कोरोना से युद्ध में जुटे प्रशासन से और हैं उम्मीदें

अपने चरम पर तांडव कर रहा कोरोना बीते वर्ष 2020 के रिकार्ड ध्वस्त करने को आतुर है मात्र 9000 से दूर है जब हिंदुस्तान में एक ही दिन में लगभग 97 हजार से अधिक भारतीय संक्रमित हुए थे। सरकार की फिर से अग्नि परीक्षा है। महाराष्ट्र में तो हालात बेकाबू हैं एक ही दिन में 47 हजार से अधिक मरीज निकल रहे हैं।

भारत के लिये आने वाला सप्ताह मुश्किलों भरा हो सकता है। मेरे उज्जैन जैसे छोटे शहर से मजदूरों का पलायन चालू हो चुका है देवासगेट बस स्टैण्ड के इर्द-गिर्द स्थित रेस्टोरेंट में काम करने वाले श्रमिक अपने-अपने घरों में लौटना शुरू हो चुके हैं। गिरती जी.डी.पी. दर के बीच कोरोना का यह दंश देशवासियों के लिये इस बार असहनीय होगा।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि केन्द्र के साथ मध्यप्रदेश की सरकार और जिला प्रशासन कोरोना से मुकाबला करने में कोई कोताही नहीं बरत रहा है। पर न जाने क्यों इस बार मन अजीब रूप से संशय की स्थिति में है। मीडिया भी लोगों के मन में भय ज्यादा पैदा कर रहा है विशेषकर सोश्यल मीडिया की भूमिका तो माशाल्लाह है। समाचारों से तो ऐसा लगने लगा है कि आने वाले समय में धरती कहीं लाशों से न पट जाये?

वैक्सीन को लेकर भी तरह-तरह की अफवाहों को जन्म दिया जा रहा है जिसके कारण अज्ञानी नागरिक वैक्सीन ही नहीं लगवा रहे हैं हम उज्जैन जिले की ही बात करें तो माकड़ोन जैसे ग्रामीण कस्बे में लोग वैक्सीन लगवाने ही नहीं आ रहे हैं वैक्सीन केन्द्र सूने पड़े हैं। प्रारंभ होने की दिन वैक्सीनेशन का जो लक्ष्य था उसका एक चौथायी ही हो पाया।

जागरूकता के लिये जिला प्रशासन को विशेष तौर पर जनप्रतिनिधियों की मदद से अभियान चलाना होगा यह नितांत आवश्यक है। मैं तारीफ करना चाहूँगा जिला प्रशासन की जिसने शहर में वार्ड स्तर पर टीकाकरण की समूचित और पर्याप्त व्यवस्थाएं जुटाकर इसे एक आंदोलन का रूप दे दिया है। टीकाकरण के इतने बड़े विशाल कार्य में कुछ त्रुटियां रह जाना स्वाभाविक है परंतु समय के साथ यह सब भी ठीक हो जायेगी। वार्ड स्तर पर टीकाकरण कार्य प्रारंभ होने से नागरिकों को लाभ मिला है साथ ही इसमें तेजी भी आयी है।

निजी अस्पतालों के संचालकों को विश्वास में लेकर जिला प्रशासन द्वारा कोविड-19 के विरुद्ध लड़ायी में प्रशासन का आत्मविश्वास बढ़ा है। दवा विक्रेताओं द्वारा कोरोना दवाइयों की कीमतों पर भी अंकुश लगाया गया है जो सराहनीय है। परंतु उज्जैनवासियों के लिये चिंता का विषय हमारे दोनों शासकीय चिकित्सालय चरक और माधवनगर बन गये हैं। इन दोनों चिकित्सालयों की क्षमता और यहाँ उपलब्ध संसाधन इस महामारी के सामने बौने साबित हो रहे हैं। लोगों के विश्वास का केन्द्र बन चुके शासकीय माधवनगर चिकित्सालय की स्थिति तो यह है कि वहाँ के सारे पलंग भरे हुए हैं, भर्ती होने वाले मरीजों की प्रतीक्षा सूची लंबी होती जा रही है जिसके कारण कई नागरिक घरों पर ही ईलाज लेने पर मजबूर हो रहे हैं।

जिला प्रशासन को चाहिये कि माधव नगर अस्पताल की क्षमता कैसे बढ़ायी जाए इस पर पूरा ध्यान केन्द्रीत करना चाहिये। दूसरे शासकीय चिकित्सालय चरक की व्यवस्थाएं चाक चौबंद करके नागरिकों के मन में चरक के प्रति विश्वास जगाना होगा।

आम आदमी निजी चिकित्सालयों में जाना नहीं चाहता क्योंकि उसकी जेब उसे ईजाजत नहीं दे रही है। ऐसी स्थिति में वह प्रशासन की ओर ही आशा भरी निगाहों से उम्मीद रखता है।

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