अर्जुन के बाण: उज्जैन में रचा गया बहादुर सिंह को भाजपा प्रत्याशी बनाने का ताना-बाना

– अर्जुन सिंह चंदेल

जिले की दक्षिण विधानसभा सीट के बाद महिदपुर विधानसभा दूसरी ऐसी सीट है जिस पर बाहुबली विधायक का कब्जा है। लगभग 2 लाख मतदाताओं वाली इस सीट के लिये तीन बार के विधायक बहादुर सिंह चौहान पर तमाम विरोधों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने विश्वास व्यक्त करके पार्टी का उम्मीदवार घोषित किया है। महिदपुर का राजनैतिक पारा शायद जिले में सबसे ज्यादा चढ़ा हुआ है।

खबरनवीसों की बातों पर विश्वास किया जाए तो बहादुरसिंह फिर इस बार भी ‘लक्ष्मी जी’ की मदद से टिकट लाने में कामयाब हुए हैं। इसके पहले 2018 के चुनावों में भी टिकट के लिये ‘भाभी’ को 35 खोके का सूटकेस प्रदेश की राजधानी के किसी हिल्स पर देकर आने की चर्चाएं चली थी।

2013 में भी बेंगलोर एयरपोर्ट पर 50 पेटी से भरा सूटकेस दक्षिण भारत के भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष पर काबिज तात्कालीन नेता के हाथों में दिये जाने की चर्चाओं का बाजार गर्म हुआ था। पर इस बार ‘लक्ष्मी’ के साथ राजनैतिक बिसात पर काफी चाले चली गयी जिसका ताना-बाना उज्जैन-उत्तर के भाजपा प्रत्याशी अनिल जैन द्वारा बुने जाने की खबरें है।

अंदरखाने की माने तो विधायक बहादुर सिंह चौहान के महिदपुर में भारी विरोध के चलते चयन समिति में पूर्व केन्द्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया अपने खास समर्थक मदन सांखला को पार्टी का टिकट दिलाना चाहते थे। गृहमंत्री अमित शाह की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर भी बहादुर सिंह का टिकट कटना चाहिये था परंतु राष्ट्रीय स्वयं संघ के एक पदाधिकारी, जो मालवा प्रांत की दूसरे नंबर की कुर्सी पर विराजमान हैं,  ने आरएसएस के स्वयं सेवकों एवं विश्व हिन्दू परिषद के तमाम विरोधों को दरकिनार करते हुए बहादुर सिंह के नाम की सिफारिश कर दी और उनका साथ दिया प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह ने।

दिल्ली में जब चयन समिति की बैठक में जटिया जी के विरोध के बावजूद भी कोई निर्णय नहीं निकल सका तो अंतिम निर्णय पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा पर छोड़ दिया गया। बस यहीं से खेल शुरू हुआ। दूसरे दिन सुबह शिवराज मामा की राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा से कुछ गुफ्तगू हुई और बहादुर सिंह चौहान को महिदपुर से उम्मीदवार घोषित कर दिया गया।

अब हम आपको बताते हैं कि महिदपुर सीट के तार उज्जैन से कैसे जुड़े हुए हैं?

आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी जिनका मुख्यालय उज्जैन स्थित आराधना भवन है उनसे उज्जैन-उत्तर के भाजपा प्रत्याशी ने साल भर से नजदीकी बढ़ायी। चूंकि उन्हें पता था कि टिकट वितरण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है। इस कारण उज्जैन-उत्तर से विधायकी के लिये तो प्रयास करना ही था, पर इस प्रयास में महिदपुर की सीट आड़े आ रही थी क्योंकि यदि वहाँ महिदपुर से बहादुर सिंह चौहान की जगह मदन सांखला को टिकट मिल जाता तो फिर उज्जैन-उत्तर से किसी जैन को टिकट नहीं मिलता और सोनू गेहलोत को टिकट मिलना तय हो जाता। इस कारण उज्जैन-उत्तर के साथ महिदपुर सीट के लिये भी फिल्डिंग की गयी।

बहादुर सिंह चौहान को 6 माह पूर्व आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी के नजदीक लाया गया और उनका विश्वास अर्जित करने के साम-दाम-दंड-भेद सबका प्रयोग किया गया। महिदपुर में बहादुर सिंह के नाम की अनुशंसा होते ही उज्जैन-उत्तर के लिये किसी जैन को टिकट मिलना तय हो गया। भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश के अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा से नजदीकी भी काम आयी क्योंकि प्रदेश भाजपा के सह कोषाध्यक्ष की कुर्सी पर शर्मा जी ने ही बिठाया था।

सह कोषाध्यक्ष के पास भी दक्षिण के विधायक की तरह ही फर्श से अर्श तक पहुँचने की कला है। सह कोषाध्यक्ष के पास भी कोष की कमी नहीं है। अपार धन सम्पदा के मालिक भाजपा प्रत्याशी ने अपनी समझदारी से महिदपुर की आड़ में अपनी भी सीट सुरक्षित करने का खूबसूरत राजनैतिक खेल खेला जो काबिले तारीफ है।

(कल पढिय़े कांटे ही कांटे हैं बहादुर सिंह की राह में)

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