और कब तक चलेगी यह खूनी होली?

देश में इस समय आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। आजादी के 74 वर्ष पूर्ण होने तक कई राजनैतिक दलों की सरकार आयी और गयी। दुर्भाग्य की बात यह है कि आज से 54 वर्ष पूर्व पश्चिम बंगाल के दार्जीलिंग जिले के 1618 (2011 की जनसंख्यानुसार) की आबादी वाले नक्सलबाड़ी ग्राम से प्रारंभ हुए नक्सली आंदोलन ने बीते वर्षों में भारत के 10 राज्यों के 106 जिलों को अपनी चपेट में ले लिया है।

नक्सलवाद भारतीय कम्युनिस्टों के आंदोलनों से उत्पन्न हुआ है। सन् 1967 में भाकपा नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने नक्सलबाड़ी में नक्सलवाद आंदोलन की नींव रखी। मजूमदार चीन के कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग से प्रभावित किये थे। उनका यह मानना था कि भारतीय मजदूरों और किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी नीतियां जिम्मेदार है। जिसके कारण उच्च वर्ग का शासन तंत्र और कृषि तंत्र पर वर्चस्व स्थापित हो गया और इस न्यायहीन, दमनकारी वर्चस्व को केवल सशस्त्र क्रांति से ही समाप्त किया जा सकता है।

और इसी को लेकर एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत हुयी। देश के राजनेताओं ने कभी भी बीते 54 वर्षों में इस नक्सलवाद की समस्या को मन से समझने का प्रयास नहीं किया कभी भी इस समस्या को लेकर शीर्ष नक्सली नेताओं और हमारे देश के रक्षामंत्री या गृहमंत्री के गोल मेज पर बैठने के प्रयास नहीं हुए। देश के आँध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड और बिहार तो नक्सलवाद से बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। अपने उद्देश्य से भटके नक्सली अभी तक हमारे सैकड़ों जवानों का खून पी चुके हैं। देश की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति देने की शपथ लेने वाले हमारे सैनिक अपने ही लोगों के खूनी हाथों में थामी बंदूकों का शिकार हो रहे हैं।

शनिवार का दिन भारतीयों के लिये मनहूस रहा। शनिवार की दोपहर 12 बजे के लगभग बीजापुर-सुकमा जिले की सीमा पर जगरगुंडा थाना क्षेत्र (जिला सुकमा) के अंतर्गत जोनागुडा गाँव के करीब नक्सलियों की पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पी.एल.जी.ए.) बटालियन जिसका नेतृत्व 25 वर्षीय नक्सली कमांडर माडवी हिडमा जिसे संतोष उर्फ इंदुमल उर्फ पोडियाम, भीमा जैसे नामों से भी जाना जाता है वह कर रहा था।

40 लाख के ईनामी हिडमा पर 200 से अधिक हत्याओं का आरोप है और जिसकी सुरक्षा में 24 घंटे 800 से ज्यादा नक्सलियों की टीम रहती है जो यू.बी.जी.एल., रॉकेट लान्चर, इंसास, ए.के.47 से लैस होती है। हिडमा के गृह ग्राम के नजदीक ही तर्रेम के सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ हुई जो तीन घंटे से अधिक समय तक चली जिसमें हमारे 24 जवान शहीद हो गये और 30 से अधिक घायल हैं।

इसके तेरह दिनों पूर्व भी हिडमा ने डीआरजी जवानों से भरी बस को उड़ा दिया था जिसमें 5 जवान शहीद हो गये थे। इन बेरहम नक्सलियों द्वारा सन् 2007 में भी छत्तीसगढ़ के बस्तर में घात लगाकर 55 पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया था, 2008 में उड़ीसा के नयागढ़ में 14 पुलिसकर्मियों की हत्या, 2009 महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के 15 जवानों की हत्या, 2010 में कोलकाता-मुंबई ट्रेन में 150 यात्रियों की हत्या, 2010 में पश्चिम बंगाल के सिल्दा कैंप में घुसकर 24 अद्र्धसैनिक बल के जवानों की हत्या, वर्ष 2011 में दंतेवाड़ा में 76 जवानों की हत्या, 2012 में झारखंड के गढ़वा जिले के बरिगांव में 13 पुलिसकर्मियों की हत्या, 2013 में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में काँग्रेस नेताओं सहित 27 नागरिकों की हत्या।

ऐसा नहीं है कि सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा नहीं खोला हो। सन् 1971 में सेना और पुलिस ने संयुक्त अभियान चलाकर 20 हजार से अधिक नक्सलियों को मार गिराया था उसके बाद बीते 50 वर्षों में ऐसा अभियान नहीं चला। परंतु सरकार नक्सलियों को बुलेट का जवाब बुलेट से दे रही है जिससे समस्या अंत दिखायी नहीं देता। समस्या की जड़ में जाकर इसके अंत के लिये कूटनीतिक प्रयास भी होने चाहिये। संवाद के बिना यह खत्म होती नहीं दिखती या फिर श्रीलंका की सरकार जैसी सैन्य रणनीति के तहत कार्यवाही होनी चाहिये जिसमें एल.टी.टी.ई. जैसे विश्व की नंबर-1 आतंकवादी संगठन को हमेशा के लिये मौत की नींद सुला दिया। यदि ऐसा नहीं हुआ तो हमारे जवानों की शहादतें होती रहेगी और यह खूनी होली जारी रहेगी।
वंदे मातरम्

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