उज्जैन का सौभाग्य जो मेजबानी का अवसर मिला

अर्जुन सिंह चंदेल

इसे कलयुग में चमत्कार कहें या प्रभु का आशीर्वाद कि मात्र कुछ वर्षों पूर्व तक महाकाल की पावन नगरी में अपने मित्रों के साथ दो पहिया वाहन में घूमने वाला साधारण इंसान समय के काल पर सवार होकर आज महामानव के रूप में स्थापित हो गया है। उम्र के 60 वर्षों के दौरान परमपिता की इतनी कृपा चंद लोगों पर ही होते देखी मैंने। निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मा बालक जिसके पिता चने का ठेला व चाय की दुकान मध्यप्रदेश के सीहोर में लगाकर जीवकोपार्जन करते हो उस कर्मशील पिता की संतान लोकप्रियता के चरम शिखर पर पहुँचेगा यह कल्पना से परे है।

लोकप्रियता के वर्षों पूर्व भी पंडित प्रदीप मिश्रा जी कथा करने पहले भी उज्जैन आये थे और स्थानीय झालरिया मठ में गिनती के श्रद्धालुओं को कथा सुनाकर चले गये थे। शोभायात्रा में भी मात्र 20-25 लोग ही शामिल थे। वही पंडित प्रदीप मिश्रा मात्र 42 वर्ष की आयु में अंतरार्राष्ट्रीय चेहरा बनकर भोलेनाथ की नगरी में पुन: कथा करने आये हैं। इस बार की उनकी शिवपुराण कथा ने उज्जैन में एक नया इतिहास रच दिया है। मेरे शहर के नागरिकों ने इसके पहले किसी कथाकार की कथा में इतना जनसैलाब नहीं देखा। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि किसी राजनेता यहाँ तक कि लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी की सभा में भी इतनी भीड़ उन्हें सुनने नहीं जुट पाते हैं। पंडित प्रदीप मिश्रा की जादुई वाणी का आकर्षण लोगों के सर चढक़र बोल रहा है।

उज्जैन के इतिहास में इतनी जनमैदिनी शायद सिंहस्थ 2016 के बाद पहली बार देखने को मिली। शहर की होटलों के बाहर हाऊसफुल के बोर्ड टंग गये हैं। आटो रिक्शा, ई रिक्शा, छोटे व्यापारी कोरोना में हुए नुकसान की भरपाई में सफल हो रहे हैं।

मेरे शहर उज्जैन और यहाँ के नागरिकों का सौभाग्य है कि पंडित मिश्रा की कथा का अवसर मिला और उज्जैनवासियों को देशभर से आये धर्मालुओं, श्रद्धालुओं, हिंदु धर्मावंलम्बियों की मेजबानी का अवसर वर्तमान वैज्ञानिक युग में किसी व्यक्ति की वाणी पर इनती अगाध श्रद्धा और इतना अटूट विश्वास समझ से परे हैं, शायद आस्था इसी का नाम है कि मनुष्य पत्थर में भी भगवान के दर्शन कर लेता है। पं. प्रदीप मिश्रा के प्रति लोगों की दीवानगी ने सारी हदें पार कर दी है।

हिंदुस्तान के कोने-कोने से आये हजारों-हजार धर्मालु पिछले सात-आठ दिनों से आकाश के नीचे खुले में पड़े हुए हैं। पंखे, एयरकंडीशनर में रहने वाले भी खुले में ही शौच जा रहे हैं, महिलाएं वहीं स्नान कर रही हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कथा आयोजन के प्रबंध के लिये बनी आयोजन समिति बहुत बौनी साबित हुयी। शुरू से विवादों से घिरी आयोजन समिति स्थानीय राजनीतिक षडय़ंत्रों का भी शिकार हुयी। वरिष्ठजनों, विकलांगों को 3-3 किलोमीटर पैदल चलकर कष्ट उठाना पड़ रहा है।

व्यास पीठ के सामने ही अतिविशिष्ट व्यक्तियों के लिये बने क्षेत्र में प्रतिदिन मारपीट, अराजकता के दृश्य दिखना आम बात हो गयी। पुलिसकर्मियों ने अपने परिजनों को जमकर उपकृत किया वर्दी का रौब दिखाकर पूरी व्यवस्था पर अतिक्रमण कर लिया। पंडित जी ने हुयी असुविधा के लिये खेद भी व्यक्त किया जा ेकि लाजिमी था। इंदौर से आयातित बाउंसरों ने भी उज्जैन के नागरिकों के साथ बदजमीजियां की, जनसुविधा और शौचालयों की संख्या ऊँट के मुँह में जीरे के समान थी। बाहर से आये धर्मालुओं को हुयी असहनीय असुविधा के लिये आयोजन समिति के साथ उज्जैनवासियों को भी खेद व्यक्त करना ही चाहिये।

खैर, सात दिवसीय कथा के श्रवण से उम्मीद की जानी चाहिये कि यहां आया प्रत्येक व्यक्ति ज्ञान का अमृत लेकर जायेगा और देश का अच्छा नागरिक साबित होगा।

जय महाकाल

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