प्रतिबंध के बाद भी महाकाल में 2 अधिकारियों की भर्ती

उज्जैन, अग्निपथ। महाकालेश्वर मंदिर के सरकारीकरण होने के चलते नियम-कानून को ताक पर रखा जा रहा है। हाल-ही में मंदिर में दो रिटायर्ड अधिकारियों की नियुक्ति की गई है, जो कि नियम विरुद्ध है। क्योंकि पूर्व कलेक्टर संकेत भोंडवे ने मंदिर में भर्ती बंद कर आउटसोर्स से काम लेने की व्यवस्था लागू की थी ताकि वह मंदिर का कर्मचारी नहीं बन सके और कभी-भी उसकी सेवा समाप्त की जा सके।

महाकालेश्वर मंदिर में करीब 4 माह पहले उप प्रशासक पद पर रिटायर्ड एडीएम आरपी तिवारी को पदस्थ किया गया था। इसी के साथ एक अन्य अधिकारी आरके गेहलोत को सहायक प्रशासक बनाकर बैठा दिया गया था। लेकिन दोनों की पदस्थापनाओं को मंदिर के कर्मचारी वैध नहीं मान रहे हैं, क्योंकि तत्कालीन कलेक्टर संकेत भोंडवे ने करीब 4 साल पहले महाकालेश्वर मंदिर में नियुक्तियों को बैन कर दिया था और इसकी कमान आउटसोर्स कंपनी बीव्हीजी कंपनी को दे दिया था। उसके बाद से किसी भी कर्मचारी की भर्ती आऊटसोर्स से की जाती थी। ताकि बाद में वह सेवा से बाहर करने में कोई परेशानी या कानूनी पचड़ा सामने नहीं आ सके।

मंदिर में जितने भी कर्मचारियों की भर्ती हुई है वह बीव्हीजी और फिलहाल ठेका संभालने वाली केएसएस कंपनी को दिया गया है। लेकिन नौकरी पर बैन होने के बावजूद सिफारिश से दोनों-ही अधिकारियों की मंदिर में नियुक्ति की गई, जबकि दोनों का आदेश निकालने वाले वरिष्ठ अधिकारी को इस बात का पूर्ण ज्ञान था कि महाकालेश्वर मंदिर में सीधे-सीधे नियुक्ति बैन कर दी गई और इसका अधिकार केवल आउटसोर्स कंपनी के पास है। दोनों का बकायदा आदेश जारी हुआ था जिसको जनसंपर्क विभाग ने भी प्रकाशित किया था। दोनों ही अधिकारियों को वेतन के रूप में 11-11 हजार रुपए दिए जा रहे हैं।

इन दोनों की जगह किसी योग्य युवा बेरोजगार को इस तरह का मौका दिया जाता तो वह इनसे बेहतर कार्यशैली से काम करता। ऐसे रिटायर्ड अधिकारी जो कि 40 से 50 हजार रुपए पेंशन प्राप्त कर रहे हैं, उनको नौकरी देकर बेरोजगारों के प्रति प्रशासनिक अधिकारियों ने अन्याय ही किया है।

एक अधिकारी को अभी तक नहीं मिला वेतन

आश्चर्य की बात है के प्रशासनिक अधिकारियों ने तो दोनों अधिकारियों को नियुक्त करवा कर उनको वेतन भी दिलवाना प्रारंभ कर दिया है लेकिन आउटसोर्स कंपनी से भर्ती एक सहायक प्रशासनिक अधिकारी को आज तक वेतन नहीं मिला है, जबकि उनको 1 साल से अधिक समय मंदिर में नौकरी करते हो गया है। इस तरह के दो-दो नियम लागू कर वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा राजनैतिक दबाव के चलते अपने पद का दुरुपयोग किया जा कर दूसरों का हक मारा जा रहा है।

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