प्रवग्र्य विधि में अग्नि ज्वाला देख सभी चकित

श्री महाकालेश्वर मंदिर में सौमिक अनुष्ठान : सोम राजा को शकट में बिठाकर याग विहार किया, मंडप में स्वागत कर सोमवल्ली को प्रतिष्ठित गया

उज्जैन, अग्निपथ। श्री महाकाल मंदिर में चल रहे सौमिक अनुष्ठान में रविवार को 2 बार प्रवग्र्य विधि की गई। इस दौरान हवनकुंड से निकली अग्नि ज्वाला को देखकर वहां मौजूद भी चकित रह गये और यज्ञ की महिमा के समक्ष नतमस्तक हो गये।

श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा पूर्व में समय-समय पर उत्तम जलवृष्टि के लिए पर्जन्य अनुष्ठान के आयोजन किये गये हैं। इसी तारतम्य में जन कल्याण हेतु सौमिक सुवृष्टि अग्निष्टोम सोमयाग का आयोजन श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा 04 मई से 09 मई 2024 तक श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रागंण में किया जा रहा है।

सोमयाग के द्वितीय दिवस सोमवल्ली राजा के रूप में उसे आदर सत्कार पूर्वक यज्ञ वेदी में लाकर प्रतिष्ठित किया गया। उनके आतिथ्य में आतिथ्येष्टी नामक इष्टी करके हवी प्रदान की गई। दीक्षित यजमान प्राणेष्टि नामक एक छोटा सा याग किया गया। इस याग मे चरुपाक करके उससे अदिति, और घी से अग्नि, सोम, सूर्यदेवता का होम होने के पश्यात वास्तव मे यज्ञ का प्रारम्भ हुआ।

इस विधि के पूर्व कुश बिछाकर उनके ऊपर वनस्पति सोमवल्ली का ग_ा रखते है। फिर सोम-विक्रेेता सोम के रेशों की परीक्षा करता और साफ करते है। यजमान द्वारा मोल-भाव कर विक्रेता को पारितोषिक देकर सोमवल्ली का क्रय किया जाता है और सोम राजा को शकट अर्थात बैलगाड़ी पर पर रखा जाता है व शकट में सोम राजा सारथी के रूप में सवार होते है।

याग विहार की परिक्रमा के बाद प्राचीनवंश नामक याग-गृह में पूर्व द्वार से लेकर आहवनीय नामक अग्निकुण्ड के दक्षिण ओर, एक लकड़ी के पीढ़े पर सोमवल्ली वनस्पति को रखा जाता है। उस समय आतिथ्येष्टि नामक एक छोटा-सा याग किया जाता। अर्थात् राजा सोम मानों गृह में अतिथि हुए हैं। अतएव यथोचित अतिथि-सत्कार करना उचित है।

इसी भाव से वह इष्टि, अर्थात् पूजा लौकिक रीति से सम्पादित की गई । फिर सोम-याग के विघन्कारी असुरों की पराभव-कामना से यजमान तीन दिन तक उपसद नामक एक छोटा-सा यज्ञ करता। उसमे सबेरे और सन्ध्या-समय सोम और विष्णु देवता के नाम पर घी की आहुतियों से होम किया जाता।

बाद में दिव्य प्रवग्र्य विधि को सम्पन्न कराया गया। जो यज्ञ पुरुष को सिद्ध करने की प्रक्रिया एक भाग होता है। सोमयाग के द्वितीय दिवस प्रवग्र्य विधि 02 बार की गई। नित्य तीन दिन यज्ञ की प्रमुख देवता इन्द्र को सोमयज्ञ के प्रधान आहुति सोमरस पान के लिये सुब्रह्यण्याव्हान नाम के विधि से भगवान इन्द्र का आवाहन का किया जायेगा।

सोमयाग में सम्मिलित इन 16 ऋत्विकों के भिन्न भिन्न नाम और काम होते है। जिनके शास्त्र में क्रमश: ब्रह्मा, उद्गाता, अध्वयु, होता, ब्राह्मणशंसी, प्रस्तोता, मैत्रावरुण, प्रतिप्रस्थाता, पोता, प्रतिहर्ता, अच्छावाक, नेष्टा, आग्नीघ्र, सुब्रह्मण्य, प्रावस्तुत और उन्नेता नाम बताये गए है। सोमयाग में द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ दिवस प्रतिदिन दो-दो प्रवग्र्य होगे। सम्पूर्ण याग के दौरान कुल 6 प्रवर्ग किये जायेगे। सोम याग के तृतीय दिवस प्रात: 10 से 11 के मध्य व सायं 5 से 7 के मध्य प्रवग्र्य विधि संपन्न की जायेगी।

इस दौरान अखाड़ा परिषद अध्यक्ष रविन्द्र पुरी महाराज, स्वामी नृसिंह विजयेन्द्र सरस्वती, पीर रामनाथ महाराज गादिपति भर्तृहरि गुफा मंदिर, महंत सुरेश्वरानंद पुरी निरंजनी अखाड़ा, संत सुमन भाई मौनी बाबा आश्रम, संत भगवान बापू, महंत आनंदजीवन दास महाराज स्वामीनारायण आश्रम, त्रिवेणी शनि मंदिर उज्जैन, अक्षय कृषि परिवार के गजानन डागे सम्मिलित हुए।

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