मध्यप्रदेश विधानसभा की 28 सीटों के लिये होने जा रहे उपचुनाव का प्रचार थम गया है। पिछले दो माहों से अधिक समय से मतदाता शोर-शराबे से परेशान था। मतदाता कहकर मैं संबोधित कर रहा हूँ।
बकौल एक राजनेता, मध्यप्रदेश मेरा मंदिर है, इसके नागरिक मेरे भगवान, और मैं मंदिर का पुजारी। इसलिये तथाकथित ‘मतदाता भगवान’ लंबे समय से तुम्हारा पूजन-अर्चन करने वाले पुजारीरूपी राजनैतिक दलों के नेताओं ने प्रजातंत्र के इस चुनावी समर दौरान तुम्हारी चौखटों पर माथा टेका, मान-मनुहार की, तुम्हारी आराधना भी की, क्योंकि उनके कहे अनुसार तुम मंदिर रूपी मध्यप्रदेश के नागरिक रूपी भगवान जो हो। इस कारण ‘पुजारियों’ को ‘भगवान’ की सेवा करनी ही चाहिये।
पर हे मतदाता रूपी भगवान, तुम ध्यान रखना कल मतदान होने के बाद यह कलयुगी ‘पुजारी’ तुम्हें अगले चुनाव तक पूछने वाले भी नहीं है। सत्ता की कुर्सी मिलने के बाद अहंकार में डूबे यह राजनेता पलटकर भी नहीं देखते कि उनका भगवान किस स्थिति में है और किन परिस्थितियों के बीच अपना जीवन यापन कर रहा है। इसलिये हे मतदाता रूपी भगवान, तुम्हारे पास अभी से 24 घंटे का बहुमूल्य समय है जिसमें तुम शांत मन से चिंतन-मनन कर सको ताकि प्रजातंत्र के इस चुनावी यज्ञ में सही प्रत्याशी के पक्ष में मतदान की समिधा डाल सको।
मैं जानता हूँ मतदाता, तुम्हारे पास विकल्प ज्यादा अच्छे नहीं है क्योंकि यहाँ प्रमुखत: दो ही राजनैतिक दल भाजपा और काँग्रेस मैदान में है। इसमें से ही तुम्हें किसी एक को चुनना होगा। राजनैतिक विचारधारा का प्रश्न तो लगभग इन चुनावों में गौण-सा दिखता है क्योंकि सभी राजनैतिक दलों के चरित्र का पतन हुआ है। देश का हर राजनैतिक दल अपने सत्ता स्वार्थ के लिये किसी भी धुर विरोधी विचारधारा के दल से भी गले लगने को तैयार है। देश के नागरिकों ने जम्मू-कश्मीर में भाजपा-मेहबूबा गठबंधन की सरकार देखी है तो महाराष्ट्र में शिवसेना-काँग्रेस गठबंधन और उत्तरप्रदेश में भाजपा-बसपा गठबंधन भी होते देखा है।
काँग्रेस हो या भाजपा या कोई अन्य राजनैतिक दल के नेता, कब अपने निजी स्वार्थों के हित साधने के लिये मतदाताओं के विश्वास और पार्टी के प्रति निष्ठा को अँगूठा दिखा दें, कोई ग्यारंटी नहीं है। वैसे भी कल देश के बिहार सहित (दूसरे चरण) अनेक प्रांतों में होने जा रहे चुनावों में राजनैतिक दलों के नेताओं ने जिस तरह एक-दूसरे पर व्यक्तिगत रूप से कीचड़ उछाला है और जिस निम्न स्तर की भाषा शैली का उपयोग किया है, वह नीचता की पराकाष्ठा है।
मतदाताओं के सामने सार्वजनिक रूप से कुत्ता, बिल्ली, सियार सब बन गये, महिलाओं के प्रति ‘आयटम’ जैसे शब्दों का प्रयोग किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
इस देश के नागरिकों ने पूर्व प्रधानमंत्रियों अटल बिहारी वाजपेयी, श्रीमती इंदिरा गाँधी, चंद्रशेखर, मोरारजी देसाई को भी देखा है कि वह राजनैतिक मतभेद होते हुए भी किसी विरोधी नेता पर व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करते थे और ना ही उसका नाम तक लेते थे और अब वर्तमान नेताओं के शब्द कोष में से जो शब्द निकलते हैं वह मन को पीड़ा देते हैं। वैसे भी राजनीति में शुचिता का अभाव होता जा रहा हैं।
यदि हम बात करें वर्तमान में बिहार और मध्यप्रदेश में होने जा रहे चुनावों की तो इन चुनावों में ना तो कोई राष्ट्रीय मुद्दा है ना प्रादेशिक। सिर्फ और सिर्फ व्यक्तिगत आक्षेपों को लेकर यह चुनाव लड़े जा रहे हैं। बिहार में नीतीश विरुद्ध तेजस्वी यादव, चिराग पासवान विरुद्ध नीतीश, भाजपा और काँग्रेस तो लग ही नहीं रहा है कि चुनाव मैदान में है या उनको वहां का मतदाता गंभीरता से नहीं ले रहा है।
इसी तरह मध्यप्रदेश के चुनाव पूरी तरह से कमलनाथ विरुद्ध ज्योतिरादित्य सिंधिया होकर रह गये हैं। शिवराज सिंह को छोडक़र भाजपा के ना तो राष्ट्रीय नेताओं और ना ही प्रादेशिक नेताओं की अधिक भूमिका परिलक्षित हो रही है। इसी तरह काँग्रेस की ओर से कमलनाथ के अलावा कोई नेता नजर नहीं आया। गाँधी परिवार ने भी इन उपचुनावों से अपने आपको दूर जैसा ही रखा।
इसलिये मध्यप्रदेश के 28 विधानसभा सीटों के उपचुनावों के मतदाताओं आपसे अपील करता हूँ कि मतदान पूर्व अपने नीर-क्षीर-विवेक का उपयोग जरूर करना। राजनैतिक दलों का चाल-चरित्र और चेहरा तो लगभग एक जैसा ही हो गया है। इस कारण क्षेत्र के उम्मीदवारों के चरित्र को अपने विवेक की कसौटी पर जरूर कसना। प्रत्याशियों का अतीत, उनके व्यवहार, उनके सामाजिक रसूख को ध्यान में रखकर जो तुम्हारे सुख-दु:ख में काम आये, आदर-सम्मान करे उसके ही पक्ष में मतदान करना और जहाँ दोनों ही दलों से आयाराम-गयाराम हो, बाहुबलि हो वहाँ भले ही किसी गरीब और अच्छे छवि वाले निर्दलीय प्रत्याशी को विजयी बनाकर इस प्रजातंत्र की दरकती इमारत के सुराखों को भरकर मजबूत करना।
-अर्जुनसिंह चंदेल