भाजपा ने मध्यप्रदेश में किसी संत को प्रत्याशी नहीं बनाया, इसलिए निर्दलीय चुनाव लड़ूंगा

अवधेशपुरी महाराज ने उज्जैन दक्षिण से चुनाव लडऩे का घोषणा की, 28 को नामांकन भरेंगे

उज्जैन, अग्निपथ। भाजपा ने मप्र में किसी भी संत को विधानसभा का टिकट नहीं दिया है। जबकि प्रधानमंत्री और संघ चालक मोहन भागवत को पत्र लिखकर संतों को विधानसभा का टिकट देने का आग्रह किया था। परन्तु भाजाप ने संतों के महत्व को नकार दिया है। इसलिए वे निर्दलीय रूप से 28 अक्टूबर को नामांकन भरेंगे। उन्होंने कहा कि उज्जैन उत्तर से भी एक संत विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। कौन लड़ेगा। इस विषय पर चर्चा चल रही है। जल्द ही उनका नाम घोषित कर दिया जाएगा। यह बात स्वस्तिक पीठ के पीठाधीश्वर अवधेशपुरी महाराज ने पत्रकारवार्ता में कही।

उन्होंने कहा कि 16 सितंबर 23 को उन्होंने संघ प्रमुख मोहन भागवत एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर देश की राजनीति में योग्य एवं सक्रिय सन्तों की भागीदारी के लिए पत्र लिखा था। इसमें राषट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर समाज के लिए जीने वाले परोपकारी संतों को राजनीति की मूलधारा से जोडऩा चाहिए। इस विचार पर देशभर में चर्चा भी हुई थी। किन्तु घोर आश्चर्य है कि इसके उपरान्त भी राजस्थान में तो भाजपा द्वारा कुछ संतों को चुनाव लड़ाया जा रहा है किन्तु पूरे मध्यप्रदेश में धार्मिक पार्टी द्वारा एक भी सन्त पर भरोसा नहीं किया गया है।

उन्होंने कहा कि भाजपा द्वारा संतों की इस उपेक्षा को सन्त समाज न केवल सन्तों का अपमान मान रहा है बल्कि इसे सनातन धर्म एवं धर्मनगरी उज्जैन का भी अपमान मान रहा है। उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि भाजपा द्वारा मध्यप्रदेश में रामायण में आग लगाने वाली व रावण का मन्दिर बनवाने वाली को तो टिकिट दिया जाता है किन्तु रामायण पर पीएचडी व हिन्दू मठ मन्दिरों के लिए लडऩे वाले संत को टिकट नहीं दिया जाता है। आखिर क्यों? इस दौरान महामंडलेश्वर स्वामी सुमनानंदजी महाराज, महंत मनीष दास जी महाराज, स्वामी कमलेश ब्रह्मचारी, महंत कृष्णागिरी जी, महन्त दण्डी आश्रम, आचार्य मानस गुरुजी, अखंड ज्योत खेड़ापति करंट हनुमान मंदिर आदि उपस्थित थे।

20 साल से सिंहस्थ में अतिक्रमण क्यों हुआ

संत अवधेशपुरी ने कहा कि भाजपा के 20 वर्षों के शासनकाल में सिंहस्थ क्षेत्र में अतिक्रमण क्यों हुआ? उज्जैन पवित्र नगरी घोषित क्यों नहीं हुई? गौमाता मरने पर मजबूर क्यों है? मां क्षिप्रा मैली क्यों? महाकाल मन्दिर में भक्तों से दर्शन शुल्क क्यों? महाकाल में वीआईपी का स मान व संतों का अपमान क्यों? केवल हिन्दू मठ मन्दिरों का ही सरकारीकरण क्यों? सिंहस्थ व धर्मनगरी के नेतृत्व में संतों की उपेक्षा क्यों?

सप्त सागर एवं 84 महादेव की उपेक्षा क्यों? धार्मिक सरकार द्वारा संतों के लिए एक भी योजना क्यों नहीं? मध्य प्रदेश संस्कृति बोर्ड द्वारा संस्कृत व्याकरण व वेदों की उपेक्षा क्यों? युवाओं एवं महिलाओं के लिये रोजगार उपलब्ध कराने में असफल क्यों? विद्युत मंडल द्वारा किसानों के झूठे पंचनामा बनाना एवं खाद में ब्लैकमेलिंग कर अवैध वसूली क्यों? आम नागरिक मूलभूत सुविधाओं के लिए परेशान क्यों? पत्रकारों एवं वकीलों के लिए सुरक्षा कानून क्यों नहीं?
ऐसे अनेक ज्वलन्त प्रश्नों एवं समस्याओं से संत समाज आहत है इसलिए अब इस धार्मिक नगरी का नेतृत्व करने के किए निर्दलीय लडऩे के लिए मजबूर है।

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