सैया भए कोतवाल तो डर कहे का….

झाबुआ। एक कहावत सैया भए कोतवाल तो डर कहे का पाठकों ने न केवल स्कूली शिक्षा में पड़ी होगी वरन जीवन मे कई मर्तबा सुनने भी मिली होगी। यही कहावत इन दिनों थांदला के एक सरकारी कर्मचारियों के एक सोश्यल ग्रुप में एक पोस्ट के बाद अचानक मचे हडक़म्प और अधिकारियों के संज्ञान में आने के बाद भी दोषी एडमिन व पोस्टकर्ता पर कोई कार्रवाई न होना कहावत को चरितार्थ कर रहा है।

ऐसा नहीं है कि कर्मचारियों के शासकीय कार्य के ग्रुपों में ऐसी पोस्ट वायरल होने का यह कोई पहला मामला नहीं है। पूर्व में भी एकाधिक मामले आ चुके हैं किंतु एक ही थाली के चट्टे बट्टे कहावत को सच साबित कर लीपापोती कर कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। नतीजा सरकारी कर्मचारियों के सरकारी कार्यों के ग्रुप में अश्लीलता के नंगे नाच वायरल होने का नाम ही नहीं लेते।

जब-जब मामले उजागर होते जिम्मेदार यह कह कर पल्ला झाड़ लेते कि मोबाइल बच्चे के हाथ में था उसने कर दिया होगा, कर्मचारी इतना सीधा है कि उसे मोबाइल चलना ही नहीं आता। तब आश्चर्य होता कि ऑनलाइन शिक्षा देने और शासकीय कार्य करने वाले कर्मचारी की यह कैसी अज्ञानता।

सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह कि ग्रुप एडमिन जब वरिष्ठम अधिकारी और उनके अधीनस्थ अधिकारी कर्मचारी हो और समय रहते लगाम नहीं लगे तो सोचा जा सकता कि यह सिलसिला कैसे रुकेगा।

दर असल बीते दिनों जिले के थांदला अनुभाग में निर्वाचन कार्य संबंधी नाम जोडऩे, घटाने, दावे आपत्ति लेने का कार्य करने हेतु बूथ लेवल अधिकारी यानी बीएलओ ग्रुप बना हुआ है। इस ग्रुप में एडमिन अनुविभागीय अधिकारी भी होकर तहसिलादर सहित अनुभाग के 167 कर्मचारी जुड़े हैं।

ग्रुप में अचानक 4 दिसम्बर को शनिवार को एक कर्मचारी द्वारा बीएलओ ग्रुप में अश्लील पोस्ट की जाती है। उसके तुरन्त बाद एक और कर्मचारी द्वारा वही पोस्ट पेस्ट की जाती है। उसके बाद ग्रुप में हडक़म्प मचता है। ग्रुप एडमिन जो कि अनुविभागीय अधिकारी है को रात 9 बजकर 50 मिनिट तक भनक ही नहीं लगती।

जानकारी देने पर सफाई में कहते हैं विधान सभा क्षेत्र में दो ग्रुप है मेघनगर, थांदला किस ग्रुप की बात है। जब बात थांदला की आती तो कहते नजर आए मेरे पास दो सौ ग्रुप है किस-किस को देखु, ग्रुप एडमिन होने की बात बताने पर उत्तर आता है मैं देखकर बताता हूं।

अब साहब ने ऊक्त पोस्ट देखी या नहीं यह तो पता नहीं किन्तु बताना ही भूल गए या जान कर अनजान बन गए। उसी तरह जैसे कहा जाता है येड़ा बनकर पेड़ा खाना। सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह कि पोस्ट और एडमिन द्वारा कहे गए शब्दों की अक्षरश: जानकारी वायरल पोस्ट सहित कलेक्टर के मोबाइल पर भी दी गयी किन्तु कलेक्टर के संज्ञान में आने के बाद भी एडमिन सहित पोस्टकर्ता पर करवाही न होना ही कर्मचारियों द्वारा की गई हरकतों पर पर्दा डालने वाली कहावत चरितार्थ करना ही साबित करता है।

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