गुनाहगारों! मासूमों-निरीहों की आह और ईश्वर की अदालत तुम्हें नहीं छोड़ेगी

जहाँ घटने थे फासले
सिमटनी थी दूरियां
वहीं कैसे समां गयी
हंसती-खेलती जिंदगियां…

30 अक्टूबर की मनहूस शाम गुजरात के मोरबी जिले की 134 हंसती- खेलती जिंदगियों को लील गयी। दुर्भाग्य की बात यह है कि मृतकों में अधिकांश अबोध बच्चे और महिलाएं थी। 4 हजार 872 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले मोरबी जिले की जनसंख्या 9 लाख 60 हजार 329 है। 84.59 प्रतिशत साक्षरता दर वाले जिले में 349 गाँव आते हैं। इतिहास बताता है कि दूध, मक्खन और घी की नदियों वाला मोरबी भारत देश का एक समृद्ध राज्य था जिस पर मुगल साम्राज्य के कुतुबउद्दीन ऐबक से लेकर राजपूत राजा लखबीर जी डाकोर के बाद अँग्रेजों ने राज किया। समुद्र से 35 किलोमीटर, राजकोट से 60 किलोमीटर, जिसके उत्तर में कच्छ, पश्चिम में जामनगर, पूर्व में सुरेन्द्र नगर, दक्षिण में राजकोट है। देश की आजादी के बाद मोरबी ने अपनी अलग पहचान बनायी। 390 सिरेमिक और 150 दीवार घडिय़ों के कारखानों ने पूरे देश का ध्यान मोरबी की तरफ खींचा।

जिस 143 साल पुराने केबल पुल पर युद्ध ह्रदय विदारक हादसा हुआ वह 765 फीट लम्बा 4 फीट चौड़ा है। इस ऐतिहासिक पुल का निर्माण मोरबी के राजा प्रजावत्स्ल्य वाघ जी ठाकोर ने सन् 1879 में इस पुल का निर्माण प्रारंभ करवाया था और सन् 1880 में इसका उद्घाटन मुम्बई के गवर्नर रिचर्ड टेम्पल ने किया तब उसकी लागत 3.5 लाख थी। इस झूलते पुल का निर्माण ब्रिटिश इंजीनियरों की देखरेख में किया गया था और सारी सामग्री भी ब्रिटेन से ही आयी थी। इसके निर्माण में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हुआ है जो अच्छी यांत्रिकी कला का नमूना है। तत्कालीन राजा राजमहल से राजदरबार जाने के लिये इस झूलते पुल का उपयोग करते थे।

ऋषिकेश के राम और लक्ष्मण झूले जिस तरह आकर्षण का केन्द्र है। उसी तरह मोरबी के लोग भी गुजरात पर्यटन विभाग की सूची में दर्ज इस पुल पर घूमने जाया करते थे। औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण मोरबी में बिहार और उत्तरप्रदेश के श्रमिक भारी तादाद में रहते हैं। छठ पूजा का अवसर होने के कारण 29 अक्टूबर को सूर्यास्त की पूजा के बाद 30 की शाम को परिवार सहित पुल को देखने गये थे उन्हें नहीं पता था कि यह शाम ‘काल’ की शाम होगी।

दुर्भाग्यपूर्ण हादसे में 18 साल से कम उम्र के 45 तथा महिला पुरुषों सहित 134 लोगों की जानें गयी, 170 लोगों को बचा लिया गया। इस पुल को 6 माह के मरम्मत कार्य के बाद 25 अक्टूबर को खोल दिया गया था जबकि पुल का फिटनेस प्रमाण पत्र और सरकार की तीन एजेन्सियों द्वारा सुरक्षा प्रमाण पत्र जारी होने के पूर्व ही नेता जयसुख भाई पटेल ने अपनी पौती के हाथों इस झूलते पुल का शुभारंभ करवा दिया। जिंदल गु्रप ने 25 साल की ग्यारंटी ली थी। पुल की मरम्मत में ही दो करोड़ रुपये खर्च किये गये थे। पुल के रखरखाव, सफाई, सुरक्षा और टोल वसूलने का ठेका ओधव जी पटेल के स्वामित्व वाले आरेवा ग्रुप ने मार्च 2022 से मार्च 2037 तक 15 सालों के लिये मोरबी नगर पालिका से अनुबंध कर रखा है।

देश के पंत प्रधान मोदी जी ने कहा था कि ‘ना खाऊँगा ना खाने दूँगा’ इसमें ‘ना खाऊँगा’ की बात पर तो सारे देशवासी सहमत है पर ‘ना खाने दूँगा’ वाली बात उल्टी साबित होती दिखायी दे रही है। देश में भ्रष्टाचार पूर्ववर्ती सरकारों की तुलना में और अधिक बढ़ गया है। शासकीय कार्यालयों में पहले से अधिक बैखौफ होकर रिश्वत ली जा रही है। पूरे देश में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के राज्य की गुजराती कंपनियां कार्य कर रही है।

यदि उज्जैन की बात करें तो स्मार्ट सिटी योजना में गुजरात की बावरिया कंपनी 300 करोड़ से अधिक के कार्य एवं प्रधानमंत्री आवास योजना में गुजरात की ही ज्योति इन्फ्राटेक कंपनी प्रधानमंत्री आवास योजना के 150 करोड़ से अधिक का कार्य कर रही है जिनमें भ्रष्टाचार की शिकायतें आये दिन अखबारों की सुर्खियां बन रही है। शायद भ्रष्टाचारियों के हौंसले जितने इस समय बुलंद है उतने कभी नहीं रहे।

दैनिक अग्निपथ इस हादसे में मारे गये निरीह नागरिकों के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता है और परमपिता परमेश्वर से यह प्रार्थना करता है कि इस घटना के लिये जिम्मेदार, लापरवाह लोगों को भले ही वह कितने ही प्रभावशाली हो वह इस दुनिया की अदालत से भले छूट जाए पर ऊपर वाले निरीह मासूमों के हत्यारों को तेरी अदालत में सजा जरूर देना।

– अर्जुन सिंह चंदेल

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