अर्जुन के बाण: हे महाकाल! तेरे ही आंगन में अदृश्य आसुरी शक्तियों का नंगा नाच क्यों?

अर्जुन सिंह चंदेल

करोड़ों देशवासियों की आस्था के केन्द्र बिंदु मृत्युलोक के राजा भूतभावन महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में रविवार की अल सुबह भस्मारती के पश्चात कपूर आरती के दौरान लगी आग कोई साधारण घटना नहीं है। उज्जैयिनी के अधिष्ठाता के गर्भगृह में आगजनी से एक दर्जन से अधिक पंडे पुजारी और मंदिर समिति के कर्मचारी झुलस गये हैं जिसमें तीन-चार गंभीर है।

इस अग्निकांड को भगवान शंकर के प्रकोप के रूप में देखा जा रहा है। लापरवाही के चलते हुयी इस दुर्घटना ने बीते कुछ वर्षों से मंदिर प्रांगण में चल रही अराजकता की स्थिति और मंदिर की सत्ता पर अदृश्य आसुरों शक्तियों द्वारा चलायी जा रही सामांनतर व्यवस्था की परत दर परत कलई खोल दी है। इसके पूर्व भी सन् 1990 में सोमवती अमावस्या पर मंदिर प्रांगण में मची भगदड़ में 30 से अधिक लोगों ने अपने प्राण गंवा दिये थे उस समय भी इसे भोलेनाथ का तीसरा नेत्र खुलना माना गया था।

रविवार की अलसुबह जब यह कांड हुआ तब मंदिर प्रशासक स्वयं वहाँ मौजूद थे। इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी मुख्यमंत्री माननीय मोहन यादव जी के दो सुपुत्र एवं उनकी बिटिया थी जिन्होंने भागकर अपने प्राणों की रक्षा की। इस घटना के बहुत सारे अनुतरित प्रश्न मुँह बायें खड़े हैं जिनका जवाब हर देशवासी को जानने का अधिकार है।

१. मंदिर में फूलों से होली खेली जानी चाहिये फिर गुलाल से क्यों?
२. दो क्विंटल से अधिक गुलाल का भुगतान किसने किया?
३. हर्बल की जगह केमिकलयुक्त गुलाल उपयोग की अनुमति किसने दी?
४. गलियारों में खड़ा वह पंडा/पुजारी कौन था जिसने प्रेशर वाली पिचकारी से आरती की थाली पर गुलाल फेंका?
५. क्या दीवारों पर चढ़ी चाँदी की परत प्लास्टिक कोटेड थी जिसने आग को विकराल रूप दिया। यह प्लास्टिक कोटेड करने की अनुमति किसने दी थी?

इनमें से अधिकांश सवालों के जवाब सीसीटीवी आसानी से दे सकते हैं।

महाकाल गर्भगृह में शिवलिंग के ऊपर स्थापित रूद्र यंत्र जो काला पड़ चुका है वह इस घटना का अलौकिक साक्षी है। गर्भगृह की काली पड़ चुकी चाँदी की दीवारें जो कि चिपक चुके प्लास्टिक के कारण बैरंग हो चुकी है चीख-चीख कर घटना की कहानी सुना रही है।
वातानुकूलित कमरे में बैठकर संवादहीनता का शौक रखने वाले प्रशासनिक अधिकारी मंदिर से संबंधित बहुत सारी सूचनाओं से वंचित रह जाते है जो इस शहर और मंदिर की व्यवस्थाओं को चाक चौबंद रखने के लिये शुभ नहीं है।

मंदिर में अराजकता का आलम यह है कि सत्ता पक्ष से जुड़े प्रभावशाली लोग रात11 बजे भी भस्मारती की अनुमति करवाने की सुपारी ले रहे हैं। कतिपय पंड़े पुजारी देश भर से आने वाले श्रद्धालुओं धर्मालुओं से भस्मारती के नाम पर मनचाही राशि वसूल रहे हैं। बाबा की भस्मारती के लिये देश से आने वाले धर्मालु अनुमति के बाद भी एल.ई.डी. स्क्रीन पर ही आरती देख पाते हैं जो कि वह घर पर भी देख सकते हैं।

आगे की पंक्ति में तो न्यायिक, प्रशासनिक, पुलिस अधिकारियों के परिजनों के अलावा राजनैतिक रसूख रखने वालों का ही कब्जा रहता है। साधारण आदमी रात 12 बजे से लाईन में लगकर धक्के खाने के बाद भी भस्मारती नहीं देख पाता है।

मैं मंदिर की व्यवस्थाओं से जुड़े तमाम सरकारी बखुरदारों से निवेदन करता हूँ कि किसी दिन एक साधारण धर्मालु बनकर भस्मारती में पहुँचे वहाँ अराजकता का नंगा नाच देखकर आँखे खुल जायेगी। मंदिर से जुड़े पुराने उम्रदराज पंडे पुजारी भी इन अदृश्य आसुरी शक्तियों के तांडव से व्यथित है पर वह असहाय है। वह तो इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिये कतिपय पंडे/पुजारियों को ही दोषी मानते हैं उनका कहना है जनता का इसमें कोई कसूर नहीं है। अपने-अपने यजमानों के सामने शक्ति प्रदर्शन के लिये कुछ लोग उद्दंड़ता करते हुए अनुशासन की सारी सीमाएं लांघ देते हैं जिसके फलस्वरूप इस प्रकार की घटनाएं होती है।

प्रदेश के मुखिया बाबा महाकाल के अनन्य भक्त लोकप्रिय मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव से हम निवेदन करते हैं कि उज्जैन की प्राण संचार वाहिनी महाकाल मंदिर की व्यवस्थाओं में आमूल-चूल परिवर्तन समय की दरकार है। एक पूर्णकालिक प्रशासक (भारतीय प्रशासनिक सेवा) आई.ए.एस. की तत्काल पदस्थी की जाए जो व्यवस्थाओं को भी चाक चौबंद करें और अनुशासनहीन पंडे पुजारियों पर भी नकेल कसे। आने वाले धर्मालु इस शहर और मंदिर की व्यवस्थाओं के बारे में अच्छा अनुभव लेकर जाये, वर्तमान की तरह कोसते हुए नहीं।

(फाइल चित्र)

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