देश से बड़ा कोई धर्म नहीं, जनसंख्या कमजोरी नहीं ताकत बने-मुनिश्री

विश्व शांति के लिए 557 दिन के उपवास पर मुनिश्री अराध्य सागर जी

ललित जैन

उज्जैन, अग्निपथ। जैन मुनि जैसा त्याग व तप सब के लिए संभव: नहीं। ऐसे ही जैन मुनि हैं 108 अराध्य सागर जी। अपने शिष्य साध्य सागर जी के साथ लक्ष्मीनगर महावीर दिगंबर जैन मंदिर में विराजे मुनिश्री से उनके द्वारा किए जा रहे 557 उपवास और समाज को दिए जा रहे संदेश को लेकर अग्निपथ ने उनसे चर्चा की। मुनि श्री ने धर्म से उपर देश और अंदरुनी बीमारियों के लिए मंदिर की आवश्यकता बताई।

मुनिश्री ने 10 फरवरी २010 को संन्यासी जीवन में प्रवेश किया। 8 नवंबर 2011 को उनकी दीक्षा हुई। 18 अप्रैल 2020 से 557 दिन के उपवास प्रारंभ किए। व्रत नियमानुसार वह 1,2,4,8,16(कुल 61 दिन),जल,ज्यूस व आहार लेंगे, शेष 496 दिन पूर्णत: उपवास पर रहेंगे। उपवास की पूर्णाहुति 25 नवंबर 2021 को होगी।

72 वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुनिश्री ने देशवासियों के बधाई देते हुए कहा पड़ोसी देश चीन किसी समय जनसंख्या को लेकर चिंतित था, लेकिन वह अब उसकी ताकत बन गई। हमारे देश के लोगों की क्षमताओं का उपयोग किया जाए। योग्य युवाओं को देश में अवसर मिले जिससे वे दूसरे देश नहीं जाए बल्कि अन्य देश उनकी सर्विस ले। दूसरे देश से खरीदी की जगह आत्मनिर्भर बने तभी गांधी के सपनों का भारत बनेगा।

उन्होंने कहा विभिन्न धर्मो से मिलकर हमारा देश बना है, लेकिन धर्म से पहले देश की रक्षा जरुरी है। क्योंकि देश सुरक्षित रहेगा तभी धर्म, साधु और मुनियों की रक्षा होगी। उन्होंने कहा अगर सेना और पुलिस बाहर हो जाए तो दूसरे देश और आतंकवादी हमला कर देंगे। ऐसे मे न मंदिर सुरक्षित रहेंगे ना बहू-बेटी। इसलिए देश को सूदृढ़ बनाना जरुरी है। उन्होंने बच्चों में बाहर के भोजन की बढ़ती प्रवत्ति के लिए मां को दोषी बताया। मां बच्चों के टेस्ट के हिसाब से भोजन बनाए और सही मार्गदर्शन दे तो वह घर के भोजन और धर्म के प्रति आकर्षित होंगे।

मंदिर अध्यात्मिक हॉस्पिटल

मुनिश्री ने कहा मंदिर की जगह हॉस्पिटल और विद्यालय बनाने वाले बहुत हैं। मंदिर बनाने वाले भी होने चाहिए क्योंकि बाहरी स्वास्थ्य का उपचार हॉस्पिटल में हो जाएगा, लेकिन अंदरूनी स्वास्थ्य का इलाज कौन करेगा। मंदिर आध्यात्मिक हॉस्पिटल है। उन्होंने बताया एक चक्के से गाड़ी नहीं चलती, स्वस्थ समाज के लिए दोनों चक्के जरुरी है। देश में जैन समाज के भी बहुत से विद्यालय व हॉस्पिटल हैं।

पूर्व जन्म के संस्कार से वैराग्य

संन्यास लेने के सवाल पर मुनिश्री ने कहा जैन तीर्थकर से मुनि तक सभी संपन्न परिवार के बने हैं। जिसके घर खाने को नहीं होगा वही बनेगा या जिसका एक्सीडेंट हो गया हो वही बनेगा यह धारणा गलत है। कुछ कारण इनबिल्ट भी होते हैं। मुनियों का बच्चा मुनि बने यह परंपरा भी नहीं है। पूर्व जन्म के संस्कार के कारण भी वैराग्य हो जाता है।

विश्व शांति के लिए व्रत ही मार्ग

18 अप्रैल 2020 से 25 नवंबर 2021 तक 557 दिन के उपवास के संबंध में बताया कि कोरोना महामारी चल रही थी। मुनि होने पर कुछ नहीं कर सकते, इसलिए आत्म कल्याण और जगत में शांति के लिए आयोजन कर रहे हैं। भावना है कि हमारा देश ही नहीं पूरे विश्व में शांति हो। कठोर तप को लेकर कहाकि एनर्जी तो मनुष्य के अंदर होती है बाहर से नहीं लेना पड़ती।

कैसे बनते है मुनि

मुनि अपने अंदर ही होता है। जिनमें आत्म कल्याण की भावना होती है वह पहले छोटे-छोटे नियम (प्रतिमाएं) लेते हैं। मुनियों की क्लास में पढ़ते हैं फिर नियम बढ़ता जाता है। योग्यता अनुसार छूलक व एलक बनते है। डायरेक्ट मुनि पद भी मिलता है। सात प्रतिमा तक ली जाती है इसमें क्रम का कोई नियम।

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