मेरी यूरोप यात्रा भाग-2: खूबसूरत मौसम और बर्फबारी के मजे

अर्जुनसिंह चंदेल

हवाई जहाज से एरोब्रिज के माध्यम से पूरी धरती के सबसे खुशहाल देश फिनलैंड के हेलसिंकी एयरपोर्ट के अंदर पहुँचे, बाहर का नजारा बेहद खूबसूरत और रोमांटिक था। जिस बर्फबारी को देखने के लिये भारतीय पर्यटकों को जेब के हजारों रुपये खर्च करके कश्मीर और हिमाचल जाना पड़ता है वह हमारी खुशकिस्मती से नि:शुल्क ही मिल गयी थी। दल के सभी सदस्य वीडियोग्राफी और फोटो खींचने में मशगूल हो गये। चूँकि एयरपोर्ट वातानुकूलित था इस कारण सर्दी नहीं लग रही थी पर बाहर का तापमान – 1 डिग्री सेल्सियस सुनकर ही ठंड लगने लगी थी।

पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार हमें हेलसिंकी से म्यूनिख जाना था परंतु वहाँ हड़ताल घोषित होने से हमें रूट बदलना पड़ा और हमें हेलसिंकी से वियना होकर जाना था जिसके लिये ढाई घंटे की यात्रा करनी थी और फ्लाईट का समय शाम पाँच बजे का था। हमें ढाई घंटे हेलसिंकी एयरपोर्ट पर ही अगली उड़ान के लिये प्रतीक्षा करना थी। खूबसूरत मौसम और बर्फबारी के मजे के कारण समय पता ही नहीं पड़ा और वियना के लिये उडऩे वाले विमान की बोर्डिंग शुरू हो गयी।

भारी बर्फबारी से हवाई अड्डे पर रनवे पूरी तरह बर्फ से ढक़ गया था। यहाँ हमें आधुनिकता का नजारा दिखा और अंतर भी। एयरपोर्ट के रनवे पर से बर्फ हटाने के लिये एक-दो नहीं 7-8 मशीनों ने मोर्चा संभाल लिया और भारी बर्फबारी के बाद भी रनवे को साफ कर दिया। हमारे हवाई जहाज पर बर्फ जम गयी थी अंदर के शीशों पर जमी बर्फ के कारण बाहर नहीं देख पा रहे थे तभी दो मशीनों ने आकर हमारे एयरक्राफ्ट पर किसी केमिकल का छिडक़ाव किया लगभग आधे घंटे तक जिससे सारी खिड़कियों के शीशे बिलकुल साफ हो गये और बर्फ भी नहीं ठहर पायी।

शायद मेरा देश होता तो इतनी बर्फबारी में उड़ान भरना असंभव होता परंतु वह यूरोप था भारी बर्फबारी के बीच ही हमारे एयरक्राफ्ट ने हेलसिंकी से वियना के लिये उड़ान भर ली। जमीन से कुछ किलोमीटर ऊपर आते ही आसमान पूरा साफ नजर आने लगा और लगा ही नहीं की नीचे धरती पर इतनी बर्फबारी हो रही है।

लगभग तीन घंटे की उड़ान के बाद हमारा विमान आस्ट्रिया की राजधानी वियना में उतरा। वहाँ के समयानुसार रात्रि के 9 बज चुके थे वीजा-पासपोर्ट के निरीक्षण उपरांत सामान लेकर हम लोग बाहर पहुँचे जहाँ जर्मनी से आये वीडियो कोच में हमें बिठाया गया। इस बीच हमारे टूर आपरेटर दीक्षित जी एवं नरेश भाई द्वारा सबको भोजन के पैकेट उपलब्ध कराये गये जिसमें पनीर-मटर की सब्जी, चावल और नान थे।

भारतीयों के लिये दो चीजें सबसे ज्यादा परेशानी का सबब है पहला तो भाषा की दिक्कत वहाँ कोई हिंदी नहीं बोलता है और हम जैसे को अँग्रेजी समझ आती नहीं। दूसरी समस्या शाकाहारी भोजन वालों की है क्योंकि वहाँ सभी गोरे माँसाहारी हैं, गेहूँ की रोटी के दर्शन तो होते ही नहीं हैं ब्रेड और नॉन ही चलते हैं। माँसाहारी में भी यूरोपियन बीफ, फ्राग और भी ना जाने क्या-क्या खा जाते हैं। भगवान ही मालिक है।

खैर, हमारा वीडियो कोच रात 10 बजे के लगभग वियना से जर्मनी के लिये रवाना हुआ। अत्याधुनिक वाई-फाई जैसी सुविधाएँ से लैस हमारे कोच का सारथी हष्ट-पुष्ट हंगेरियन था जो इशारों से हमारी बात को समझ लेता था।

कोच में बैठकर सभी ने पैकेटों में आये रात्रि भोजन का आनंद लिया। दल में सुराप्रेमियों ने सुरा पान करके दिनभर की लम्बी हवाई यात्रा की थकान मिटायी। रात्रि भोजन शरीर में आते ही उसने अपना काम दिखाना शुरू कर दिया और हम सभी साथी (एक-दो को छोडक़र) नींद के आगोश में आ गये।

लगभग 500 किलोमीटर की यात्रा थी। कोई चार घंटे की यात्रा के बाद सभी साथियों की नींद तब खुली जब बस रोकी गयी अचानक बस रूकने के कारण सभी ने देखा कि हमारे वीडियो कोच को जर्मन पुलिस ने चारों ओर से घेर लिया है पुलिसकर्मियों में शायद एक उच्चाधिकारी भी शामिल था। पहले तो वीडियो कोच के हंगेरियन चालक को उतारकर उसका हाथ ऊँचा करवाकर काफी देर तक पूछताछ की फिर हम सभी का नंबर आया।

…शेष अगले अंक में

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