शासकीय पट्टे, लीज पर दी गयी जमीन की बंदरबाट…

भू अधिनियम की अनदेखी कर शासकीय जमीन की जमकर की जा रही खरीदी-बिक्री, हस्तांतरित

देवास, अग्निपथ। वर्षों से बंद पड़ी चामुण्डा स्टेण्डर्ड मील के श्रमिक अपने बकाया पैसे की मांग करते हुए आन्दोलनरत है। श्रमिको के आन्दोलन के दौरान मील की जमीन के बारे में सार्वजनिक तौर पर यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि चामुण्डा स्टेण्डर्ड मील की स्थापना वर्ष 1936 में करने के लिये शासकीय नजूल की जमीन 90 वर्ष की लीज पर दी गयी थी।

कालान्तर में शासकीय लीज की भूमि पर स्थापित मील के मालिक बदलते गये, लेकिन जमीन यथावत रही। मील बंद होने के 8-9 वर्ष उपरांत, वर्तमान में मील की जमीन की बिक्री कर दी गयी। यदि चामुण्डा मील की जमीन नजूल की है तो उसकी खरीदी बिक्री कैसे हो गयी या कर दी गयी। वह भी कोडिय़ो के दाम में खरीदी बिक्री की गयी।

श्रमिकों के अनुसार चामुण्डा मील की जमीन लगभग 88-90 बीघा है। शहर के बालगढ़ क्षेत्र में वर्तमान में जमीनों की दर के अनुसार इतनी जमीन की कीमत अरबों रुपये में है, लेकिन मात्र 34 करोड़ रूपये में ही मील की जमीन बेच दी गयी। यह तथ्य अपने आप में चौकाने वाला है। दरअसल करीब चार-पांच वर्ष पूर्व जबसे आनलाइन भू रजिस्टे्रशन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई है। शासकीय पट्टे एवं नजूल की भूमि की बंटरबाट मची हुई है।

बीते समय में अनेक वाद विवाद के विषय सामने आये है, जिनमें शासन द्वारा अनुसुचित जाति, अनुसुचित जनजाति वर्ग अथवा मंदिर पुजारियों, वक्फ कमेटियों द्वारा प्रदत्त पट्टे एवं लीज की जमीनों पर कब्जा, खरीदी, बिक्री, हस्तांतरण या परिवर्तित किये जाने के मामले उजागर हुए है। आनलाइन भू रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया प्रारंभ होने से शासकीय पट्टे की जमीन के परिवर्तन, हस्तांतरण या खरीदी, बिक्री का खेल और आसान हो गया है।

माना जाये कि शासन द्वारा तीसरी, चौथी या पांचवी पीढ़ी के किसी व्यक्ति को शासन की भूमि पट्टे पर दी गयी हो तो मुल पट्टेधारी की मृत्यू उपरांत जमीन उसके पुत्र के नाम से हो गयी। पुत्र की मृत्यू के पश्चात जमीन पोते के नाम से फिर परपोते के नाम से परिवर्तित होती गयी। आनलाईन प्रक्रिया के दौरान उक्त पीढ़ी के वर्तमान में जीवित व्यक्ति का ही नाम सामने आयेगा।

जीवित व्यक्ति द्वारा अपने को ही भूमि स्वामी मानकर, प्रशासनिक स्तर पर मेलजोल कर, राजनैतिक संरक्षण प्राप्त कर भू राजस्व संहिता, भू अभिलेख, भूमि बाट अधिनियम या अन्य नियम कायदो को तोडकऱ पट्टे की भूमि को हस्तांतरित, परिवर्तित या विक्रय किया जा रहा है।

जबकि जमीन शासकीय पट्टे अथवा लीज पर दी गयी है। बीते वर्षो में सोनकच्छ तहसील के ग्राम डेहरिया पेठ का एक प्रकरण उजागर हुआ था। वर्ष 1975 में मोहन रावतिया को गांव देहरिया पेठ में सरकारी भूमि सर्वे नं. 159/2 रकबा 0.502 हेक्टेयर पट्टे पर दी गई थी। यह जमीन उसे खेती करने के मकसद से उपलब्ध कराई गई थी।

मोहन ने बिना अंतरण की अनुमति लिए इस जमीन को गांव के ही सजनसिंह करणसिंह सैंधव को रजिस्टर्ड विक्रय पत्र से वर्ष 1995 में बेच दी। पट्टे पर मिली जमीन को इस तरह बेचा नहीं जा सकता है। इसके खिलाफ तहसीलदार और एसडीएम सोनकच्छ ने प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था, जिसे एडीएम न्यायालय द्वारा भी सही ठहराते हुए डेहरिया पेठ की करीब आधा हेक्टेयर जमीन का रजिस्ट्रर्ड विक्रय पत्र निरस्त कर दिया गया था।

प्रदेश के अन्य स्थानो पर भी शासकीय पट्टे अथवा लीज पर दी गयी जमीनो की हेराफेरी, खरीदी, बिक्री के प्रकरण सामने आये है। अजा, अजजा वर्ग सहित मंदिरो के पुजारियों एवं वक्फ कमेटियों को पट्टे या लीज पर दी गयी शासकीय नजुल की भूमि पर कब्जे, हस्तांतरण, परिवर्तन, बिक्री के एवं अवैधानिक तरीके से कर्मशियल उपयोग के प्रकरण भी अकसर सामने आते रहते है।

बीते वर्षो में कलेक्टर स्तर पर जनसुनवाई में इस प्रकार की कई शिकायतें निरन्तर सामने आती रही है। शासन या जिला प्रशासन इस और गंभीरता से ध्यान देकर, छानबीन करते हुए कार्यवाही करे तो मुख्यालय ही नहीं, अपितु जिलेभर में अरबो, खरबो रूपये की शासकीय जमीन संरक्षण में लेकर बचायी सकती है, मुक्त करायी जा सकती है…।

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