ये कैसा अपडेट : दस्तावेज पंजीयन सिस्टम उलझा, माकड़ौन-तराना के किसान परेशान

दस्तावेजों की सर्चिंग में दिक्कत;  ऋण, जमीन क्रय-विक्रय से महरूम हुए किसान

उज्जैन। तराना और माकड़ौन तहसील के कृषक दस्तावेज पंजीयन के अपडेट सिस्टम में उलझकर रह गए हैं। न तो सिस्टम अपडेट हुआ है और ना ही सही तरीके से चल रहा है। शिकायत की गई वो भी ढाक के तीन पात हो गई। टोल फ्री नम्बर कोई उठाता नहीं है। राजधानी में टोलफ्री नम्बर के हाल बेहाल है। समस्या का निराकरण करने के लिए किसी को फुर्सत नहीं है। कृषक भगवान भरोसे और कर्ज के लिए साहूकार के।

उज्जैन जिले की तराना तहसील के दो हिस्से किए गए हैं। राजस्व के मान से तराना तहसील में माकड़ौन को भी उपतहसील का दर्जा है। ऐसे में वाणिज्य कर विभाग के अधीन पंजीयन एवं मुद्रांक विभाग के माध्यम से संचालित साफ्टवेयर हाल ही में पटवारी हल्का विभाजन करते हुए अपडेट किए गए हैं। जबसे साफ्टवेयर अपडेट किया गया है। तभी से कृषकों के लिए समस्याओं का पिटारा खुल गया है।

जानकारों के मुताबिक माकड़ौन और तराना तहसील के पटवारी हल्का नंबर अलग-अलग करते हुए 01 अगस्त से साफ्टवेयर अपडेट किया गया है। इस सिस्टम में तराना और माकड़ौन तहसील के भूमि-भवन से संबंधित सभी दस्तावेज सर्च करने की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है। जब से सिस्टम अपडेट किया गया है तब से ही दस्तावेज सर्च की यह प्रक्रिया उलझकर रह गई है। पिछले करीब एक माह से यह दिक्कत तराना और माकड़ौन में बनी हुई है। इस समस्या को लेकर मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर भी शिकायत दर्ज की गई। 17 अगस्त को दर्ज शिकायत पर अब तक अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया है।

समस्या को लेकर सम्पदा भोपाल के टोल फ्री नम्बर पर भी प्रतिदिन काल किए जा रहे हैं। टोलफ्री नम्बर के हालात यह है कि नक्कारखाने में तूती की तरह यह नम्बर नो रिप्लाई होता है। इस समस्या के चलते बैंकों से ऋण लेने वाले कृषक उलझकर रह गए है। बैंकों की बजाए उन्हें क्षेत्र के साहूकारों के पास अपना दस्तावेज गिरवी रखते हुए अधिक ब्याज पर ऋण लेने पर मजबूर होना पड़ रहा है।

इसके साथ ही जमीन और भवन, भूखण्ड के क्रय-विक्रय के मामलों में भी सर्च न होने के कारण इस प्रकार के सौदे भी उलझन भरे हो रहे हैं। पंजीयन के जुड़े अभिभाषक गोपालकृष्ण बाहेती बताते हैं कि समस्या का निराकरण न होने के कारण कई सारे मामले उलझकर रह गए हैं। बैंकों के ऋण संबंधी मामले भी उलझन में पड़े हुए हैं।

कृषकों की भूमि, भवन, भूखण्ड के क्रय-विक्रय के मामले भी बगैर सर्च के ही अंजाम दिए जा रहे हैं। इससे भविष्य में कई सारे मामलों में समस्याएं और उलझन आना तय है।

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