मतदान की तीसरी वर्षगांठ पर प्रदेशवासियों को बधाई

मध्यप्रदेश विधानसभा के लिये हुए मतदान की आज तीसरी वर्षगांठ है। वर्ष 2018 में आज ही के दिन यानि 28 नवंबर को हमने हमारे विधानसभा क्षेत्रों के प्रथम नागरिकों के चयन हेतु मतदान किया था। मध्यप्रदेश के अलावा चार अन्य राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, मिजोरम की विधानसभाओं के लिये भी मतदान साथ ही हुआ था।

मतगणना 11 दिसंबर 2018 को हुई थी। विधायकों ने 7-8 जनवरी 2019 को शपथ ली थी और पहली बैठक 11 जनवरी को आहूत की गयी थी।1825 दिनों के लिये निर्वाचित विधायकों ने अपने कार्यकाल के लगभग 1095 दिन पूर्ण कर लिये हैं। 11 दिसंबर 2018 के दिन हुयी मतगणना में भारतीय जनता पार्टी को 41.0 फीसदी और काँग्रेस को 40.9 फीसदी मत प्राप्त हुए थे।

75.05 प्रतिशत हुए मतदान में भारतीय जनता पार्टी ने 1 करोड़ 56 लाख, 42 हजार 920 (1,56,42,920) और काँग्रेस को 1 करोड़ 55 लाख 95 हजार 153 (1,55,95,153) वोट मिले थे। कम प्रतिशत और भाजपा की तुलना में कम वोट मिलने पर भी काँग्रेस 230 में से 114 सीटें पाने में सफल रही थी जबकि भाजपा को 109 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। यदि 2013 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव परिणामों की बात करें तो काँग्रेस को 56 सीटों का फायदा हुआ था वह 58 से 114 पर पहुँच गयी थी वहीं भाजपा को 56 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा और वह 165 से गिरकर 109 पर आ गयी थी।

मध्यप्रदेश में पहली बार विधानसभा के लिये चुनाव हुए थे तब मध्यप्रदेश को मध्यभारत कहा जाता था और तब मतदाताओं की संख्या मात्र 1.55 करोड़ थी जो कि बीते 70 सालों में बढक़र तीन गुना से अधिक, 5 करोड़ से ऊपर हो गयी है।

1951 में हुए विधानसभा चुनावों में 1.55 करोड़ मतदाताओं में से 45.11 फीसदी मतदाताओं ने अपने तों का उपयोग किया था। तब 184 विधानसभा सीटों के लिये हुए मतदान में काँग्रेस पार्टी ने 184 सीटों में से 148 पर विजय हासिल की थी और आज की भारतीय जनता पार्टी तब की जनसंघ इन चुनावों में अपना खाता भी नहीं खोल पायी थी। जनसंघ का एक भी उम्मीदवार विजयी नहीं हो पाया था। किसान मजदूर प्रजा पार्टी 8 सीटों पर और सोशलिस्ट पार्टी 2 सीटों पर विजय पाने में सफल रही थी।

1951 में हुए इस विधानसभा चुनाव की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि 69 लाख, 95 हजार 588 (69,95,588) मतों में से एक भी वोट अवैध नहीं था। मध्यप्रदेश की 15वीं विधानसभा में मुख्यमंत्री काँग्रेस कमलनाथ थे बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया का अपने साथी विधायकों के साथ काँग्रेस से इस्तीफा, विधायकी से इस्तीफा बाद में रिक्त हुयी 22 सीटों के उपचुनाव में भाजपा को सफलता और पुन: भारतीय जनता पार्टी के शिवराज सिंह जी चौहान मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए जो आज तक काबिज है।

जनप्रतिनिधियों की उल्टी गिनती शुरू हो गयी हे 1825 दिनों में से 1095 दिन बीत चुके हैं मात्र 730 दिन बचे हैं। समय का पहिया बड़े तेजी से घूमता है यह बाकी बचे दिन भी निकल जायेंगे पता ही नहीं चलेगा।

जनप्रतिनिधियों को वापस लौटकर चुनावी रण में लौटना है इसलिये इस समय की मांग है कि विधायक आत्मचिंतन करें और 2018 में मतदाताओं से किये गये वायदों को याद करें यदि उनके द्वारा की गयी घोषणाओं के अमल में कोई कौर कसर रह गयी है तो प्रण-प्राण से उसे पूरा करने का प्रयास करें।

मतदाताओं द्वारा उनके प्रति व्यक्ति किये गये विश्वास को कायम रखने का जतन करें क्योंकि प्रजातंत्र में मतदाता ही सर्वोपरि है उससे ताकतवर कोई नहीं है। भारतीय मतदाताओं ने अच्छे-अच्छे राजनेताओं, लक्ष्मीपुत्रों को धूल चटा दी है अत: विधायकों के लिये बाकी बचा समय कुछ कर गुजरने का है।

– अर्जुनसिंह चंदेल

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