अस्पताल में ऑक्सीजन के लिए सिलेंडर पर निर्भरता खत्म : झाबुआ में 1000  और थांदला-पेटलावद में 500-500 लीटर प्रति मिनट के प्लांट लगे

नया प्लांट हवा से ही खींचता है आक्सीजन

झाबुआ, अग्निपथ। जिला अस्पताल झाबुआ और थांदला व पेटलावद सिविल अस्पताल में नए ऑक्सीजन प्लांट का संचालन शुरू हो गया है। इन तीनों प्लांट की खासियत यह है कि ऑक्सीजन उत्पादन के लिए लिक्विड ऑक्सीजन पर निर्भरता नहीं है।

हवा से शुद्ध ऑक्सीजन अलग कर टैंक में स्टोर करती है और लाइन के जरिये मरीजों तक भेजी जाती है। झाबुआ में 1000 एलपीएम (लीटर प्रति मिनट) क्षमता का और थांदला व पेटलावद में 500-500 एलपीएम के प्लांट लगे हैं। इन्हें डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन) ने लगाया है।

जिला अस्पताल के प्लांट की क्षमता एक समय में 190 मरीजों को ऑक्सीजन देने की है। जरूरत के मुकाबले यह कितनी ज्यादा है, आप इस तरह समझ सकते हैं कि प्लांट को दिनभर में सिर्फ एक घंटे के लिए चलाने पर ही जरूरत पूरी हो रही है। यदि प्लांट में वॉल्व लग जाए तो सिलेंडर रिफलिंग कर बेचने से ही प्लांट का खर्च निकल जाएगा
पीएसए सिस्टम का नाम प्रेशर स्विंग एड्जॉर्बर। यह इस मशीन के सिस्टम को कहा जाता है। इसमें वातावरण की हवा को खींचकर सिलेंडर के निचले हिस्से में खींचा जाता है। दो मेंड्रेन सिलेंडर लगे हुए हैं।

जियोलाइट मॉलिक्यूल्स करते हैं खास काम

इन सिलेंडर में जियोलाइट मॉलिक्यूल्स भरे होते हैं। यह साबूदाने की तरह के पार्टिकल्स हैं। सिलेंडर में नीचे से हवा जाती है। वातावरण की हवा में 21 प्रतिशत ऑक्सीजन, 78 प्रतिशत नाइट्रोजन और 1 प्रतिशत ऑर्गन गैस होती हैं। जियोलाइट मॉलिक्यूल्स नाइट्रोजन और ऑर्गन गैस को सोख लेते हैं।

ऑक्सीजन ऊपर के रास्ते से स्टोरेज टैंकर में चली जाती है। दो सिलेंडर इसलिए होते हैं कि एक सिलेंडर के जियोलाइट मॉलिक्यूल्स ऑक्सीजन रिलीज करने के बाद नाइट्रोजन और अन्य गैस को फिर से वातावरण में छोड़ते हैं। जब तक वो ऐसा करते हैं, तब तक दूसरे सिलेंडर में ऑक्सीजन बनाने की प्रक्रिया चलती है। पवनेंद्र ने बताया, जियोलाइट मॉलिक्यूल्स 7 से 10 साल तक काम करते हैं।

प्योरिटी एनालइजर मीटर

स्टोरेज टैंक में एक हजार लीटर ऑक्सीजन जमा होती है। इसकी शुद्धता 90 से 96 के बीच होना चाहिए। शुद्धता जांचने के लिए प्योरिटी एनालाइजर मीटर लगा है। शुद्धता सटीक नहीं होने पर मरीजों को नहीं दे सकते। यहां से वार्ड के बेड्स तक लाइन डली है। स्क्रीन पर पूरा ब्यौरा दिखाई देता है कि कितने मरीजों को कितनी ऑक्सीजन दी जा रही है।

फिर भी ढाई लाख के सिलेंडर हर महीना ले रहा अस्पताल

नया प्लांट जिला अस्पताल की जरूरत दिन में एक घंटा संचालन से पूरी कर रहा है। क्षमता ज्यादा होने के बावजूद भी जिला अस्पताल में लगभग ढाई से तीन लाख रुपए के लिक्विड ऑक्सीजन के सिलेंडर खरीद रहे हैं। कारण यह कि एसएनसीयू में लाइन नहीं डाली गई। कुछ अन्य वार्ड में भी अचानक जरूरत होने पर सिलेंडर काम आते हैं।

सीएमएचओ डॉ. जयपालसिंह ठाकुर ने बताया, एसएनसीयू सहित सभी वार्ड में कनेक्शन करेंगे। सिलेंडर पर निर्भरता पूरी तरह से खत्म करेंगे। इस प्लांट से ऑक्सीजन सिलेंडर भरे जा सकते हैं। लेकिन इसके लिए बूस्टर पम्प लगाना होगा। इसकी कीमत कुछ ज्यादा है। लेकिन इसके लगने से इस प्लांट के संचालन का खर्च यहीं से निकल सकेगा।

जिले के दूसरे छोटे अस्पतालों को भी सिलेंडर दिए जा सकेंगे। दरअसल प्लांट संचालन में बिजली खर्च काफी ज्यादा है। फिर भी यह सिलेंडर खरीदने से काफी कम है। यहां से सिलेंडर भरे जाने लगे तो औद्योगिक उपयोग के अलावा निजी अस्पतालों को भी सप्लाय किए जा सकेंगे।

हालांकि यह प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा है और इस पर निर्णय अधिकारी ही नियमानुसार ले सकते हैं। जिला अस्पताल में प्लांट संचालन के लिए मानदेय काफी कम होने से कर्मचारी भी छोडऩे का विचार कर रहे हैं।

सिटी स्केन मशीन का दावा था, अब तक नहीं आई

जिला अस्पताल में सीटी स्केन मशीन लगाने के लिए ऑर्डर 5 महीने पहले दिया गया, लेकिन यह अब तक नहीं लगी। प्रदेश सरकार ने 30 जिलों के लिए कुछ कंपनियों को आउटसोर्सिंग के माध्यम से संचालन के ऑर्डर दिए थे। झाबुआ का काम थीटा लैब्स प्रायवेट लिमिटेड को मिला। 32 स्लाइस की क्षमता वाली मशीन से एक सीटी स्केन का शुल्क 693 रुपए रखा गया। लेकिन यह अब तक नहीं आई।

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