जिस के पास मालवा-निमाड़ की सीटें, उसकी बनी सरकार

धार, (आशीष यादव) अग्निपथ। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों का रण इस बार बेहद रोमांचक होने जा रहा है। एक ओर जहां कांग्रेस पार्टी अपने जी जान से इस विधानसभा चुनावों में सरकार बनाने की जुगत में है। वहीं बीजेपी में मैदान में डटे हुए हैं। प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी मैदान में जिन जान लगाकर प्रचार कर रहे।

मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में एक क्षेत्र सबसे अहम माना जाता है। वो है मालवा-निमाड़ इलाका, जहां इंदौर और उज्जैन संभाग के तहत 66 विधानसभा सीट आती हैं। किसानों और आदिवासियों से भरे मालवा-निमाड़ में क्यों कांग्रेस और भाजपा को अपना राजनीतिक भविष्य दिख रहा है।

मध्यप्रदेश की 230 सदस्यों वाली विधानसभा में 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। प्रदेश की कुल सीटों में इनकी हिस्सेदारी 20.5 प्रतिशत है। इन 47 सीटों में से सबसे अधिक 22 सीटें मालवा-निमाड़ में आती हैं। इसके बाद महाकौशल में 13, विध्य में नौ और मध्य भारत में तीन सीटें आती हैं।

इस हिसाब से मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में से 46.8 प्रतिशत मालवा-निमाड़ में पड़ती हैं। विधानसभा चुनावों के मद्देनजर मालवा-निमाड़ में आदिवासी वोटरों को प्रभावित करने के लिए हर पार्टी भरसक प्रयास कर रही है।

पिछले तीन चुनाव की बात करे

पिछले तीन चुनावों की बात करें तो जिस दल ने मालवा-निमाड़ की आदिवासी सीटों पर कब्जा जमाया, उसकी ही सूबे में सरकार बनी है। 2008 में भाजपा ने प्रदेश में आरक्षित 47 में से 29 और 2013 में 31 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2018 में भाजपा को इनमें से 16 स्थानों पर ही संतोष करना पड़ा। कांग्रेस ने 30 स्थानों पर सफलता प्राप्त की और इस तरह प्रदेश में सत्ता में लौटी। कमलनाथ प्रदेश के मुखिया बने थे। हालांकि, बाद में कुछ विधायकों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया का समर्थन करते हुए पार्टी छोड़ी और कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई। कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ा था।

इस बार विंध्य पर रहेगी नजर

इस बार राष्ट्रीय स्तर को बड़े नेताओं की नजर विंध्य पर भी है क्योंकि विंध्य की नौ आदिवासी सीटों को साधने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शहडोल दौरा किया था। उन्होंने इस दौरान आदिवासियों से संवाद भी किया था। इसके बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने मोहनखेड़ा आकर सीधे-सीधे मालवा- निमाड़ की 22 आदिवासी सीटों के साथ-साथ अन्य 44 सीटों को साधने का प्रयास किया। वही धार राजगढ़ में प्रियंका गाँधी की सभा करके धार, झाबुआ , अलीराजपुर, इंदौर, खरगोन, बड़वानी, रतलाम जैसे आदिवासी जिलों की जनता के सात सभा को संबोधित करा था।ओर उनके वोट बैंक साधने की कोशिश की।

निर्दलीय भी जीत रहे चुनाव

अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सीटों को लेकर दिलचस्प पहलू यह है कि पिछले तीन चुनावों से निर्दलीय उम्मीदवार लगातार चुनाव में जीत रहे हैं। 2008 में टिमरनी से संजय शाह मकड़ाई, 2013 में थांदला से कलसिंह भावर और 2018 में भगवानपुरा केदार चीड़ाभाई डावर जीते थे।

आदिवासी सीटों की रोचक जानकारी टिमरनी से निर्दलीय संजय शाह मकड़ाई 2008 में जीते थे। 2013 में संजय शाह भाजपा से चुनाव लड़े और जीते। संजय शाह हरदा की मकड़ाई रियासत से हैं। 2013 में कलसिंह भावर को थांदला से भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते। 2003 में वे भाजपा से चुनाव जीते थे। 2018 में मालवा-निमाड़ में अजजा क्षेत्रों में डाले गए मतों में से कांग्रेस को 35 लाख 27 हजार 225 मत तो भाजपा को 31 लाख 82 हजार 487 मत मिले थे। इस तरह कांग्रेस को 34 हजार 478 अधिक मत प्राप्त हुए थे।

मालवा-निमाड़ सीटों पर टारगेट

भौगोलिक दृष्टिकोण और आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के कारण मालवा और निमाड़ के 66 सीटे अहम भूमिका निभाती है। अभी मालवा निमाड़ क्षेत्र में 66 विधानसभा सीट है जिसमे इंदौर संभाग की 37 विधानसभा सीट हैं। इनमें धार जिले की 7 विधानसभा सीट, इंदौर जिले में 9 विधानसभा सीट , झाबुआ जिले की 3 विधानसभा सीट, अलीराजपुर जिले में 2 सीट, बड़वानी जिले की 4 सीट, खरगोन जिले की 6 सीट, खंडवा जिले की 4 सीट, बुरहानपुर जिले की 2 सीटें शामिल हैं। 2018 के चुनावों में इनमें से 35 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं।

2018 विधानसभा चुनाव में इंदौर संभाग की 37 सीट जिसमें से 15 सीट पर भाजपा और 22 सीट कांग्रेस को मिली थी मालवा-निमाड़ की 66 सीटो पर भाजपा-कांग्रेस जीत की रणनीति बना रही है इसके लिए धार जिले में दोनों पार्टियो के नजर है। राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की नजर मालवा निमाड़ के बड़े हिस्से को कवर करने की कोशिश कर रहे।

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