कोरोना विस्फोट के लिये कहीं घटिया रेपिड टेस्टिंग किट का लोचा तो नहीं?

बढ़ते कोरोना मरीजों के कारण पूरा देश इस वक्त अजीबोगरीब स्थिति में है, सत्ता नियंत्रक भी इस परिस्थिति से निपटने के लिये ना तो मानसिक तौर पर तैयार थे ना ही साधनों के स्तर पर। देश के जवाबदार राजनेताओं का सुबह बयान आता है कि देश में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन है, ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है, शाम होते-होते 50 हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन आयात करने की घोषणा हो जाती है। या तो सुबह का बयान झूठा था या फिर शाम का निर्णय गलत।

मरकज को दोषी बताने वाली सरकार अब हरिद्वार के कुंभ को लेकर खुद सवालों के घेरे में है। केन्द्र सरकार की चेतावनी कि कुंभ मेला कोरोना का बम बन सकता है इसे नजरअंदाज करने वाली उत्तराखंड की सरकार भी उसी राजनैतिक दल की हे। हरिद्वार में 50 से अधिक साधुओं के संक्रमित होने के साथ बीते दिन 17सौं से अधिक श्रद्धालु भी कोरोना संक्रमित निकले। एक-दो बड़े साधु-संतों की मौत भी कोरोना से हुई है।

घोषित रूप से 1 अप्रैल से (आधिकारिक) और अघोषित रूप से पिछले डेढ़ माह से हरिद्वार में लोगों का आगमन हो रहा था। परिणाम देश के सामने है। देश में कोरोना के मामलों में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी में हरिद्वार कुंभ का भी योगदान रहा है इस सच्चायी से कोई भी जागरूक नागरिक इंकार नहीं कर सकता है।

यह तो हुयी एक बात दूसरी तथ्यात्मक बात यह भी है कि शासकीय चिकित्सालयों में कोरोना संक्रमण की जाँचें भी संदेह के घेरे में है। अनेक नागरिकों को एंटीजन टेस्ट में निगेटिव बताया जा रहा है, मरीज एंटीजन टेस्ट में रिपोर्ट निगेटिव की खबर से कोरोना का उपचार नहीं करवाते हुए सामान्य बुखार और सर्दी-खाँसी का उपचार लेने लगता है। स्वास्थ्य में सुधार ना होने पर जब पाँच-सात दिन बाद कोरोना संक्रमण की जाँच हेतु आर.टी.पी.सी.आर. (रियल टाईम पॉलीमरेज चेन रिएक्शन) का टेस्ट करवाता है तो उसमें रिपोर्ट पॉजीटिव आ रही है। अब जरा कल्पना कीजिये एंटीजन टेस्ट में निगेटिव आने वाला व्यक्ति दूसरा आर.टी.पी.सी.आर. टेस्ट करवाने के बीच के दिनों में कितने लोगों को संक्रमित कर रहा होगा? क्योंकि एंटीजन रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद वह तो बिंदास होकर अपनी सामान्य दिनचर्या बिताता है।

आइये समझते हैं यह कोरोना संक्रमण की रिपोर्ट का लोचा क्या है और यह कितने प्रकार की होती है?

रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट

ईश्वर द्वारा निर्मित दुनिया की सबसे जटिलतम रचना मानव शरीर है। व्यक्ति के शरीर में यदि कोई बीमारी प्रवेश करती है तो शरीर स्वयं उस बीमारी से मुकाबला करने के लिये एंटीबॉडी बना लेता है। इस प्रकार यदि मनुष्य के खून में उस बीमारी से संबंधित एंटीबॉडी मिलती है तो उस बीमारी से संक्रमित होने की पुष्टि हो जाती है।

यह रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट डी.एन.ए. पर आधारित होता है जिसमें डी.एन. का विश्लेषण कर कोरोना की पुष्टि की जाती है जिसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं बचती इसे अंतिम और प्रामाणिक माना जाता है।

स्वाब टेस्ट

दूसरा जाँच करने का एक तरीका स्वैब टेस्ट है, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आई.सी.एम.आर.) के निर्देश अनुसार जिस व्यक्ति में कोरोना संक्रमण की आशंका होती है उसके गले या नाक के अंदर से कॉटन के जरिये नमूना लेकर उसकी जाँच की जाती है। सैंपल गले या नाक से इसलिये लिया जाता है कि कोरोना का वायरस इन्हीं दोनों जगह पर ज्यादा सक्रिय रहता है।

मरीज की नाक या गले से लिये गये नमूने को एक विशेष रसायन में डाला जाता है जिसमें कोशिकाएँ वायरस से अलग हो जाती है यदि अलग हुए वायरस के लक्षण कोरोना वायरस के लक्षण से मिलते हैं तो कोरोना की पुष्टि हो जाती है।

एस्पिरेट टेस्ट

एक और टेस्ट होता है नेजल एस्पिरेट इसमें मरीज की नाक में विशेष रसायन डालकर नमूना लिया जाता है। एक और टे्रसल एस्पिरेट जाँच होती है इसमें मरीज के फेफड़ों तक ट्यूब डालकर नमूना लिया जाता है और फिर परीक्षण पश्चात कोरोना की रिपोर्ट दी जाती है।
इसके अलावा सप्टम टेस्ट जिसमें फेफड़े या नाक से लिये गये नमूनों से पता लगाया जाता है कोरोना का। रक्त नमूने के परीक्षण से भी रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा से कोरोना संक्रमण की जाँच की जाती है।

सुधि पाठकों जिस एंटीजन टेस्ट के कारण समस्या खड़ी हो रही है आपको ध्यान होगा इस एंटीजन टेस्ट के लिये भारत ने चीन से 10 लाख रेपिड टेस्टिंग किट मंगवायी थी। पश्चिम बंगाल, राजस्थान सहित अनेक प्रदेशों ने इस किट की गुणवत्ता और इसके परिणामों पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिये थे तब सरकार को इसका उपयोग बंद करना पड़ा था। इसके बाद भारत में ही इन रेपिड टेस्टिंग किटों का निर्माण होने लगा।

शुरू-शुरू में भारत की एस.डी. जैसी कंपनियों ने अच्छी गुणवत्ता के रेपिड टेस्टिंग किट बनाये, अच्छी गुणवत्ता के होने के कारण इनके परिणामों की शुद्धता काफी हद तक सही थी परंतु वर्तमान में शासकीय चिकित्सालयों में उपयोग में ली जा रही रेपिड टेस्टिंग किट निहायत घटिया दर्जे की होने के कारण परिणाम सही नहीं दे पा रही है।

एंटीजन टेस्ट में नाक से नमूना लेकर रेपिड टेस्टिंग किट की मदद से परीक्षण करके तत्काल 4-6 घंटे में ही रिपोर्ट दी जाती है, जबकि रियल टाईम पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (आर.टी.पीसी.आर.) जाँच में समय लगता है और कई बार इसे दो-तीन बार भी करना पड़ता है और यह जाँच अत्याधुनिक लैब में ही संभव है।

यदि उज्जैन के संदर्भ में बात करें तो एकमात्र आरडीगार्डी कॉलेज में ही यह लैब है। प्रशासन को चाहिये कि शासकीय चिकित्सालयों में एंटीजन टेस्ट के लिये उपयोग में ली जा रही रेपिड टेस्टिंग किटों को गुणवत्ता की कसौटी पर जाँचा जाना चाहिये। हो सकता है बढ़ते संक्रमण के पीछे यह भी एक महत्वपूर्ण कारण हो।

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