धधक रही मरघट की ज्वाला….

धधक रही मरघट की ज्वाला….
धधक रही मरघट की ज्वाला
एक-एक चिंगारी में ही
कितने काल अशेष भरे हैं
कितनों के अरमान अधूरे
यहाँ राख का वेश धरे है
नित-नित नयी आहुतियां
धधक रही मरघट की ज्वाला।
फूँक चुके कितने अपने ही
हाथों से जीवन सुख अपना
ना बुझी है ना बुझेगी
धधक रही यह मरघट की ज्वाला

देश के श्मशान मृत शरीरों से भरे पड़े हैं। गुजरात में शव जलाने वाली मशीन की चिमनी पिघल गयी। पहली बार मेरे भारत में शवों को भी इंतजार करना पड़ रहा है अपनी मुक्ति के लिये। इन हालातों में डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन की उक्त पंक्तियां जहन में आ गयी।

हिंदु धर्म के 16 संस्कारों में से सबसे अंतिम संस्कार अंत्येष्टि संस्कार माना जाता है। मान्यता है कि मृत शरीर का जब तक विधिवत अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है तब तक जीव की अतृप्त वासनाएँ शांत नहीं होती है। विधिवत अंतिम संस्कार पश्चात ही मृत शरीर इस दुनिया की सभी मोह माया त्याग कर पृथ्वी लोक से परलोक की तरफ कूच करता है। हिंदु धर्म में अंत्येष्टि संस्कार हेतु व्यक्ति को मृत्यु पश्चात अग्नि की चिता पर जलाया जाता है। मृत शरीर को मुखाग्नि के बाद ही अग्नि के हवाले किया जाता है। इसके पूर्व मृत शरीर को गंगाजल से स्नान कराकर नये कपड़े पहनाये जाते हैं, फूल और चंदन से शव को सजाकर फिर अग्नि के हवाले किया जाता है।

जातसंस्कारैणेमं लोकमभिजयति
मृत संस्कारैणामु लोकम

अर्थात अन्य 15 संस्कार पूर्ण करके व्यक्ति पृथ्वी लोक पर जीत हासिल करता है और अंतिम संस्कार होने पर परलोक पर विजय प्राप्त कर लेता है। पर शायद देश में कोरोना से लाखों की संख्या में अकाल मौत को प्राप्त लोगों का यह अंतिम संस्कार नहीं हो पाया है जिसके अभाव में लाखों जीव पिण्ड इस संसार में भटकते ही रहेंगे मोक्ष के इंतजार में।

मृत्युलोक के राजा महाकाल भी इस संहार को मौन रहकर देख रहे हैं इस अवंतिका नगर में स्थित तीनों श्मशान भी इस समय जागृत है बडऩगर रोड स्थित चक्रतीर्थ, त्रिवेणी मोक्षधाम और ओखलेश्वर श्मशान घाट तीनों ही श्मशान घाटों पर 24 घंटे ही ज्वाला धधक रही है। शायद महाकाल की इस नगरी में ऐसे दिन पहले कभी नहीं देखे होंगे।

कल तो हालात यह थे कि चक्रतीर्थ पर शव लेने से ही मना कर दिया था शवों को जलाने के लिये प्रतीक्षा सूची नंबर दिये जा रहे थे और जिन शवों की अंत्येष्टि के लिये शनिवार सुबह आठ बजे का समय दिया गया था उन्हें 11 बजे तक इंतजार करना पड़ा। ओखलेश्वर श्मशान घाट की भी यही स्थिति थी शुक्रवार को जब चक्रतीर्थ पर जगह न होने के कारण शवों को ओखलेश्वर पर अंत्येष्टि के लिये भेजा जा रहा था तो वहाँ भी 3-4 घंटे इंतजार करना पड़ा और जो लोग 5 बजे पहुँच गये थे उनका 8 बजे नंबर आया।

कोरोना ने यह लोक तो बिगाड़ा ही व्यक्ति का परलोक भी बिगाड़ दिया। मेरे शहर के जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों से अनुरोध है कि वह देश में जारी ऑक्सीजन, इंजेक्शनों, पलंगों के अभाव के लिये तो तत्काल कुछ नहीं कर सकते क्योंकि सब कुछ उनके हाथ में नहीं है परंतु इतना जरूर कर सकते हैं कि यह लोक बिगडऩे के बाद उसका परलोक जरूर सुधार सकते हैं। यदि मृतकों की अंत्येष्टि ठीक ढंग से हो जाये, उसे दो गज जमीन मयस्सर हो जाये तो वह अपना 16वां संस्कार ठीक कर लेगा और उसका जीव पिंड इस दुनिया से मुक्त हो सकेगा।

जिलाधीश आशीष सिंह जी एवं निगमायुक्त क्षितिज सिंघल जी को चाहिये कि चक्रतीर्थ पर चबूतरों की संख्या तत्काल बढ़ाये यदि ईंटों के चबूतरे बनाने में समय लग रहा हो तो लोहे के भी बनाये जा सकते हैं, साथ ही चक्रतीर्थ स्थित विद्युत शवदाह गृह को अवंतिका गैस की मदद लेकर तत्काल सी.एन.जी. में परिवर्तित किया जाए ताकि निर्बाध रूप से वह चल सके। विद्युत शवदाह गृह 365 दिनों में से 200 दिन तकनीकी खराबी के कारण बंद रहता है।

चक्रतीर्थ पर सी.एन.जी. शवदाह गृह की दो यूनिट प्रारंभ होने से शवों का निपटारा तुरंत हो सकेगा। जिनकी मृत्यु कोरोना से हो रही है उनके लिये तो कोरोना गाईडलाईन का पालन करना ही है। अब मौत का भी अंदाज बदल गया है।

ना तुलसी, ना गंगाजल।
ना किसी के कंधे का सहारा।।
ना कोई विश्राम, ना राम-राम।
बस सीधा पेकिंग और श्मशान।।

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