मेरी यूरोप यात्रा : भाग-5; अद्भुत, अप्रतिम और जादुई है चेक गणराज्य की कार्लोवी वैरी

अर्जुनसिंह चंदेल

यात्रा प्रारंभ हुए तीन दिन बीत चुके थे देश के विभिन्न प्रांतों से आये साथी जो अभी तक अजनबी थे अब दोस्त बन चुके थे हँसी-मजाक ठिठोली का दौर चालू हो गया था। वीडियो कोच दो हिस्सों में बंट चुका था आगे का हिस्सा संजीदा लोगों का हो गया जिनमें से कुछ अपनी पत्नियों के साथ थे कुछ अकेले। कुछ ऐसे भी साथी थे जो बैठे तो आगे पत्नियों के साथ थे और संजीदा होने का अभिनय कर रहे थे पर थोड़ी-थोड़ी देर में पीछे की सीटों पर आकर अपने मूल स्वरूप में आ जाते थे।

जर्मनी को अलविदा कहकर अब हम चेक गणराज्य के शहर प्राग जा रहे थे रास्ता तो मात्र 3-4 घंटों का ही था परंतु यूरोप में होटलों का चेक इन टाईम दोपहर 3 बजे का ही रहता है इस कारण हमें भी वहाँ इसी समय पहुँचना था। यूरोप में देश कब बदल जाते हैं पता नहीं पड़ता 300-400 किलोमीटर बाद हर दूसरा देश। रास्तों के दोनों ओर दूर-दूर तक खेत ही खेत नजर आ रहे थे जिनमें हरियाली थी। सडक़े सीधी सपाट है ना कहीं पहाड़ ना नदियां। रास्ते में एक जगह पेट्रोल पंप पर कोच रूका जहाँ पास मेकडोनाल्ड का आऊटलेट था जहां सभी साथियों ने उतरकर लघुशंका की वह भी मुफ्त में नहीं तो पूरे यूरोप में जन सुविधाओं के लिये पचास (50) सेन्ट अर्थात आधा यूरो और हमारी भारतीय मुद्रा में 50 रुपये देना होता है तभी आप शौचालय या मूत्रालय में प्रवेश कर सकते हैं और यदि उच्च श्रेणी वाले शौचालयों या मूत्रालयों का उपयोग करना है तो एक यूरो मतलब भारतीय मुद्रा में 91 रुपयों का भुगतान करना होता है।

पूरी यूरोप यात्रा में साला यह टेंशन सबसे बड़ा था जिसके डर से भाई लोग बीयर नहीं पी रहे थे क्योंकि यदि बीयर का सेवन किया तो बार-बार लघुशंका के लिये जाना होगा और वहाँ भुगतान करना होता है दूसरी बात वहाँ वीडियो कोच हमारे देश जैसे हर कहीं नहीं रूकते हैं और हिंदुस्तान जैसी आजादी भी नहीं है कि कहीं भी खड़े होकर मूत्र विसर्जन कर लो।

बस में ही टूर आपरेटर संजीव जी ने बताया कि अब हम दुनिया की एक अद्भुत और अप्रतिम जगह पहुँचने वाले हैं जो अनूठी है और जिसका नाम है ‘कार्लोवी वैरी’ थोड़ी ही देर में हम वहाँ पहुँच गये। हमारे वीडियो कोच को वैरी के बाहर ही पार्क करवा दिया गया वहाँ प्रवेश का टिकट कितना लगा यह नहीं मालूम क्योंकि वह दीक्षित जी ने ही भुगतान किया था।

कोच से उतरकर हम वहाँ की स्थानीय बस में बैठ गये जिसने पाँच मिनट में ही हमें वहाँ प्रवेश करा दिया वहाँ हमें महिला गाइड की सुविधा उपलब्ध थी। कार्लोवी वैरी एक जादुई शहर है इसका स्त्रोत एक प्राचीन भूगर्भीय दोष है जिसके कारण चमत्कारी थर्मल झरनों से पानी और साथ में रहस्यमयी पृथ्वी चुम्बकत्व भी निकलना रहता है। थर्मल झरनों और चुम्बकीय दोनों प्राकृतिक प्रभावों का मानव स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

इस चमत्कार के कारण कार्लोवी वैरी चेक गणराज्य का सबसे बड़ा स्पा शहर बन गया है। इसके अस्तित्व के बाद से 60 लाख से अधिक रोगियों का ईलाज किया जा चुका है कार्लोवी वैरी की आय का मुख्य स्त्रोत पर्यटन है। यहाँ 80 से अधिक खनिज झरने निकलते हैं जिनमें 15 बड़े झरने हैं जिनके 34 और 73 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान वाले जल का उपयोग अलग-अलग बिमारियों के लिये होता है। कार्लोवी वैरी चेक गणराज्य के पश्चिमी कोने में 376 मीटर की ऊँचाई पर टेपला और ओहरे नदियों के संगम पर स्थित है। कार्लोवी शहर तीन पर्वत श्रृंखलाओं से अयस्क, डौपोव पर्वत और स्लावकोव वन और चारों तरफ से जंगली पहाडिय़ों से घिरा हुआ है।

किवदंती के अनुसार राजा चाल्र्स चतुर्थ ने सन् 1350 के आसपास एक हिरण के शिकार दौरान कार्लोवी वैरी स्प्रिंग्स की खोज की।
दुनिया भर के अमीर लोग यहाँ के वातावरण जिसमें गरम पानी के झरनों की गडग़ड़ाहट उनकी गर्म सांसे, वेफर्स की मीठी गंध, स्पा आर्केस्ट्रा के स्वर का आनंद लेने वैरी की गगनचुंबी और अत्याधुनिक सर्वसुविधा होटलों में महीनों पड़े रहते हैं। इस अद्भुत वैरी में स्वास्थ्य की देवी हायजिएला की मूर्ति भी है जो मनुष्य के निरोगी और स्वस्थ रहने का संदेश देती है। बुजुर्ग महिला गाइड ने हमें अँग्रेजी भाषा में इस जादुई कार्लोवी वैरी की जानकारी दी। कार्लोवी वैरी के भ्रमण के बाद हम वापस चल पड़े चेक रिपब्लिक के शहर प्राग की ओर…
…शेष अगले अंक में

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