जाता है।

बाहर से खरीद कर भी ला रहे

कई श्रद्धालुओं को दूसरे के कपड़े पहनना गंवारा नहीं होता है। लिहाजा परंपरा का पालन करने के लिये उनको बाहर से सोला धोती और साड़ी पेटीकोट ब्लाऊज खरीद कर लाना पड़ता है। जिसकी कीमत 1 हजार रुपये के लगभग पड़ जाती है। मंदिर के बाहर ही सोला धोती हारफूल वालों के पास आसानी से मिल जाती है।

सभी के लिये एक नियम जरूरी

महाकालेश्वर मंदिर में कोई वीआईपी को अकेले की मंदिर के गर्भगृह में जाना हो तो उसको सोला धोती पहनाई जाती है। कई पहनते हैं और कई बिना पहने ही गर्भगृह की दहलीज से भगवान महाकाल के दर्शन कर लेते हैं। लेकिन पंडे पुजारियों के लिये तो सोला धोती की अनिवार्यता समझ आती है। लेकिन परंपरा का ढोल पीटकर श्रद्धालुओं के बीच दो अलग अलगे नियम लागू हैं। सभी के लिये एक ही नियम बनाया जाना आवश्यक है।

सोला धोती, साड़ी का ड्रेसकोड शुचिता का प्रतिक है। आधुनिक परिवेश की जगह पारंपारिक वेशभूषा में गर्भगृह से दर्शन करने को संस्कार से जोडक़र देखा जा सकता है। अनादिकाल से पूजन पाठ सोला धोती और साड़ी पहनकर की जाती रही है। बिना सिले कपड़े पहनकर भगवान के दर्शन करना सनातन संस्कृति की पहचान है।

-राम शर्मा, पुजारी और मंदिर समिति सदस्य

सोला धोती और साड़ी का ड्रेसकोड भस्मारती के दौरान और आरती के दौरान गर्भगृह में प्रवेश के दौरान ही लागू किया जाना चाहिये। अन्य समय में श्रद्धालुओं को गर्भगृह में प्रवेश देने के दौरान यह नियम लागू नहीं करना चाहिये। डे्रसकोड में श्रद्धालु ठंड से परेशान हो रहे हैं। इससे लोगों में गलत संदेश जा रहा है।

-दिलीप गुरु, वरिष्ठ पुजारी

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