थांदला प्रशासन का कमाल, कागजों में कुछ और धरातल पर कुछ और

थांदला प्रशासन का कमाल, कागजों में कुछ और धरातल पर कुछ और

झाबुआ, अग्निपथ (मनोज चतुर्वेदी)। आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में थांदला एक ऐसा स्थान है जहां किसी भी नियम कानून से हटकर किसी भी विभाग से सम्बंधित कैसा भी अवैध कार्य हो वह आसानी से वैध हो जाता है। धरातल पर कुछ भी हो परन्तु जब सरकारी फ़ाइल टेबल पर चलती है तो निर्णय जैसा चाहो हो जाता है । कार्य वैध है या अवैध है आप केवल दस्तावेज प्रस्तुत करो कोई अधिकारी धरातल पर तस्दीक करने नहीं आएगा। आप जैसा मौखिक रूप से बता देंगे वह मान्य होकर कार्य सम्पन्न हो जाएगा। नियम कानून की किताबों की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है। ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण है। नगर पंचायत और राजस्व विभाग का अमला तो ऐसे मामलों में महारत हासिल करता जा रहा है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए केंद्र स्तर पर भले ही नेशनल ग्रीन ट्रयूबिनल कानून बना हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को अध्यक्ष का दायित्व मिला हुआ है जो पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए कानून का कड़ाई से पालन करने के निर्देश दे रहे हैं।

परन्तु थांदला नगर व क्षेत्र में इस कानून का खुला मखौल उड़ाया जा रहा है और पर्यावरण को नष्ट किया जा रहा है। यही नहीं स्थानीय प्रशासन की आंखों के सामने व जानकारी में पर्यावरण नष्ट ही नहीं हो रहा है। अपितु पर्यावरण को हानि पहुंचाने वालों को प्रशासनिक अधिकारियों का संरक्षण भी मिल रहा है। जिससे यह प्रतीत होता है कि जैसे यह कानून इस क्षेत्र के लिए लागू ही नहीं होता है।

पवित्र नदी को बना दिया नाला-नगर की पवित्र पद्मावती नदी को नगर पंचायत ने नगर की गटरों के पानी को नदी में मिलाकर अपवित्र तो कर दिया। पिछली अनेक परिषदों ने गटारों के गन्दे पानी को नदी से मोडऩे के नाम पर भिन्न भिन्न योजनाएं बनाकर लाखों की राशि का अपव्यय किया। अनेकों बार शुद्धिकरण व गहरीकरण कर सौन्दर्यीकरण के नाम पर जनता को दिवास्वप्न दिखाकर जनधन का दुरुपयोग ही किया है। नगर के जनप्रतिनिधियों, समाजसेवियों, सामाजिक संस्थाओं ने अगर कोई कदम उठाया है तो वह केवल फ़ोटो खिंचवाकर समाचार पत्रों में प्रकाशित करवाने तक ही सीमित रहा है तो नगर पंचायत के जिम्मेदारों ने इस नाम पर अपव्यय का ही योगदान दिया है। पवित्र पद्मावती नदी आज भी अपवित्र रूप में मौजूद है। जिसका पानी पीना तो दूर नहाने-धोने या घरेलू कार्य में भी उपयोग लेने योग्य नहीं है।

पद्मावती, पाट नदी बनी-नगर के मध्य से निकल रहे सागर-अहमदाबाद हाइवे मार्ग के बढ़ते यातायात से बायपास मार्ग की आवश्यकता महसूस होने से बायपास मार्ग का निर्माण किया गया। बायपास के निर्माण के चलते अंतिम छोर पर बहती पद्मावती नदी पर पुल के निर्माण के साथ लोनिवि ने नदी का नाम बदलकर पाट नदी का बोर्ड लगा दिया। बायपास का निर्माण होते ही पूरे मार्ग पर जमीनों पर अवैध कब्जों से लेकर शासकीय नाले तक पर अवैध निर्माण धड़ल्ले से शुरू हो गए। नगर का बड़ा नाला जिसमे बस स्टैंड क्षेत्र के अलावा आसपास के अनेक ग्रामीण अंचलों व राजपुरा, अयोध्या बस्ती का पानी तेज बहाव में आता है। उस नाले को भी अवैध निर्माणकर्ताओं ने आरसीसी की दीवारों से सकरा कर निर्माण करते हुए सभी नियम कानून को भूमि मालिकों ने खूंटी पर टांग दिए। बायपास हाइवे मार्ग की सड़क से पांच दस फिट की न तो जगह छोड़ी जा रही है और न ही पार्किंग का स्थान रखा जा रहा है। जिम्मेदारों ने आंख, कान, मुंह बन्द कर लिए। सही शिकायतों को नजर अंदाज कर शिकायतकर्ताओं को झूठ साबित करना शुरू कर दिया गया।

पद्मावती पाट से नाला बन गई-बायपास के अंतिम छोर पर पद्मावती पुल के उस पार की भूमि जो ग्रामीण अंचल के जुलवानिया पंचायत में शामिल है। वहां नदी के धड़ पर बायपास हाइवे के किनारे पुल से लगती भूमि पर सभी नियम कायदों व एनजीटी कानून की धज्जियां उड़ाते हुए एक शॉपिंग काम्प्लेक्स का निर्माण शुरू हो गया। आपत्तियां दर्ज होने पर कुछ समय के लिए तहसील न्यायालय ने स्थगन आदेश जारी कर दिया। भूमि मालिक ने लिखित जवाब में तहसील न्यायालय को बताया कि एनजीटी कोई अनुमति प्रदान नहीं करती है मान्य हो गया। भूमि मालिक ने पंचायत की अनुमति व रजिस्ट्री की प्रति पेश कर साबित कर दिया कि उसकी निजी भूमि जो निर्माण कार्य चल रहा है। वह भूमि नदी की धड़ पर नहीं अपितु नाले पर है।

रजिस्ट्री की चर्तुसीमा में पूर्व व पश्चिम दिशा में बहता नाला दर्शा कर यह साबित कर दिया कि शिकायत झूठी है। भूमि मालिक ने चतुराई से तहसील न्यायालय से स्थगन आदेश निरस्त करवाकर निर्माण पुन: शुरू कर दिया। अगर रजिस्ट्री में नदी दर्शाई जाती तो एनजीटी का कानून बाधक बनता। इस मार्ग से आए दिन तहसीलदार, एसडीएम से लेकर कलेक्टर तक क्षेत्र के भ्रमण पर गुजरते हैं। परन्तु क्षेत्र के किसी जिम्मेदार अधिकारी ने निर्णय देने के पूर्व मौका निरीक्षण कर यह देखने का प्रयास नहीं किया कि निर्माण स्थल पर नाला है या नदी। हाइवे मार्ग पर नदी व पुल के किनारे जहां शॉपिंग काम्प्लेक्स बनाया जा रहा है। वहां दोनों ओर खतरनाक मोड़ है जो निश्चित ही आए दिन दुर्घटना को न्योता देंगे। निर्माण पूर्ण होने के बाद जब उक्त स्थान पर दुर्घटनाएं होने लगेगी तब प्रशासन क्या करेगा।

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