गणगौर : स्पर्धा के जरिए मालवा-निमाड़ के कलाकारों ने जीवित किया लोकपर्व

देवास, आगर, शाजापुर सहित उज्जैन के 200 कलाकारों ने हिस्सा लिया

उज्जैन, अग्निपथ। मालवा-निमाड़ संस्कृति में रचा-बसा लोक पर्व गणगौर अब शहर के चुनींदा घरों में ही शेष है। मालवी-निमाड़ी नृत्य के साथ हर गली-मोहल्ले से निकलने वाली फूल पाती और अंतिम दिन गणगौर के रूप में भगवान शिव-पार्वती (गोरा-इशरजी) का पूजन अब सिमट कर रह गया है जिसे सहेजने के लिए लोक कलाकारों को आगे आना पड़ रहा है।

शहर में 24 मार्च शुक्रवार को गणगौर का पर्व मनाया गया। इस मौके पर क्षीरसागर कुंड पर मेला लगा। जहां पर महिलाओं ने गोरा-इशरजी का पूजन कर उन्हेें विसर्जित किया। हम आपको बता दें गणगौर प्रेम एवं पारिवारिक सौहाद्र का एक पावन पर्व है, जिसे हिंदू महिलाओं द्वारा मनाया जाता है. गणगौर बना हुआ है दो शब्दों के मिलने से, गण और गौर. इसमें गण शब्द से आशय भगवान शंकर जी से है और गौर शब्द से आशय माँ पार्वती से है।

गणगौर राजस्थान का मुख्य पर्व है और वहां इसकी काफी मान्यता है। माना जाता है कि प्राचीन से समय माता पार्वती ने भगवान शंकर जी को वर (पति) के रूप में पाने के लिए बहुत तपस्या और व्रत किया. फलस्वरूप माता पार्वती की इस तपस्या और व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शंकर जी ने इस दिन माँ पार्वती जी को अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। मां पार्वती ने यही वरदान उन सभी महिलाओं को दिया जो इस दिन मां पार्वती और शंकर जी की पूजा करतीं हैं।

16 दिन चलता है उत्सव

गणगौर की पूजा होली के दूसरे दिन से शुरू होकर १६ दिनों तक चलती है। प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके कन्याएँ व महिलाएँ, शहर या ग्राम से बाहर सरोवर अथवा नदियों तक जाती हैं, जहाँ से शुद्ध जल और उपवनों से हरी घास-दूब तथा रंग-बिरंगे पुष्प लाकर गौरा देवी के गीत गाते हुए समूह में अपने घरों को लौटती हैं और घर आकर सब मिलकर गौराजी की अर्चना और पूजा आराधना करती हैं। सुहागिन स्त्री पति की लम्बी आयु के लिए यह पूजा करती है। इसी के साथ फूल पाती का दौर शुरू होता है जिसमें अविवाहित लड़कियों को दुल्हा-दुल्हन के रूप में शहर में घुमाया जाता है।

लोक कलाकारों ने जमाया फूलपाती का रंग, लोक नृत्य पर बिखेरा पर्व का उल्लास

गणगौर पर संस्था आकार ने स्पर्धा आयोजित की। जिसमें लोक कलाकारों एवं महिला मंडलों ने बढ़ चढक़र हिस्सा लिया। पूरे दिन चले इस महोत्सव में लोकगीत, लोकनृत्य, फुलपाती, गणगौर सज्जा स्पर्धा हुई। जिसमे देवास, आगर शाजापुर सहित उज्जैन के 200 कलाकारों ने हिस्सा लिया। महोत्सव का शुभारंभ संस्कार भारती के श्रीपाद जोशी, विक्रम विश्व विद्यालय कुलानुशासक डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा व उद्योगपति तरुण शाह ने किया। समापन अवसर पर मालवी कवि साहित्यकार शिव चौरसिया ने लोकपर्वो की महत्ता पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम में बड़वाह के संजय महाजन ने निमाड़ी गणगौर, पणिहारी, झालरिया एवं पंडित हरिहरेश्वर पोद्दार के दल ने मालवीगण गौर राजस्थान की घूमर नृत्यों की शानदार प्रस्तुति दी। इस अवसर पर मालवी के वरिष्ठ गायक हीरसिंह बोरलिया को आकार वट अलंकरण से सम्मानित किया गया। उनकी पुत्री प्रीति देवले अनुपसिंह बोरलिया ने फूलपाती गीतों की सुमधुर प्रस्तुति दी।

संस्कृति विभाग भोपाल एवं संस्कृति मंत्रालय नई दिल्ली के सहयोग से किए इस महोत्सव में कुलपति विक्रम विवि, माच कलाकार कृष्णा वर्मा, रंगकर्मी शीला व्यास, कवियत्री माया बधेका, नृत्य गुरु पूनम व्यास, अधीक्षक भू-अभिलेख प्रीति चौहान, कवि दिनेश दिग्गज, व्यंगकार हरीश कुमार सिंह, माधव तिवारी, अर्चना तिवारी, एकता पोद्दार, डॉ. संगीता पलसानिया सहित बड़ी संख्या में महिलाएं मौजूद थी। संचालन सुदर्शन अयाचित, दुर्गेश सूर्यवंशी ने किया। आभार नृत्यगुरु डॉ. हरिहरेश्वर पोद्दार ने माना।

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