कमल-काँग्रेस की जन्मदाता और काँग्रेस के लिये अभिशापित है दक्षिण विधानसभा सीट

bjp vs congress

– अर्जुन सिंह चंदेल

कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर रे इंसान,
जैसे कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान,
यह है गीता का ज्ञान

द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा महाभारत युद्ध में अर्जुन को दिया गया यह ज्ञान वर्षों-वर्षों बाद भी यथार्थ के धरातल पर परिलक्षित होता है। द्वापर के ‘मोहन’ और राजनैतिज्ञ मोहन की हम बात करे तो भगवान कृष्ण जहाँ 84 कलाओं में दक्ष थे तो वहीं हमारे राजनैतिक ‘मोहन’ भी राजनीति के सारे दाँव-पेंचों में माहिर हैं।

भाग्य के धनी उज्जैन दक्षिण से भाजपा प्रत्याशी और मध्यप्रदेश सरकार के काबीना मंत्री मोहन यादव भी 2013 और 2018 के बाद तीसरी बार 2018 के चुनावी कुरुक्षेत्र में खड़े हैं। पर तीसरी बार के इस चुनावी रणक्षेत्र में कुछ बदलाव है। दृश्य परिवर्तन हो गया है।

वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में काँग्रेस ने योगेश शर्मा को प्रत्याशी बनाया तो जयसिंह दरबार और राजेन्द्र वशिष्ठ काँग्रेस से बगावत कर निर्दलीय खड़े हो गये जिसके फलस्वरूप भाजपा के शिवनारायण जागीरदार दूसरी बार विधायक बनने में सफल रहे।

2013 के चुनाव में काँग्रेस से जयसिंह दरबार अधिकृत प्रत्याशी थे तो राजेन्द्र वशिष्ठ ने सामने से तो बगावत नहीं की परंतु अंदरूनी तौर पर मोहन यादव का साथ देकर जयसिंह दरबार को हरवा दिया।

अब आया 2018 का चुनाव जिसमें काँग्रेस ने राजेन्द्र वशिष्ठ को अपना प्रत्याशी घोषित किया। बोया पेड़ बबूल के तो आम कहां से पाए। इस बार जयसिंह ने काँग्रेस से बगावत और मोहन यादव से अच्छी खासी रकम लेकर निर्दलीय के रूप में फार्म भर दिया। कहानी 2008 और 2013 वाली फिल्म एक बार फिर हिट हो गयी और काँग्रेस प्रत्याशी राजेन्द्र वशिष्ठ की लुटिया डूब गयी।

जिसका सीधा-सीधा लाभ राजनैतिक ‘मोहन’ को मिला और वह चुनाव जीतने में कामयाब रहे। अपनी राजनैतिक क्षमता और तिकड़म के बल पर वह तीन बार के महिदपुर से विधायक बहादुर सिंह को पीछे छोडक़र मध्यप्रदेश सरकार में काबीना मंत्री का पद भी ले आये। राजनैतिक सफर में मोहन जी को महिलाओं का आशीर्वाद भी भरपूर मिला विधायक बनने से पहले पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती जी का और फिर प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित श्यामला हिल्स में निवास करने वाली भाभी का।

देवर पर भाभी का इतना स्नेह था कि वह देवर की हर जिद पूरी करती थी। यहाँ एक घटना का उल्लेख देवर-भाभी के प्रेम की पराकाष्ठा के लिये बताना जरूरी है। बताया जाता है कि देवर ने एक बार खुद की गाड़ी पर लाल बत्ती की इच्छा व्यक्त की और माँ समान भाभी के चरणों में बिना राशि भरा हुआ (ब्लैंक चेक) रख दिया और भाभी माँ से निवेदन किया कि आप इस चेक में जितनी चाहें उतनी राशि भर लेना परंतु लाल बत्ती चाहिये, फिर क्या था अपने लाड़ले और जिद्दी देवर की जिद पूरी करने के लिये भाभी माँ ने आर्शीवाद दे दिया।

भगवान महाकाल की कृपा से मोहन जी विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बन गये बस वहीं से नक्का-दुआ का खेल चालू हो गया। क्षिप्रा नदी पर स्थित वाकणकर ब्रिज जो मोहन जी का सपना था साकार हुआ और मोहन जी की जमीनों का खेल का मूक दर्शक होकर साक्षी बना।

हाँ हम बात कर रहे थे बदले हुए परिदृश्य का तो वर्षों से काँग्रेस के लिये अभिशापित दक्षिण विधानसभा सीट कमल-काँग्रेस की जन्मदात्री रही है। पूरा शहर जानता है कि पहले वशिष्ठ-बैरागी की आपसी प्रतिद्वन्दिता के कारण काँग्रेस यहाँ से कभी भी जीत नहीं पायी बैरागी के बाद वशिष्ठ जी का अगला शिकार प्रीति भार्गव हुयी जो सदा-सदा के लिये राजनैतिक हाशिये पर चली गयी। निपटाने की यही परंपरा काँग्रेस में 2018 के चुनाव तक जारी रही।इस बार के चुनाव में जयसिंह गायब हो चुके हैं उन्हें मोहन जी ने अपने चक्रव्यूह में उलझाकर कहीं का नहीं छोड़ा ना तो वह भाजपा के रहे ना ही काँग्रेस के परंतु फिल्मों का एक किरदार अभी भी खलनायक की भूमिका निभा रहा है, परंतु पर्दे के पीछे से पूरी क्षमता के साथ अपने पारंपरिक दायित्वों का निर्वहन कर रहा है।
(शेष कथा कल)

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