कबीलों में बटे जनप्रतिनिधियों से उज्जैन के विकास को लग रहा है ग्रहण

मेरे इस ऐतिहासिक पुरातन और वैभवशाली, सम्राट विक्रमादित्य की नगरी उज्जैन का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि जब-जब भी इस शहर के विकास या अन्य किसी भी मुद्दे की बात आयी तो इस शहर के जनप्रतिनिधि कभी भी एकमत नहीं हुए। वैसे शायद इस मुद्दे पर मेरा शहर श्रापित है। हमारे जनप्रतिनिधि पड़ोस के शहर इंदौर के नेताओं से सीख नहीं लेते जो कि इंदौर के विकास की बात आती है तो सारे मतभेद भुलाकर एक स्वर से आवाज बुलंद करते हैं जिसके परिणामस्वरूप इंदौर के विकास में चार चाँद लग गये हैं और आज वह मध्यप्रदेश का गौरव है।

मेरे शहर के लोग इस बात के साक्षी हैं कि यहाँ के नेता अपनी ही पार्टी के जनप्रतिनिधियों से आमने-सामने हैं। निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का अधिकारियों से सामंजस्य नहंीं बैठता है। हमारी नगर सरकार के महापौरों की आयुक्तों के साथ कभी पटरी नहीं बैठी। रोजाना मुख्यमंत्री के समझ उपेक्षा की शिकायतें आम बात हो गई थी। इतनी अधिक शिकायतें हो गई थी कि मुख्यमंत्री जी ने जनप्रतिनिधियों की शिकायतों को तवज्जों देना ही बंद कर दिया था। महापौर का निगमायुक्त से तालमेल ना बैठ पाने के कारण खामियाजा उज्जैन को भुगतना पड़ा।

यदि वर्तमान की बात करें तो इस समय भाजपा शासन में उज्जैन शहर में तीन शक्ति पुंज है या कबीले भी कहा जा सकता है एक की अगुवाई युवा तुर्क सांसद अनिल फिरोजिया कर कर रहे हैं, दूसरे शक्ति पुंज अनेक बार के विधायक और मध्यप्रदेश शासन के पूर्व कैबिनेट स्तर के मंत्री रह चुके उज्जैन उत्तर के विधायक पारस जी जैन और तीसरा खेमा है उज्जैन दक्षिण के विधायक और प्रदेश की सरकार में उच्च शिक्षा विभाग के कैबिनेट मंत्री मोहन यादव जी का।

मुझे यह कहने और लिखने में कतई संकोच नहीं है कि तीनों ही कबीलों के सरदारों के बीच तालमेल ना होना दुर्भाग्यपूर्ण है इस शहर के लिये। सुधि पाठकों आपको नेपथ्य में चलना होगा जब शहर के आरडी गार्डी अस्पताल में मौतों का सिलसिला जारी था तब उच्च स्तरीय बैठक में अधिकारियों की मौजूदगी में सांसद अस्पताल के कुप्रबंधन को लेकर नाराजगी व्यक्त कर रहे थे तब विधायक अस्पताल की व्यवस्थाओं को लेकर संतोष व्यक्त कर रहे थे।

दूसरा उदाहरण टाटा कंपनी की भूमिगत सीवर लाइन का प्रोजेक्ट जब बन रहा था तब किसी जनप्रतिनिधि ने उसकी समीक्षा नहीं की ना ही योजना को समझने की जहमत उठायी जब कार्य शुरू हो गया तब जनप्रतिनिधियों ने अधिकारियों के समक्ष विरोध में मोर्चा खोल दिया। जिसमें बाद में मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करकर मामला सुलझाना पड़ा।

ऐसे अनेक अवसरों पर जनप्रतिनिधियों के आपस में तालमेल ना होने और प्रशासन से पटरी ना बैठ पाने का नुकसान मेरे शहर को भोगना पड़ा है। ताजा मामला उज्जैन शहर के मास्टर प्लान को लेकर है जिसमें हमारे उत्तर व दक्षिण के विधायक ताल ठोककर सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे के सामने हैं और मीडिया को चटपटा मसाला बनाकर पाठकों के सामने परोसने का अवसर मिल रहा है।

जीवनखेड़ी और साँवराखेड़ी की जिस 500 बीघा जमीन को लेकर मुद्दा बनाया जा रहा है आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वह भूमि ना तो 1992 में ना ही 2004 और ना ही 2016 में सिंहस्थ के लिये कभी आरक्षित हुई। 2016 के सिंहस्थ में जो बसाहट और सेटेलाइट टाऊन बनाया गया था अस्थायी पार्किंग के लिये वह जीवनखेड़ी और साँवराखेड़ी में ना होकर उज्जैन कस्बे में बनाया गया था और उसकी भी बानगी देखिये कि पूरे सिंहस्थ दौरान उस पार्किंग स्थल का उपयोग ही नहीं हुआ। क्योंकि वाहनों को तो निनौरा में ही रोक दिया गया था जिसके परिणामस्वरूप सेटेलाइट टाऊन का ठेका लेने वाला देवास का ठेकेदार दो दिन में ही ठेका छोडक़र भाग खड़ा हुआ था।

हम सब उज्जैनवासी जानते हैं कि सिंहस्थ में शासन द्वारा अधिसूचित 3061 हेक्टेयर यानि 15305 बीघा जमीन में से मात्र 9-10 हजार बीघा जमीन पर ही सिंहस्थ की बसाहट हो पाती है। शेष भूमि पूरे सिंहस्थ दौरान रिक्त ही पड़ी रहती है। फिर जिस दाऊदखेड़ी, जीवनखेड़ी, साँवराखेड़ी की एक इंच भूमि पर कभी सिंहस्थ की बसाहट ही नहीं हुई तो उसको लेकर भ्रम क्यों फैलाया जा रहा है? अंदर ही खबरों के अनुसार यह सच है कि उस 500 बीघा जमीन में से 50-60 बीघा मुन्ना सोगानी की, 30-40 बीघा महेश सीतलानी की, 50 बीघा महेश परियानी की और लगभग 60 बीघा पैतृक भूमि उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव के परिवार की है। यह भी सच है कि कृषि से आवासीय होने पर भूमि स्वामियों को लाभ होगा पर सिर्फ इस कारण कृषि से आवासीय किये जाने पर विरोध तर्कसंगत दिखायी नहीं देता।

वास्तुशास्त्रियों के मतानुसार भी यदि शहर के दक्षिण भाग में विकास होगा तो ही शहर विकसित होगा और यदि इन क्षेत्रों में नयी कालोनियाँ बनती भी है तो निर्माण कार्य होने से कई प्रकार के लोगों को रोजगार मिलता है और इस उज्जैन को नये आयाम मिलेंगे। विरोध का यह कारण कि जीवनखेड़ी और साँवराखेड़ी की भूमि कृषि से आवासीय हो जाने से मंत्री और उनके समर्थकों को लाभ मिलेगा किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं होगा इस विरोध से तो शहर के विकास को ग्रहण ही लगेगा।

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