यात्रा वृत्तांत: चलिये ले चलता हूँ देवभूमि में स्थित कसौली की यात्रा पर

  • अर्जुन सिंह चंदेल

सोश्यल मीडिया पर घूमने के शौकीन लोगों का एक परिवार है जिसका नाम है ‘घुमक्कड़ी दिल से’। आज से लगभग 8-10 वर्ष पूर्व ‘व्हाटसअप’ पर जन्म लेने वाला यह ग्रुप बहुत छोटे रूप में था परंतु आज देश भर में इसके 80 हजार से ऊपर सदस्य हैं और यह विस्तारित होकर ‘फेसबुक’ पर पहुँच चुका है। देशभर के चुनिंदा पर्यटन स्थलों में इस परिवार के सदस्य मिलन समारोह का आयोजन करते हैं। इस बार मिलने (मीट) का स्थान हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में स्थित हिल स्टेशन ‘कसौली’ था।

इसके पूर्व छत्तीसगढ़ के ‘मैनपाट’ में 2023 में आयोजित मीट में, मैं उज्जैन से 11 साथियों सहित शामिल हो चुका था। इस बार जैसे ही ‘कसौली’ मीट का आमंत्रण मिला समाधान ग्रुप के 9 साथियों ने अपनी स्वीकृति दे दी और हम सबका आरक्षण इंदौर-चंड़ीगढ़ टे्रन से हो गया।

देवभूमि की यात्रा के लिये सदस्यीय दल का हर सदस्य उत्साहित था सबको निवेदन कर दिया गया था कि अपने साथ दो समय का भोजन लाये।

11 जनवरी की सुबह 7.40 पर इंदौर-चंडीगढ़ टे्रन के वातानुकूलित डिब्बे में हमारी यात्रा प्रारंभ हुई। संयमित, धैर्यवान, आरामतलबी रेल का पूरा किराया वसूल करने की इच्छा रखने वालों के हिसाब से ही इस टे्रन की समय सारणी तैयार की गयी है। देशभर की सारी यात्री गाडिय़ां भले ही विलंब से चल रही हो परंतु टे्रन हर स्टेशन पर समय से काफी पहले पहुँच जाती है।

इसका कारण यह है कि भले ही दूरी कम हो परंतु समय सारणी में यात्रा समय अधिक दिया गया है इस कारण हर स्टेशन पर निर्धारित समय से पहले पहुँचती है।

खैर, हम सभी 9 लोगों को भी जरा-सी भी जल्दी नहीं थी जहाँ दोस्तों की महफिल हो वहाँ ‘समय’ अच्छा लगता है। यात्रा दौरान हमारा ‘जनकपुर’ शाजापुर आया जहाँ के स्वादिष्ट समोसे और जलेबी के नाश्ता का आनंद साले साहब महेन्द्र सिंह जी के सौजन्य से प्राप्त करने का अवसर मिला।

हमने भी पहले से ही एक की जगह दो-दो समोसों की फरफाइश कर डाली थी। छककर आनंद लिया सभी मित्रों ने यात्रा का बोनी-बट्टा अच्छा हुआ था। एक और पड़ाव आया ब्यावरा जहाँ मित्र प्रताप के होने वाले समधी जोधपुरी कचोरियों, मिठाई, नमकीन, पानी की बोतलों के साथ ट्रेन पहुँचने के पहले से ही स्टेशन पर मौजूद थे, पेट का आराम दिये बिना फिर ठूँस ली गयी कचौरियां।

हमारी छुक-छुक टे्रन भी आराम से चली जा रही थी और हम भी अपनी यात्रा का मजा ले रहे थे। लगभग चार बजे के आसपास साथियों में से आधों ने अपने साथ लिया भोजन खोला सबने मिलकर दोपहर भोज का आनंद लिया कई तरह की सब्जियां हो गयी। ग्वालियर में साथी यात्री अग्रवाल साहब के मित्र ने किसी प्रसिद्ध रेस्टोरेन्ट से खाने की 9 थालियां भिजवा दी। साथ ही सोमरस की एक बाटल भी।

सभी के पेट भरे हुए थे 9 में से 4-5 लोगों ने तो रात्रि भोजन के लिये अपने हाथ ऊँचे कर दिये, साथ में लाया खाना भी नहीं खोला गया था, काफी लोगों का। भोजन की थालियां वितरित की गयी कोच अटैण्डेड को, रात्रि में तीन-चार मित्रों ने ही भोजन किया। सोमरस की बोतल भी अधरों का इंतजार ही करती रह गयी। उसे समझाया गया तुम्हारा उपयोग कसौली के सुरम्य वातावरण में किया जा सकता है। टे्रन आराम से चल रही थी रात गहराने लगी थी आधी यात्रा पूरी होने को भी निंद्रा असर करने लगी थी क्योंकि जब पेट ज्यादा भरा हो तो नींद जल्दी आती है।

हम सभी मित्र सो गये। डिब्बा वातानुकूलित होने के कारण बाहर के मौसम का आभास नहीं हो रहा था। सुबह नींद खुली थी टे्रन चंडीगढ़ स्टेशन पर पहुँच रही थी जहाँ पहले से मौजूद एक देवदूत कर रहा था हमारा इंतजार।
(शेष कल)

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