अप्रासंगिक हो चुके जितिन का भाजपा की नाव में सवार होना मजबूरी

नाम- जितिन प्रसाद
पिता का नाम- जितेन्द्र प्रसाद
जन्म-29-11-1973
उम्र- 48 वर्ष
शिक्षा-स्नातक
जीवन संगिनी- पूर्व पत्रकार नेहा सेठ
राजनैतिक कॅरियर- राज्य मंत्री यू.पी.ए. सरकार में
वर्तमान में- भाजपा नेता

136 वर्ष पुरानी जर्जर और वृद्ध काँग्रेस पार्टी को उत्तरप्रदेश के एक और युवा नेता जितिन प्रसाद ने अलविदा कहकर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। अखबार नवीस इसे उत्तरप्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में काँग्रेस पार्टी के लिये बड़ा झटका बता रहे हैं।

अरे भाई झटके का डर उसे रहता है, जिसके पास खोने के लिये कुछ हो। उत्तरप्रदेश की वर्तमान विधानसभा में ले-देकर काँग्रेस के जमा कुल 7 ही तो विधायक हैं, ज्यादा से ज्यादा एक-दो और कम हो जायेंगे इससे ज्यादा क्या नुकसान हो सकता है? ईसाई समाज के चर्च की तर्ज पर ‘जो चाहे सो आवे’ का भारतीय जनता पार्टी राजनीति में अनुसरण कर रही है।

मध्यप्रदेश में दलबदलुओं के दम पर सत्ता वरण करने वाली भाजपा इसे सत्ता के ताले की चाभी समझ बैठी है, जबकि हाल ही में हुए पश्चिम बंगाल में उसका यह दाँव उल्टा पड़ चुका है। तृणमूल काँग्रेस छोडक़र आये भाजपा के टिकट पर जीते 35 से अधिक विधायक वापस भाजपा छोडक़र तृणमूल काँग्रेस में जाने की तैयारी में है। यदि आने वाले दिनों में ऐसा हुआ तो भाजपा के पास 77-35=32 विधायक ही रह जायेंगे जो पार्टी के लिये बड़ा सदमा होगा।

बंगाल में तृणमूल पार्टी छोडक़र भाजपा में आये अनेक दिग्गज नेता चुनाव हार गये हैं पश्चिम बंगाल के जागरूक मतदाताओं ने दलबदलुओ को एक सिरे से नकार दिया है।

48 वर्षीय जितिन प्रसाद भी अपने पिता और दादा की पुण्यायी से ही आगे बढ़े हैं। जितिन के दादा ज्योति प्रसाद भी काँग्रेस के बड़े नेता हुआ करते थे, जितिन की परनानी पूर्णिमा देवी रविन्द्रनाथ जी टैगोर के भाई हेमेन्दनाथ टैगोर की बेटी थी। जितिन के पिता जितेन्द्र प्रसाद जी दो पूर्व प्रधानमंत्रियों राजीव गाँधी और पी.वी. नरसिम्हाराव के राजनैतिक सलाहकार रहने के साथ ही अखिल भारतीय काँग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं।

जितिन के पिता जितेन्द्र प्रसाद जी वर्ष 2000 में सोनिया गाँधी के खिलाफ काँग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव भी हार चुके हैं। वर्ष 2001 में जितेन्द्र प्रसाद जी का निधन हो गया था। पिता की सेवाओं को देखते हुए 2001 में जितिन प्रसाद को युवक काँग्रेस का सचिव बनाया गया, 2004 में 14वीं लोकसभा के लिये उन्हें उनके गृह नगर की शाहजहांपुर सीट से काँग्रेस पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया और वह जीतकर 31 वर्ष की उम्र में लोकसभा पहुँचने में कामयाब रहे। 2008 में उन्हें केन्द्रीय इस्पात राज्य मंत्री बनाया गया।

2009 में 15वीं लोकसभा के लिये भी काँग्रेस ने धौरहरा सीट से उन्हें चुनावी मैदान में उतारा और वह दूसरी बार भी विजयी हुए यू.पी.ए. सरकार में राज्यमंत्री के रूप में उन्होंने सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय में भी सेवाएं दी।

देहरादून स्कूल में राहुल गाँधी के जूनियर रह चुके जितिन को उत्तरप्रदेश में शांतिप्रिय, विकासवादी राजनीति के लिये जाना जाता था, परंतु जितिन अब उत्तरप्रदेश की राजनीति में अप्रासंगिक हो चुके हैं। 2014 में वह धौरहरा सीट से लोकसभा चुनाव हार चुके हैं उसके बाद उन्होंने 2017 के चुनाव में शाहजहांपुरा की तिलहर विधानसभा सीट से अपनी किस्मत अजमायी पर जितिन वह चुनाव भी हारे, 2019 में जितिन को काँग्रेस ने फिर मौका दिया और धौरहरा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया जितिन के भाग्य ने फिर धोखा दिया और वह 2019 का चुनाव भी हार गये, दो बार लोकसभा और एक बार विधानसभा चुनाव हारने वाले जितिन की भाभी भी जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हार चुकी हैं।

पूरी तरह से मतदाताओं द्वारा नकार दिये जाने के बाद खोटा सिक्का साबित हो चुके जितिन का भाजपा का दामन थामना सिर्फ उनकी राजनैतिक मजबूरी थी। देखना होगा कि उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा, काँग्रेस पार्टी में पूरी तरह हाशिए पर आ चुके इस युवा नेता का क्या उपयोग करती है।

– अर्जुनसिंह चंदेल

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