सावन की बारिश ने शहर की सडक़ों की सूरत बदलकर रख दी है। उसके ऊपर टाटा कंपनी द्वारा किये गये घटिया कार्यों की परत भी सामने आ गई है। जहां-जहां टाटा कंपनी ने काम किया है, उन अधिकांश स्थानों की सडक़ें धंस गई हैं। उन सडक़ों पर बड़े-बड़े गड्ढे हो गये हैं। यही आलम शहर की अन्य सडक़ों की भी बनी हुई है।
शहर के अधिकांश आंतरिक मार्ग अपनी बदहाली की कहानी कह रहे हैं। वर्तमान में नगर निगम में प्रशासक राज लागू है। इस कारण जनप्रतिनिधि शून्य हो गये हैं। वार्ड की समस्याओं को लेकर यदि नागरिक जनप्रतिनिधियों के पास पहुंच भी रहे हैं तो अधिकांश जनप्रतिनिधि जो अब वार्ड आरक्षण के बाद चुनाव नहीं लड़ सकते हैं, वह वार्डवासियों को समझा-बुझाकर रवाना कर रहे हैं।
वहीं जिन जनप्रतिनिधियों को एकबार फिर चुनाव लडऩा है, वह सडक़ों पर थेगड़े लगवाने का जरूर प्रयास कर रहे हैं। हालांकि सडक़ों पर नगर निगम जो मरम्मत कर रहा है, वह एक-दो बारिश तक टिक जाएं इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। नगर निगम की भी अपनी मजबूरियां हैं।
नगर निगम कंगाली के दौर से गुजर रहा है। ठेकेदारों को पिछले कई महीनों से भुगतान नहीं हुआ है। ठेकेदारों के करोड़ों रुपए नगर निगम में अटके हुए हैं। ऐसी स्थिति में अधिकांश ठेकेदारों ने तो नगर निगम में काम करने से हाथ ऊंचे कर दिये हैं।