नई दिल्ली। एम्स (दिल्ली) और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के अलग-अलग अध्ययनों के अनुसार, COVID-19 का ‘डेल्टा’ संस्करण (पिछले साल अक्टूबर में पहली बार भारत में पाया गया संस्करण) कोवैक्सिन या कोविशील्ड टीकों की दोनों खुराक प्राप्त करने के बाद भी लोगों को संक्रमित करने में सक्षम है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अभी तक किसी भी अध्ययन की सहकर्मी-समीक्षा नहीं की गई है। एम्स के अध्ययन में यह कहा गया है कि ‘डेल्टा’ संस्करण ‘अल्फा’ संस्करण की तुलना में 40 से 50 प्रतिशत अधिक संक्रामक है।
एम्स-आईजीआईबी (इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी) का अध्ययन 63 रोगसूचक रोगियों के विश्लेषण पर आधारित था, जिन्होंने अस्पताल के आपातकालीन वार्ड में पांच से सात दिनों तक तेज बुखार की शिकायत की थी। इन 63 लोगों में से 53 को कोवैक्सिन की कम से कम एक खुराक और बाकी को कोविशील्ड की कम से कम एक खुराक दी गई थी। 36 को इनमें से एक टीके की दोनों खुराकें मिली थीं।
दोनों अध्ययनों के डेटा से संकेत मिलता है कि ‘अल्फा’ संस्करण भी कोविशील्ड और कोवैक्सिन के लिए प्रतिरोधी साबित हो रहा है, लेकिन उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि भारत से पहली बार रिपोर्ट किया गया संस्करण। दोनों अध्ययनों ने यह भी संकेत दिया कि टीके की ‘डेल्टा’ और यहां तक कि ‘अल्फा’ से सुरक्षा को कम किया जा सकता है, इसके परिणामस्वरूप प्रत्येक मामले में संक्रमण की गंभीरता अप्रभावित दिखाई देती है।
पिछले हफ्ते वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक सरकारी अध्ययन ने संकेत दिया कि भारत में दूसरी कोविड लहर के पीछे ‘डेल्टा’ संस्करण था। लहर के चरम पर हर दिन चार लाख से अधिक नए मामले सामने आए। विशेषज्ञों ने सरकार से संक्रमण की तीसरी लहर की प्रत्याशा में देश भर में टीकाकरण की गति बढ़ाने का आग्रह किया है। अब तक करीब 24 करोड़ डोज दी जा चुकी है।