प्राचीन ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग होना चाहिए : मेनन

उज्जैन, अग्निपथ। हमारे शास्त्रों में निहित ज्ञान राशि की गहराई में जाते हुए इस ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग होना चाहिए। ऐसे आयोजन मार्गदर्शक होते हैं। प्राचीन व अर्वाचीन ज्ञान-विज्ञान की पद्धति का समन्वय करते हुए लोककल्याण की योजना आवश्यक है। कल्पवल्ली के अवसर पर आयोजित शोध संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विजयकुमार मेनन ने ये विचार व्यक्त किये।

इस अवसर पर शोधालेख प्रस्तुत करते हुए मानसरोवर आयुर्वेद महाविद्यालय, भोपाल के डॉ. दिनेशकुमार शर्मा ने कहा कि आयुर्वेद में विधि निषेध क्रम से स्वास्थ्य की शिक्षा दी जाती है। सद्आचार को महर्षि चरक ने आचार रसायन कहा है। स्वास्थ्य के लिए वात पित्त और कफ का समन्वय आवश्यक है। शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, उज्जैन की डॉ. कविता मंदोरिया ने कहा कि आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा विश्व की प्राचीनतम् विधाएं हैं। अथर्ववेद में ओषधियों का प्रयोग रूप साधम्र्य के आधार पर हुआ है। मंत्र और ओषधि के संयुक्त प्रयोग से रोगी पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है।

वेद विद्यापीठ, चिचोट, हरदा के प्राचार्य डॉ. गोविन्द माहेश्वरी ने कहा कि अथर्ववेद में सम्पूर्ण मानव प्रजाति के लिए कल्याणकारी विषयों का प्रतिपादन हुआ है। अथर्ववेद मनुष्यजीवन को समग्रता से जीने का मार्गदर्शन करता है। आयुर्वेद महाद्यिालय के डॉ. जितेन्द्र जैन ने कहा कि वेदों में सद्वृत्त प्रकरण अत्यंत महत्वपूर्ण है। कृमि और विषाणु अदृश्य होते हैं और शरीर में रोगों का कारण बनते हैं। सभी रोगों की चिकित्सा के लिए वनस्पतियों के प्रयोग का उल्लेख प्राप्त होता है।

आयुर्वेद महाविद्यालय संहिता विभागाध्यक्ष डॉ. रामतीर्थ शर्मा ने कहा कि आधिदैविक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से असाध्य एवं गंभीर रोगों की चिकित्सा सम्भव है। संस्कृत विश्वविद्यालय और आयुष विभाग द्वारा मन्त्र एवं ओषधि से चिकित्सा के सम्बंध में नए आयाम खोजे जाने चाहिये। वरिष्ठ विद्वान् डॉ. केदारनाथ शुक्ल ने वेदों के महत्व को रेखांकित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सन्तोष पण्ड्या ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. योगेश्वरी फिरोजिया ने किया। इस अवसर पर आमंत्रित वैदिकों ने शाखस्वाध्याय प्रस्तुत किया।

घर्मप्रयोग में आहुतियाँ दी गईं

कल्पवल्ली के अन्तर्गत 13 जनवरी को दोपहर 3 बजे से अथर्ववेदीय घर्मप्रक्रिया प्रारम्भ हुई। गोकर्ण (कर्नाटक) से पधारे विद्वान् श्रीधर अडि ने विधिपूर्वक इस प्रक्रिया को सम्पन्न किया। पर्यावरण शुद्धि के लिए तथा मानव मात्र के कल्याण के लिए सम्पन्न इस प्रक्रिया में अथर्ववेदोक्त विविध ओषधियों तथा रसायनों का प्रयोग करते हुए अग्नि में आहुतियाँ दी गईं। डॉ. केदारनाथ शुक्ल ने इस आयोजन की व्याख्या की। इस अवसर पर पूर्व महापौर मदनलाल ललावत, समाजसेवी वासुदेव केसवानी, डॉ. वंदना त्रिपाठी, एनपी शर्मा सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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