अहमदाबाद का ऐतिहासिक सर्किट हाऊस और मैं

यह मेरा सौभाग्य था कि गुजरात के सांस्कृतिक-आर्थिक केन्द्र और भारत के 56 लाख आबादी वाले सांतवें सबसे बड़े शहर अहमदाबाद स्थापना की 610वीं वर्षगांठ पर मैं इस बार उपस्थित था अहमदाबादवासियों के जश्न में शामिल होने के लिये।

इस शहर का इतिहास ग्यारहवीं शताब्दी से मिलता है जब इसको अशावल कहा जाता था। वैसे तो अहमदाबाद के कई नाम हैं। इसे कर्णावती (कर्ण का नगर), श्रीनगर (समृद्ध नगर), राजनगर (राजा का नगर) भी कहा जाता था। ग्यारहवीं शताब्दी में चालुक्य राजवंश का शासन था।1072-1094 तक तब इसे गुजरात की राजधानी बनाया गया था।

13वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में चालुक्य शासन कमजोर होने के बाद 1243 में वाघेला राजवंश ने सत्ता संभाली और 1299 तक राज किया। 13वीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी ने विजय प्राप्त कर शासन पर कब्जा किया। खिलजी के शासन में 1347 में विद्रोह हुआ और दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने सत्ता हथिया ली। 1573 में मुगल सम्राट अकबर ने गुजरात को जीत लिया।

1753 में मराठा जनरल रघुनाथ राव और दामजी गायकवाड़ ने अहमदाबाद पर कब्जा कर लिया। 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने शहर की सत्ता संभाली और 1824 में यहाँ छावनी स्थापित हुई। खूबसूरत अहमदाबाद 1630 में अकाल का दंश भी झेल चुका है और सब कुछ तबाह हो गया था उस अकाल में।

सन् 1487 में अहमद शाह के पौत्र मेहमूद बैगड़ा ने छह मील की परिधि में फैले अहमदाबाद में 12 दरवाजों, 189 गढ़ और 6000 से अधिक पलटन इस नगर की सुरक्षा के लिये तैनात की थी।

साबरमती नदी के किनारे बसे नये अहमदाबाद को 26 फरवरी 1411 में सुल्तान अहमद शाह ने बसाया था और 4 मार्च को राजधानी घोषित किया था।

अहमदाबाद का कपड़ा किसी समय पूरे यूरोप में प्रसिद्ध था। अहमदाबाद को स्वतंत्रता आंदोलन का केन्द्र बनने का सौभाग्य सन् 1915 में मिला जब बापू महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से आकर अहमदाबाद की साबरमती नदी के किनारे आश्रम बनाकर बस गये।

भारत की आजादी के कई आंदोलनों की शुरुआत यहीं से हुई। सन् 1930 में नमक सत्याग्रह की शुरुआत अहमदाबाद से हुई जिसमें गाँधी जी अपने सैकड़ों अनुयायियों के साथ गुजरात के तटीय गाँव दांडी की यात्रा पर निकल पड़े थे। आजादी के आंदोलन में दांडी यात्रा का महत्वपूर्ण योगदान है।

मेरा सौभाग्य था कि अहमदाबाद प्रवास के दौरान में जिस शासकीय सर्किट हाऊस का मेहमान था वह भी स्वतंत्रता आंदोलन का मूक साक्षी रहा है। इसी सर्किट हाऊस के एक कक्ष में 18 मार्च 1922 को शनिवार के दिन राष्ट्रपिता श्री मोहनदास करमचंद गाँधी पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया था और उन्हें 6 वर्ष की सजा सुनाई गई थी।

लगभग 99 वर्षों बाद भी सर्किट हाऊस के इस अतिविशिष्ट कक्ष को खाली रखा जाता है। कक्ष में गाँधी जी की तस्वीरों के साथ उनके हस्त लिखित पत्र भी सुरक्षित हैं। इस ऐतिहासिक सर्किट हाऊस का निर्माण लगभग 300 वर्ष पुराना है। इसके कक्ष क्रमांक 1 का भी विशेष महत्व है जिसमें देश की महान हस्तियां स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गाँधी, सरदार वल्लभ पटेल, राजीव गाँधी जैसी हस्तियां आकर रुकती थी।

अहमदाबाद के सर्किट हाउस में अर्जुनसिंह चंदेल।

जब गाँधी जी पर मुकदमे वाले कक्ष में मैं पहुँचा तो लगा जैसे इतिहास से मेरा साक्षात्कार हो रहा हो और इतिहास के वह सारे पात्र मेरे मन मस्तिष्क में सजीव हो उठे। सर्किट हाउस का प्रबंधन देख रहे रमेश भाई वर्मा जी और सारे कर्मचारियों का आतिथ्य सत्कार से मेरा मन पुलकित हो गया। अहमदाबाद का वह ऐतिहासिक सर्किट हाउस और अहमदाबाद की वर्षगांठ पर मेरी उपस्थिति मेरे जीवन का स्वर्णिम पल था जिनकी यादें समेटें मैं मेरे उज्जैन लौट आया हूँ।

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