मेरी यूरोप यात्रा भाग-1: बर्फ की चादर ओढ़े प्रकृति कर रही थी स्वागत

Arjun chandel Ujjain in finland 11 04 23

अर्जुनसिंह चंदेल

यूरोपियन पाउडर कोटिंग प्रदर्शनी जो कि तीन दिन 27-28-29 मार्च को जर्मनी के नर्यूमबर्ग शहर में आयोजित की गयी थी उसमें भाग लेने वाले 48 भारतीयों के दल में सौभाग्य से मैं भी शामिल था। दल के कुछ सदस्यों को 27 मार्च को दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद से फ्लाईट पकडक़र फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी पहुंचना था और हेलसिंकी से कनेक्टिंग फ्लाईट पकडक़र जर्मनी के म्युनिख और वहाँ से वीडियो कोच द्वारा न्र्यूमबर्ग पहुँचना था।

यात्रा के चंद दिनों पूर्व म्युनिख में परिवहन की हड़ताल घोषित होने से बहुत सारी फ्लाईटं रद्द कर दी गयी। पूरी यात्रा का शेड्यूल गड़बड़ा गया एक बार तो ऐसा लगा कि यात्रा ही निरस्त हो जायेगी परंतु टूर आपरेटर संजीव दीक्षित की सूझबूझ और मेहनत के फलस्वरूप शेड्यूल में परिवर्तन लेकर नया शेड्यूल बनाया गया। दिल्ली से फ्लाईट लेने वालों को तो ज्यादा असुविधा नहीं हुयी परंतु, मुम्बई से आने वाले कई साथी छूट गये और बाकी को अधिक पैसा खर्च कर इंस्ताबुल के रास्ते जर्मनी पहुँचना पड़ा।

खैर, मेरी पहली यूरोप यात्रा को लेकर मेरे मन में उत्साह हिलोरे मार रहा था। उज्जैन से मैं और इंदौर से अनुल ज्ञानेश गंगवार, मध्यप्रदेश से मात्र हम दो लोग ही 48 सदस्यीय दल के सदस्य थे। 27 मार्च की सुबह नयी दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से फिनलैंड के हेलसिंकी के लिये हमारे दल की फिन एयरवेज के एयरक्राफ्ट से हमारी उड़ान थी।

इमीग्रेशन और तमाम तरह की अन्य औपचारिकता के लिये हमें 27 मार्च की सुबह उड़ान समय 7:20 से 3 घंटे पहले अर्थात अलसुबह 4:30 तक हर हाल में रिपोर्टिंग करना थी इस वजह से हम इंदौर से 26 मार्च को शाम 8:20 पर विस्ता एयरवेज की फ्लाईट पकडक़र रात 10 बजे दिल्ली पहुँच गये। एयरपोर्ट से सामान आदि बाहर लेकर आने में रात के 11 बज गये थे। पूरी रात काटनी थी और अगले पूरे दिन सफर करना था अत: एरोसिटी के एक होटल में एक कमरा लेकर सो गये।

होटल मैनेजर को सुबह 3:30 बजे उठाने का कहकर बढिय़ा नींद सोये सुबह उठकर 4:30 पर इंदिरा गाँधी अंतर्राराष्ट्रीय हवाई अड्डे नयी दिल्ली पर अपनी आमद दे दी वहाँ ग्रुप के अन्य सदस्य हमारा इंतजार ही कर रहे थे। भारी भरकम भीड़ और लंबी लाइन में लगकर सामान की चेकिंग, इमीग्रेशन आदि में लगभग डेढ़ घंटा लग गया था।

पाकिस्तान, अफगानिस्तान, रूस के ऊपर से होकर गुजरे

सूर्योदय होते ही फिन एयरवेज के एयरक्राफ्ट में हेलसिंकी के लिये बोर्डिंग शुरू हो गयी। ठीक 7:40 पर विमान ने उड़ान भरी। राजस्थान के बीकानेर, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, रूस के ऊपर से होते हुए विमान को 5500 किलोमीटर का हवाई सफर तय करना था।

सीट के सामने लगी स्क्रीन विमान की गति 900 किलोमीटर प्रति घंटे की दर्शा रही थी और विमान की ऊँचाई जमीन से 10 हजार से 12 हजार फुट बता रही थी यात्रा समय साढ़े आठ घंटे।

इकोनामी दर्जे की यात्रा तो कष्टदायक ही होती है परंतु अंतर्राराष्ट्रीय यात्राओं ने यात्रियों की सुख-सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा जाता है जिस कारण सफर में कष्ट कम महसूस होता है। विमान में मौजूद परिचायक और परिचायिकाओं की मुस्कराहट और शालीन व्यवहार तकलीफें कम कर देता है। पहले नाश्ता फिर बीयर, वाईन, कोल्ड्रिंक्स पेश करने के बाद खाना दिया जाता है शाकाहारी में सब्जी, चावल, मीठा और माँसाहारी में चिकन, चावल दिये जाते हैं।

राम-राम करते-करते जैसे-तैसे यात्रा अंतिम पड़ाव पर पहुँचने का संकेत हो गया। हम भारत की धरती से हजारों किलोमीटर दूर यूरोप की धरती पर कदम रखने वाले थे रोमांच अपने चरम पर था। एक बात और बता दूँ वहाँ का समय हमसे साढ़े तीन घंटे पीछे चलता है।

हमारा विमान जब हेलसिंकी से करीब डेढ़-दो सौ किलोमीटर दूर था तभी विमान में सूचना दी गयी कि हेलसिंकी में भारी बर्फबारी हो रही है। लगभग आधे घंटे की देरी से वहाँ के समयानुसार डेढ़ बजे हमारे विमान ने लेंडिंग की। हेलसिंकी एयरपोर्ट पर स्वर्ग-सा नजारा था। चारों ओर बर्फ ही बर्फ जहाँ तक नजर जा रही थी ऐसा लग रहा था मानों प्रकृति बर्फ की चादर से पृथ्वी का अलिंगन कर रही हो और हमारा स्वागत। शेष कल….

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