भाजपा का अंतर्कलह सामने आया, पूर्व विधायक का पुतला लटका कर जताया विरोध

बडऩगर, अग्निपथ। विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान का राजनीतिक महकमे में बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। जिसके चलते चुनावी सरगर्मी के पहले चरण में टिकट को लेकर सरगर्मी का वातावरण बना हुआ है।

टिकट के दावेदारों द्वारा दिल्ली-भोपाल की ओर दौड़ लगा कर अपने-अपने आका नेताओं के दर पर भी हाजरी लगाई जा रही है। ऐसे में टिकट को लेकर भाजपा हो या कांग्रेस जमकर घमासान मचा हुआ है। इसी बीच भाजपा में चरम पर पहुंची गुटबाजी के चलते विरोध व अंतर्कलह का नजारा गत दिवस सोशल मीडिया के माध्यम से सामने आया।

जिसमें ग्राम खरसौद कलां के सुलभ शौचालय पर किसी ने पूर्व विधायक मुकेश पण्डया का फोटो लगा पुतला लटका कर विरोध का तरीका अपनाया। इसको लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा का दौर जारी है। मामला पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारीगण के सामने भी पहुंचा है। जिसमे एक जवाबदार पदाधिकारी को आफ द रेकार्ड व आन द रेकार्ड अलग-अलग जवाब देने के चर्चे भी सुनाई दे रहे है। वहीं पूर्व विधायक मुकेश पण्डया का चलायमान फोन कवरेज के बाहर बताता रहा।

जीताऊ नहीं- गुटबाजी दूर करने वाले की दरकार

पुतले की चर्चाओं के बीच भाजपाई राजनीतिक गलियारे में गुटबाजी से दूर निष्ठावान कार्यकर्ताओं के मुंह से सुनाई दे रहा है कि बडऩगर विधानसभा क्षेत्र के लिए भाजपा को जिताऊ नहीं गुटबाजी दूर करने वाले उम्मीदवार की दरकार है। जिसके लिए कथित जिताऊ उम्मीदवार की बजाय गुटबाजी दूर कर सभी को साथ लेकर चलने वाले को उम्मीदवार बनाना चाहिए। जिससे यह सीट पुन: भाजपा की झोली में आ जाए।

एकला चालो रे की तर्ज पर दावेदार

ऐसा भी समय था जब भाजपा में अनुशासन सर्वोपरी था। जिसमें वरिष्ठ नेता जो फैसला कर देते थे वह मानना पड़ता था। किन्तु वर्तमान की अवसर वाद की राजनीति के चलते फैसलो पर छोटा हो या बड़ा अपने मन की न हूई तो सवाल करते दिखाई देते है। भाजपा की बैठक में चुनाव के दृष्टिगत चुनावी पाठ तो यह पढ़ाया जाता है कि अपना उम्मीदवार कमल निशान है। किन्तु दावेदार है कि निशान तो कमल चाहता है परंतु जिताऊ दावेदार सिर्फ अपने को ही बताता है। यह माजरा भी गत दिवस सम्पन्न हुई मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की जन दर्शन यात्रा में देखने को मिला जिसमें कई दावेदारो ने कांग्रेस की तर्ज पर अलग – अलग मंच बनाकर स्वागत के बहाने अपना – अपना शक्ति प्रदर्शन दिखाया। जबकि भाजपा की परम्परा कही जाऐ तो पहले ऐसा नही होता था।

अपने – अपने तर्क

टिकट की चाह रखने को लेकर भाजपाइयों के अपने-अपने तर्क है, जो चर्चा में सुनाई देते है। जिसमें यह भी बात सामने आती है कि भाजपा ने जिले में जातिगत समीकरण को टिकट का आधार बना रखा है। जिसके चलते बार-बार उन्ही के नाम पर विचार होता है। जबकि अन्य जाति से भी मजबूत दावेदार हैं जो पार्टी का काम तो करते है किन्तु इस समीकरण के चलते टिकट पाने से वंचित रह जाते है। विगत 10 चुनावों पर नजर डालें तो 8 बार भाजपा ने ब्राह्मण को उम्मीदवार बनाया है वहीं दो बार पिछडे को मौका दिया है।

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