वाह रे ऐसी तेरा खेल, अटेचमेंट के आगे शिक्षा व्यवस्था कर दी फेल

अहंकार की हवा में अहंकारी जितना ऊपर उड़ता है
उसे चोट उतनी ही गहरी लगती है,जब अहंकार के टूटते ही वह धरती पर गिरता है।
राम संस्कारी था इसीलिए पूजा जाता हैै
और रावण अहंकारी था इसलिए जलाया जाता है ।।
 

झाबुआ। चूहों को चिंदी मिलते ही खोलने लग जाते बजाज खाना। कुछ ऐसा ही जिले के सबसे बड़े बजट वाले जनजातीय विभाग का नजारा हे। वैसे तो जिला जनजातीय बहुल होने के चलते यहाँ की शिक्षा व्यवस्था का जिम्मा जनजातीय विभाग को दिया हुआ हे लेकिन इतिहास गवाह है के बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर द्वारा सविधान लिखते समय इन समुदायों के उत्थान की जो कल्पना की गई थी वाह आजादी के साढ़े सात दशक बाद भी अभी धरातल पर नही उतर पाई वजह हेै, तो सिर्फ और सिर्फ इस विभाग में आने वाला हर अधिकारी पदस्थ होते ही बजाज खाना खोल बैठते और अंधा बाटे रेवड़ी तर्ज पर लक्ष्मी पुत्रो को मन चाही जगह शासन की नियमो के विपरित अटैच कर अपने राजनीतिक आकाओं को खुश रखते ओर स्वयं भी वातानुकूलित कक्षों में बैठ अपनी आर्थिक चर्बी बढाने में लगे रहते हैे।

जिले का जनजातीय विकास विभाग जो कि पूर्व में आदिवासी विकास विभाग के नाम से जाना जाता था, ने इस वर्ष आजादी का अमृत महोत्सव मनाने तक इन जनजातियों का मिले बजट के विरुद्ध कितना विकास किया इसका चि_ा खोलने में मिडिया को संभवत: दशकों लग जाएंगे। जिले में पदस्थ हुए सहायक आयुक्त आजाद हो, बीजी मेहता हो,संतोष शुक्ला से लेकर मोहिनी श्रीवास्तव हो या फिर शकुंतला डामोर, गणेश भाभर या वर्तमान में पदस्थ सहायक आयुक्त प्रशांत आर्या हो सभी के कार्यकाल में शिक्षा जेैसे पवित्र क्षेत्र को अपने भ्रष्टाचार के चलते गर्त में ही धकेला।

आश्चर्य तो यह की इन विभागों की निगरानी करने हेतु इनकी नाक के नीचे ही कलेक्टर पदस्थ रहते किंतु जिले में आए कलेक्टरों ने भी जिले की शिक्षा व्यवस्था सुधारने के ईमानदारी वाले प्रयास नहीं किए। जब जब राजनीतिक लाभ लेने सरकारों में बैठे जनप्रतिनिधियों ने भोपाल से शिक्षा की योजना लागू की उनका राग अलापने जरूर कार्य किया। ओर कलेक्टरों ने शिक्षा के लिए आपणी शिक्षा आपणो स्वास्थ्य तो किसी ने बयरा नी कुल्हड़ी लागू कर जिले के जनजातीय विभाग का खूब माखौल उड़ाते हुए अपने सेवाकाल के तमगे बड़ाने में लगे रहे।

वर्तमान कलेक्टर भी अब उसी राह पर चलने का प्रयास कर रहे। निजी एंजियो के माध्यम से एक बार पुन: प्रोड कक्षाओं के नाम शासन के बजट का वारा न्यारा करने में लगे हे। परिणाम यह की छात्रों को अपनी शैक्षणिक समस्याओं को ले कर कभी धरना आंदोलन करना पड़ रहा तो कभी तीस तीस किलोमीटर भूखे,प्यासे नंगे पैर पैदल चलना पड़ रहा।

पूर्व में भी जिले में राज्यपाल के भ्रमण के दौरान पेटलावद माडल स्कूल के बच्चो ने खुल कर राज्यपाल के सामने अपनी समस्याओं का जिक्र किया बावजूद इसके जिले के जनजातीय विभाग ने शिक्षा की ओर अपना ध्यान आकर्षित न करते हुए प्राचार्य प्रसाद को ही निशाना बनाया। जनजातीय विभाग के अंतर्गत आने वाले माडल स्कूलों की विज्ञान सामग्री व अन्य सामग्री की लाखो का घोटाला दबाने सहायक आयुक्त ने प्राचार्य प्रसाद को निशाना बना दिया।

जिले की स्कूलों के लाखो रूपयो के खेल सामग्री घोटाले की गूंज अभी खत्म ही नही हुई और एकबार पुन: अब छात्रवृत्ति का मामला सामने आ गया। इन सब की मूल जड़ सहायक आयुक्त द्वारा छात्रावास अधीक्षको प्राचार्यो,विकासखंड शिक्षा अधिकारियों सहित शिक्षको का मनमाफिक अटेचमेंट है।

जनजातीय विकास विभाग में अटैचमेंट की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि सहायक संचालक कार्यालय तक से जिले के जनजाति विभाग के कर्मचारी अटैच हैे और संभागीय उपायुक्त संचालक को कानोकान खबर तक नही। सूचना अधिकार के तहत चाही गई जानकारी में संभागीय उपायुक्त द्वारा किसी भी प्रकार के अटेचमैंट होना नही बताया गया। जब उन्हें अटेचमैंट के पत्र बताए गए तो दिखवाता हुं कह कर बात टालने के प्रयास करने लगे।

लानत तो उन जनप्रतिनिधियों को भी है जो जनजातीय जिले का प्रतिनिधित्व स्थानीय स्तर से ले कर भोपाल और दिल्ली के गलियारों में जा कर बैठते हे। आजादी का अमृत महोत्सव मानने वालो में जिले के लिए अब भी कोई स्वाभिमान जिंदा है तो सबसे पहले जनजातीय विभाग का नीचे से ऊपर तक का खाका सुधारे अन्यथा अभी तो बच्चे 30 किलोमीटर भूखे प्यासे नंगे पैर जिले में कलेक्टर को मिलने ही पहुंचे। आक्रोशित छात्रों ने जायज मांगों के लिए भोपाल तक पैदल मार्च करने की चेतावनी तक दे डाली हैे। इसी लिये अन्त मे यही कहेगें कि-

पूरा बांस ही पोला हो गया है, जिले के हाकीम को भान तक नही है ।
अंाखो पर चढे चश्मे को उतारकर अन्दर भी झांकीये मेहरबां ।
हर गांठ में दिखेगा, भ्रष्टाचार का ही गूदा आपको ।
इसे साफ करने के लिये प्रभावी कदम तो उठाईये ।

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