अ अक्षर से अच्छा है शालाओं का सफल संचालन

 झाबुआ. आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुधार को लेकर हमेशा नित नए प्रयास किये गए। इन प्रयसों में करोड़ो रुपये फूंके भी गए किन्तु यह प्रयास या तो ढकोसले साबित हुए या फिर इन प्रयासों का हश्र ढाक के तीन पात ही रहा। हम पूर्व में भी अपनी नजऱ टेढ़ी कर अवगत करा चुके हंै कि आईएस और आईपीएस या इनके समकक्ष अधिकारियों ने जिले को अपनी योजनाओं, प्रयासों की प्रयोगशाला बना कर सिर्फ और सिर्फ या तो अपने ओहदे में स्टार चमकाए या अपना ओहदा बढ़ाने जिले के नाम अवार्ड, मेडल आदि लेकर अपने भविष्य की ऊंचाइयां तय की है।

जिले में शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर पहले भी कलेक्टर आपणी शिक्षा अपणो स्वास्थ्य तो किसानों के लिए उदवहन सिंचाई योजना, महिलाओं के लिए बयरा नी कुल्हाड़ी, सामाजिक पुलिसिंग, तो किसी ने वृक्ष मित्र, तो किसी ने पर्यावरण सहेजने के प्रयास किये। किन्तु इनमे से सिर्फ एक ही वर्तमान में परिणाम तक पहुंचने के कागार पर है। वह भी इसलिए की यह प्रयाश्स जिला मुख्यालय पर होकर शहरवासियों के लिए प्राथमिकता थी। बाकी अधिकांश प्रयास औंधे मुंह गिरे दिखाई दे रहे हंै।

जिले की साक्षरता और स्वास्थ्य को लेकर सरकारों और उनके निर्देशों, इशारों पर कार्य करने वालों ने कभी प्रौढ़ शिक्षा, तो कभी साक्षरता अभियान, तो कभी स्कूल चलें हम, तो कभी प्रवेसोत्सव मनाया। स्कूल पहुंचने के लिए मधान्ह भोजन व्यवस्था तक कि गयी। लेकिन मधान्ह भोजन व्यवस्था समूहों के नाम दबंगों के हाथों सपने के चलते यह व्यवस्था भी लंगड़ाती नजर आ रही है। इसके कई प्रमाण प्रकाशित भी हो चुके हंै। जिले में एक बार पुन: कलेक्टर ने गल्र्स एजुकेटेड, गल्र्स एनजीओ के माध्यम से जिले के 18 वर्ष से अधिक के असाक्षरों के लिए 15 अगस्त से जिले के पेटलावद, थांदला, मेघनगर विकास खंडों में आ अक्षर अभियान की शुरुआत रथ को हरी झंडी दे कर की।

अभियान के तहत एनजीओ ने तीनों विकासखण्डों से 50-50 गांवों का चयन कर यहां शिक्षकों सहित सरकारी अमले की मदद से साक्षरता कार्य शुरू किया। दावा किया जा रहा कि सभी दूर संकुल केंद्र के अंतर्गत आने वाली शालाओं के शिक्षकों को ग्राम प्रभारी तथा एक एक शिक्षकों केन्द्र प्रभारी बनाया गया। इनमें कितने असाक्षर दर्ज हुए इसका जवाब जवाबदारों के पास नहीं मतलब चोर की दाढ़ी में तिनका।

हमारी नजऱ थांदला विकासखण्ड के थांदला संकुल के ग्राम खजूरी के केंद्र पर शुरू से बनी हुई है। यहां देवदा फलिया, आंगनवाद, मालफलिया में स्कूल आंगनवाड़ी तो नियमित लग रहा किन्तु अ अक्षर गधे के सींग की तरह गायब हंै। जिले में साक्षरता की दर बढ़ाना है तो निश्चित ही जिले में संचालित फलिया और प्राथमिक स्कूलों सहित आंगनवाड़ी केंद्रों पर सही मॉनीटिरिंग कर उनका सफल संचालन हो। 20 सितम्बर से शुरू हुई प्राथमिक स्कूलों की पहले ही दिन पोल खुलती नजर आयी। जुलवानिया बड़ा में स्कूल आंगनवाड़ी भवन में लग रही तो आंगनवाड़ी का कहीं से कहीं पता ही नहीं।

इससे भी आश्चर्य और शर्म की बात तो यह कि विभाग के पोर्टल पर मात्र 23 बच्चे दर्ज हैं। जबकि उपस्थित पंजी में 43 बच्चे दर्ज हैं। यहां बच्चों के कोरोना काल में जो मधान्ह भोजन सामग्री वितरित की गई। उनमे यहां के बच्चों को चावल कभी 40 ग्राम तो कभी 43 ग्राम वितरित किये गए। जिले में तमाम प्रयास शिक्षा के लिए किए गए। बावजूद इसके आजादी के बाद से अब तक जिले की साक्षरता दर 50 फीसदी नहीं पहुंच सकी।

इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है। एक बार पुन: कलेक्टर ने पूर्व कलेक्टरों की भांति साक्षरता बढ़ाने के प्रयास अ अक्षर से शुरू किए तो हमारी टेढ़ी नजऱ से साधुवाद लेकिन अ अक्षर के साथ शालाओं के सफल संचालन पर जोर दे तो तय है जिले में शिक्षा की गंगा अविरल प्रवाहित होती रहेगी।

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