इसका हल खोजने में, निकल जाता है दम, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ही है स्थाई हल!

एसडीएम ने की खूब माथापच्ची रिजल्ट कर्मचारी लाव, अस्पताल बचाओ

उन्हेल, (संजय कुंडल) अग्निपथ। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का जब मामला आता है तो इसका हल खोजने में निकल जाता है। दम पर आखरी में एक ही बात सामने आकर खड़ी हो जाती है जब तक यहां पर स्टाफ नहीं बढ़ेगा तब तक इसका कोई हल नहीं निकलेगा। इसका हल एक ही है वह है सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ।

पर यह लड़ाई इतनी आसान नहीं है कि एसडीएम कलेक्टर चि_ी लिखें और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बन जाए क्योंकि इसमें तकनीकी दिक्कत चलते चलते मुंह फाड़ कर खड़ी हो जाएगी। विभागीय सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को लेकर प्रस्तावित केंद्र की सूची जारी भी हो चुकी है। पर उसमें उन्हेल का नाम अंकित नहीं है पर स्थानी लोगों की मांग के चलते कुछ समय से प्रभारी मंत्री के दिलो-दिमाग में उन्हेल का कल्याण करने का मन बना है, पर प्रभारी मंत्री जी यह कल्याण चुनाव के पहले कर देना नहीं तो यह भी चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा बन के ना रह जाए।

बुधवार को नागदा एसडीएम आशुतोष गोस्वामी ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का औचक निरीक्षण किया तो हल खोजने में व्यवस्था के साथ इमरजेंसी आदि पर खूब माथापच्ची हुई पर कोई हल नहीं निकला। सिर्फ और सिर्फ प्रारूप बना और निर्देश जारी हुआ बेचारा एसडीएम करें भी तो क्या करें क्योंकि जिला स्वास्थ्य मुख्यालय का इलाज कलेक्टर करे तो उन्हेल में पैदा हुई बीमारी खुद ही खत्म हो जाए।

एक चिकित्सक और आएगा हल निकल जाएगा

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उन्हेल में ओपीडी का संचालन ही चलता है उसमें उन्हेल सहित ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को उपचार का सुख मिल जाता है। कई बार तो चिकित्सक के अवकाश पर रहने पर फिर भी ओपीडी को फार्मेसिस्ट धक्का लगा कर चला देते हैं। पर अस्पताल लावारिस तो रात में हो जाता है क्योंकि स्टेट हाईवे होने के कारण इस मार्ग पर आए दिन जो दुर्घटना होती है गंभीर घायल लोगों को जब उन्हेल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उपचार के लिए लाया जाता है। तो रात में यहां पर चिकित्सक नहीं मिलते हैं जबकि इस केंद्र पर दो चिकित्सक रेणुका मीणा और अतुल पटेल पदस्थ है मीणा के लिए तो आवास है पर पटेल के पास आवास का इंतजाम जिला स्वास्थ्य अधिकारी संजय शर्मा ने मीडिया को आश्वासन दिया था कि इनकी व्यवस्था बना दी जाएगी।

पर आश्वासन ही रह गया इसलिए वह अप डाउन करते हैं और इसी में वह डाउन हो जाते हैं चक्र पद्धति से व्यवस्था बनाई जाए तो रात की इमरजेंसी संभाले जा सकती है इसके लिए एक चिकित्सक को लाना पड़ेगा नहीं तो रात मैं लावारिस नर्स रेफर उज्जैन का पर्चा बनाकर देती रहेगी।

कुछ नहीं तो ट्रेसर ही ले आओ

लगता है जिले से लेकर स्थानीय प्रशासन के अधिकारी यहां पर जो है उसी में व्यवस्था बनाने की जुगत लगाते हैं पर जो है उसमें कुछ नहीं हो सकता ज्यादा सुधारने जाओगे तो और बिगड़ जाएगा कभी जिला प्रशासन यहां पर एक अतिरिक्त चिकित्सक नहीं दे सकते तो कोई बात नहीं रात्रि में चिकित्सक नहीं होगा तो एक ट्रेसर की पदस्थापना करा दो घायलों को मलहम पट्टी तो कर देगा और कब तक अल्टरनेट व्यवस्था का काम बनाने की जुगत बनाएगा प्रशासन उन्हेल वासियों को झूठा आश्वासन का काम बंद करो विजिट करो रिपोर्ट बनाओ मुख्यालय को भेज दो फिर कोई बड़ी घटना हो तो आदेश निर्देश जारी कर दो जय हो प्रशासन की।

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