बधाई बडऩगरवासियों! कालजयी प्रदीप की आत्मा को रोने से बचा लिया तुमने

उज्जैन से मात्र 51 किलोमीटर दूर 47 हजार जनसंख्या वाला बडऩगर अमर कालजयी कवि प्रदीप के कारण पूरे हिंदुस्तान में जाना जाता है जिनके लिखे गीतों में देश के प्रधानमंत्री की आँखों से भी झरने की तरह आंसूओं को निकालने की ताकत थी। कवि प्रदीप ने देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान… जैसे गीतों की रचना की तो इतने वर्षों बाद आज भी प्रासंगिक है।

देश की औसत साक्षरता दर (2011 की जनगणना) 74.04 के मुकाबले बडऩगर की 2001 में ही साक्षरता दर 75 प्रतिशत थी, जो बडऩगर के लिये गर्व की बात है। बीते दिनों शांति के टापू मेरे बडऩगर की फिजां में कुछ असामाजिक तत्व ने जहर घोलने की कोशिश की। 4 दिनों के अंतराल में बजरंगबली की दो मूर्तियों के साथ छेड़छाड़ कर भाई-भाई को लड़ाने की कुत्सित प्रयास किया पर ऐसा प्रयास करने वाला शैतान यह भूल गया कि यह वही बडऩगर है जहाँ धर्मों का अनोखा संगम है।

अतीत में झांक कर देखे तो पता चलता है कि 15वीं शताब्दी में मालवा के सुल्तान मेहमूद से जागीर में प्राप्त नौलाई (बडऩगर का पुराना नाम) में राजा वरसिंह ने किले का निर्माण कराया था और उस किले में अपनी कुलदेवी नागणेचा माता का मंदिर निर्माण करवाया था और मंदिर के सामने ही चाँदशाह वली बाबा की दरगाह स्थित है। हिंदु धर्मावलंबी माता जी के दर्शनों पश्चात दरगाह पर भी जियारत करते हैं और मुस्लिम मतावलंबी दरगाह में जियारत पश्चात माता जी के सम्मान में अपना सिर झुकाये बिना नहीं रहते। नवरात्रि में जब माता के दरबार पर विद्युत साज-सज्जा की जाती है तो दरगाह पर भी रोशनी की जाती है।

गंगा जमुनी तहजीब वाले मेरे बडऩगर में हिंदु-मुस्लिम भाइयों की तरह मिलजुल कर रहते आये हैं। देश में समय-समय पर हुए साम्प्रदायिक दंगों की आग कवि प्रदीप के आँगन तक पहुँचने का दुस्साहस कभी नहीं कर पायी। यह वही मेरा बडऩगर है जहाँ देश के पूर्व लाड़ले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने सन् 1934-1935 में तात्कालिक एंग्लो वर्नाकुलर मिडिल (ए.वी.एम.) स्कूल जो बाद में सर्वोदय में चला गया और वर्तमान में जहाँ उत्कृष्ट विद्यालय लगता है में कवि प्रदीप के साथ एक वर्ष तक विद्याध्ययन किया।

बडऩगर का सौहाद्र्र बिगाडऩे की कोशिश करने वालों के इस प्रयास की चिंगारी को राम के भक्तों और रहीम के बंदों ने सूझबूझ का परिचय देते हुए संयम और धैर्य रूपी राख डालकर उस चिंगारी को शोला बनने के पहले ही बुझा दिया। दोनों वर्गों के प्रतिष्ठित और बुद्धिजीवियों ने जिला प्रशासन का सहयोग लेकर स्थिति पर नियंत्रण पा लिया।

हनुमान जी की मूर्ति के साथ दुष्टता की परिकाष्ठा निंदनीय है जिसके फलस्वरूप क्षणिक आवेश में आकर उग्र होना मानवीय प्रवृत्ति है। मैं धन्यवाद देना चाहूँगा जिलाधीश आशीष सिंह जी और पुलिस कप्तान सत्येंद्र शुक्ल जी का जिन्होंने तत्काल बडऩगर पहुँचकर लोगों से चर्चा कर उन्हें संतुष्ट किया और स्थिति को नियंत्रित किया। पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली पर एक प्रश्न चिन्ह जरूर है कि शनिवार को मूर्ति के साथ पहली घटना होने पर त्वरित कार्रवाई की जाती तो शायद मंगलवार की दूसरी घटना नहीं होती।

पुलिस प्रशासन और जिला प्रशासन को अभी भी सतर्कता की बहुत जरूरत है साथ ही उन चेहरों को भी बेनकाब करना होगा जिन्होंने ऐसा घृणित कार्य किया। मैं बडऩगरवासियों की समझदारी की प्रशंसा करता हूँ जिन्होंने ऐसे घिनौने प्रयास को प्रेम सद्भाव से असफल किया जिससे बडऩगर कलंकित होने से बच गया अन्यथा कवि प्रदीप की आत्मा भी रोये बिना नहीं रहती।

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