कवेलू कारखाने की पूरी 139 बीघा भूमि को मुक्त करवाइये ‘आशीष’ जी

जिला प्रशासन एवं नगर निगम प्रशासन द्वारा पुलिस की मदद से कल कवेलू कारखाने की 10+6 भूमि को अतिक्रमण मुक्त करवाये जाने पर शहर के नागरिकों में शासन के प्रति विश्वास जगा है वहीं भू-माफियाओं और अतिक्रामकों की नींद हराम हो गई है।

उज्जैन के नागरिकों में कल की पशु बाड़ा तोडऩे की कार्यवाही के बाद उम्मीद की एक किरण जगी है कि महाकाल की यह नगरी भी इंदौर की तरह आवारा पशुओं से मुक्त हो सकेगी।

उज्जैन का सौभाग्य है कि उसे जिले के मुखिया के रूप में आशीष सिंह जैसा ऊर्जावान अधिकारी मिला साथ ही पुलिस कप्तान के रूप में भी एक दबंग अधिकारी सत्येन्द्र कुमार शुक्ला मिले। हम मध्यप्रदेश शासन को भी साधुवाद देना चाहेंगे जिन्होंने ऐस कत्र्तव्यनिष्ठ अधिकारियों की उज्जैन में पदस्थी की है जो कि बिना किसी राजनैतिक दबाव के अपनी कार्यशैली के लिये जाने जाते हैं।

जो अधिकारी राजनैतिक रसूख से मुक्त रहते हैं वही अपनी कत्र्तव्यनिष्ठा को अंजाम तक पहुँचा पाते हैं। इस शहर ने वर्षों पहले जिलाधीश के रूप में श्री महेश नीलकंठ बुच को पाया था जिनके कार्यकाल में मिर्जानईम बेग चौड़ीकरण जैसे अनेक ऐतिहासिक काम हुए। उज्जैन ने श्री जी.पी. सिंघल की कलेक्टरी भी देखी है जिन्होंने बिना किसी दबाव के जनहित में कार्य किये आज वर्षों के बाद भी उन्हीं की तरह संभागायुक्त स्वर्गीय सी.पी. अरोरा, पुलिस अधीक्षक पन्नालाल, निगमायुक्त के रूप में विनोद शर्मा जिनके कार्यकाल में देवासगेट से महाकाल मंदिर मार्ग का चौड़ीकरण हुआ ऐसे अनेक अधिकारी अपनी कार्यशैली के कारण अमर हो गये हैं और वर्षों तक याद किये जाते रहेंगे।

उज्जैन के नागरिकों का उनके प्रति सम्मान निसंदेह मानवीय प्रवृत्ति है। कल जिलाधीश आशीष सिंह जी के निर्देशन पर मुक्त कराई गई कवेलू कारखाने की 139 बीघा जमीन की कहानी बहुत पुरानी है, सन् 1920 से 1930 तक इस पर सिंधिया राजघराने के स्वामित्व वाली भूमि पर ग्वालियर टाईल्स वक्र्स लिमिटेड के नाम से कारखाना हुआ करता था जिसमें टाइल्सों का निर्माण होता था। जिसके पट्टेदार रामरतन मुन्नालाल, और हवीकथत राय विष्णु विनायक थे। सन् 1930 में इसके दिवालिया होने पर सिंधिया घराने द्वारा उनके स्वामित्व की भूमि पर निर्मित भवन में स्थापित मशीनरी व पड़े हुए सामान की नीलामी टाईम्स ऑफ इंडिया में इश्तहार (विज्ञापन) प्रकाशित करवाया जिसमें उज्जैन के स्वर्गीय मन्नी भाई लद्दा भाई चावड़ा ने इस भूमि पर स्थापित मशीनरी एवं सामान 15001 (पन्द्रह हजार एक) रुपये में सिंधिया घराने से खरीद लिया।

उस समय सिंधिया घराने की कवेलू कारखाने की 139 बीघा जमीन पर टाईल्स फेक्ट्री को छोडक़र जंगल हुआ करता था जिसमें यादव समाज के लोग अपने पशुओं को चराने लाया करते थे। देश की आजादी के बाद राजे राजवाड़े खत्म हो गये और उनकी संपत्ति भी शासन की हो गई। यादव समाज ने जहाँ वह पशु चराया करते थे उस जमीन को प्रजापतियों को ईंट के भट्टे लगाने के लिये किराये पर देने लगे इधर लद्दा परिवार ने भी मशीनरी और सामान तो निकाला ही साथ ही कारखाने की भूमि पर भी कब्जा कर लिया। मंन्नी भाई की मृत्यु पश्चात उनके वारिसों ने अवैध तरीके से शासन की इस ताकायमी भूमि को बेचना प्रारंभ कर दिया।

तात्कालीन तहसीलदार की मिलीभगत से कुछ खरीददारों ने नामांतरण भी करवा लिये थे परंतु शहर के कुछ सजग नागरिकों की शिकायत पर उस समय के जिलाधीश श्री शिवशेखर शुक्ला ने नामांतरण को निरस्त किया।

हम दैनिक अग्रिपथ के माध्यम से ऊर्जावान जिलाधीश आशीष सिंह से मांग करते हैं कि कवेलू कारखाने की 139 बीघा ताकायमी भूमि का रिकार्ड तलब करके इस भूमि का सीमांकन करवाये इससे लगी कई सर्वे नंबर की नजूल भूमि है जिस पर वर्तमान में अनेक सफेदपोश लोगों ने कब्जा कर रखा है यदि आशीष सिंह जी इस बेशकीमती भूमि को अतिक्रामकों के कब्जे से मुक्त करा सके तो शायद यह सर्जरी पूरे मध्यप्रदेश के लिये एक नाजीर सिद्ध होगी।

मुक्त हुई भूमि पर कई शासकीय योजनाओं को मूर्त रूप दिया जा सकेगा। एक और सुझाव यह भी है कि शासकीय हो चुके मन्नत गार्डन के पीछे ही क्षिप्रा नदी स्थित है वहाँ पर घाटों का निर्माण कराकर इस शहर को एक नई सौगात दी जा सकती है। चूँकि हरिफाटक सेतु के नीचे ही पार्किंग की पर्याप्त व्यवस्था है इस कारण शहर में आने वाला श्रद्धालु अपने वाहन पार्किंग करके गौघाट के ऐतिहासिक घाट पर स्नान करने पैदल ही त्रिवेणी संग्रहालय वाले रास्ते से महाकालेश्वर मंदिर तक पहुँच सकता है और मन्नत गार्डन की जगह पर खूबसूरत फूड झोन विकसित किया जा सकता है।
जय महाकाल…

-अर्जुनसिंह चंदेल

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