मां शिप्रा के लिए शहरवासियों के साथ आंदोलन करेंगे संत

नदी को प्रवाहमान और प्रदूषण मुक्त बनाने की रणनीति बनाने के लिए जल्द होगी बैठक

उज्जैन, अग्निपथ। मां शिप्रा की दुर्दशा को देखकर साधु संतों ने एक बड़ा आंदोलन करने का संकेत दिया है। इसके लिए एक बैठक साधु संतों के साथ ही शहर के सामाजिक संगठन, समाजसेवी, पंडित और पुजारी की आयोजित की जायेगी जिसमें सभी मिलकर एक ऐसी योजना तैयार करेंगे, जिससे कि मां शिप्रा प्रदूषण मुक्त, प्रवाहमान हो सकें।

मां शिप्रा को प्रवाहमान व प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए चारधाम मंदिर के पीठाधीश्वर शांतिस्वरूपानंद गिरि महाराज ने यह पहल की है, जिसको लेकर उन्होंने कहा है कि मां शिप्रा कोई प्रवचन करने का विषय नहीं हैं। शिप्रा प्रदूषण मुक्त हो, प्रवाहमान हो। मां शिप्रा में अमृत की बूंदे गिरी थी, इसलिए सभी को सिंहस्थ महाकुंभ में मां शिप्रा में ही स्नान हो ऐसी हमारी कामना है।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत 600 करोड़ रुपये खर्च कर इस पानी को शुद्ध करने का प्लांट लगाया जाने वाला है। पंडे, पुजारी संत और पूरे नगर को मां शिप्रा को प्रवाहमान करने के लिए एक साथ जोडऩा होगा और नगर के लिए एक आंदोलन करना होगा। जिससे कि सरकार बाध्य हो और मां शिप्रा को प्रवाहमान करे। उन्होंने ये भी कहा कि मां शिप्रा के लिए सरकार से अपनी मांगे मनवाकर बड़ा आंदोलन करने की रूपरेखा तैयार की जा रही है, जिसके लिए जल्द ही एक बैठक भी आयोजित की जाएगी।

शिप्रा का जल आचमन योग्य बनाना होगा-ज्ञानदास महाराज

महामंडलेश्वर ज्ञानदास महाराज ने कहा कि जिस तरह गंभीर डैम के पानी को फिल्टर कर शहरवासियों को पीने के लिए छोड़ा जाता है। उसी तरह मां शिप्रा के जल को नदी में भी प्रवाहमान करना चाहिए, जिससे कि श्रद्धालु इस जल का उपयोग आचमन के रूप में कर सकें। अभी मां शिप्रा की स्थिति काफी दयनीय है, जिसमें वर्तमान में कई नाले मिल रहे हैं।

उज्जैन पर्यटक नहीं बल्कि धर्म नगरी-शैलेशानंद

महामंडलेश्वर शैलेशानंद ने बताया कि समाज का प्रत्येक वर्ग मां शिप्रा को प्रभावित करने के लिए भागीदारी करे। यह हम सभी का दायित्व है कि मां शिप्रा उज्जैन की जीवनदायिनी हैं और यह नगरी सबसे प्राचीनतम नगरी है। आपने यह भी बताया कि धर्म नगरी उज्जैन पर्यटन नहीं, देशाटन के लिए है। उज्जैन को भी आध्यात्मिक नगरी के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। पर्यटन नगरी के रूप में नहीं। यहां के मंदिर व्यापारिक केंद्र के लिए नहीं है, जहां से शासन रुपये अर्जित करने में लगा हुआ है।

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