उज्जैन, अग्निपथ। बसंत विहार की एक निजी जमीन का केस पिछले 25 साल से विकास प्राधिकरण लड़ रहा है। इस पर अभी तक लाखों रुपए खर्च हो चुके हैं। आरटीआई से मामले का खुलासा होने के बाद मामले की ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो) को शिकायत हुई है जिस पर जांच शुरू हो गई है।
इंदौर रोड़ के समीप स्थित किसान दिनेश परमार और केंद्रीय कर्मचारी गृह निर्माण सहकारी संस्था की करीब छह बीघा ज़मीन है। करीब 30 साल से संस्था व किसान के बीच स्वामित्व को विवाद चल रहा है। इसी बीच सन 1999 ने उज्जैन विकास प्राधिकरण ने सहकारी संस्था से उक्त जमीन का विकास अनुबंध किया। जिसमें तय हुआ कि संस्था अपने खर्चे पर समस्त विवाद के निराकारण करवाएगी। तत्पश्चात यूडीए जमीन को कालोनी लिए विकसित करेगा।
इसी बीच यूडीए के जि़म्मेदार किसान और संस्था के बीच चल रहे कोर्ट केस में शामिल हो गये और कोर्ट प्रकरण का खर्च यूडीए से करवाना शुरू कर दिया। हाइकोर्ट के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो यहां भी यूडीए के जि़म्मेदार हर पेशी पर लाखों रुपए खर्च कर शामिल होते रहे। इस मामले का सूचना के अधिकार में जानकारी मांगने पर खुलासा हुआ और ईओडब्ल्यू में शिकायत कर की गई।
बता दें कि जमीन किसान परमार की पुश्तैनी है, लेकिन सरकार ने उसे सीलिंग की मानते हुए सहकारी संस्था को अलाट कर दी तो परमार ने केस लगा दिया। मामले में इंदौर हाइकोर्ट की सिंगल बैंच ने उनके हक में फैसला भी दे दिया। इसी बीच 1999 में संस्था से यूडीए ने अनुबंध कर लिया। लेकिन यूडीए के जि़म्मेदार संस्था से कब्जा मिलने से पूर्व ही केस में कूद गए। नतीजतन हाईकोर्ट वकीलों को लाखों रूपए फीस भी दे दी। हालांकि फैसला संस्था के पक्ष में आया, लेकिन किसान परमार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।
परिणाम यूडीए के हक में नही होने पर भी केस में प्रति पेशी करीब पांच लाख रुपए खर्च कर रही है। यूडीए सूत्रों के अनुसार मामले में अब तक एक करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। ईओडब्ल्यू एसपी दिलीप सोनी ने बताया कि आवेदक राहुल कटारिया की शिकायत पर प्रकरण दर्ज किया है। कार्रवाई के लिए प्रकरण को मुख्यालय भेजा गया है।