बैंकों का निजीकरण: संघ के स्वदेशी समर्थकों को नहीं भा रहा है सरकार का ये कदम, पूछा- बैंकिंग विलय से क्या लाभ मिला

नई दिल्ली। पहले बैंकों का संचालन निजी हाथों में था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुनाफा कमाकर अपने सेठों की तिजोरी भरने वाले बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी क्या इंदिरा गांधी के इस कदम को पलटने जा रहे हैं। केन्द्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को फिर निजी हाथों में देने के रास्ते पर बढ़ रही है। इसे लेकर बैंकों के कर्मचारी हड़ताल पर हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सरकार का काम व्यवसाय करना नहीं है। यह कहकर उन्होंने बैंकों के निजीकरण जैसे कदम की मजबूत वकालत की है, वहीं प्रधानमंत्री के इस निर्णय पर स्वदेशी जागरण मंच के अश्विनी महाजन ही सवाल उठा रहे हैं।
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बैंकों का निजीकरण ठीक नहीं, सरकार पुनर्विचार करे
बैंकों के निजीकरण को कठघरे में खड़ा करते हुए रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इस पर सवाल उठाया है। राजन ने सरकार से बैंकों में अपना दखल कम करने और इनके संचालन में पेशेवर प्रबंधन अपनाने की अपील की है। अमर उजाला से विशेष बातचीत में स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन भी सरकार के इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं। महाजन कहते हैं कि यह किसी भी तरह से अच्छा नहीं है। किसी को भी चाहे वह निजी व्यावसायिक घराना हो या विदेशी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, उनके हाथों में सौंपना ठीक नहीं है। निजी हाथों में जाने से बैंकों का एकाधिकार बढ़ेगा। उपभोक्ताओं की परेशानी बढ़ेगी और बैंक राष्ट्रीयकरण के पहले वाली स्थिति की तरफ बढ़ जाएंगे। महाजन का कहना है कि केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह निजीकरण की बजाय बैंकों में अपना दखल कम करे और प्रोफेशनल प्रबंधन को बढ़ावा दे।

ऑल इंडिया बैंक इम्पलाइज एसोसिएशन के अश्विनी राणा कहते हैं कि यह अजीब मजाक चल रहा है। एक सरकार महिला बैंक खोलने की पहल करती है, दूसरी सरकार उसे बंद करा देती है। केन्द्र सरकार को बताना चाहिए कि जब सार्वजनिक बैंकों का निजीकरण होगा तो बैंकों की सामाजिक जिम्मेदारी को कौन निभाएगा? राणा स्वदेशी जागरण मंच के अश्विनी महाजन की राय से इत्तेफाक रखते हैं। वह साफ कहते हैं कि अब सरकार सहकारी बैंकों (कोऑपरेटिव) के डूबने के मामले सामने आने पर उन्हें रिजर्व बैंक के दायरे में ला रही है। रिजर्व बैंक को भी बताना चाहिए कि वह अब तक क्यों सो रहा था? जब बैंक अपनी तमाम शाखाएं खोल रहे थे, तो रिजर्व बैंक की चेतना कहां थी? अश्विनी राणा का कहना है कि सरकार को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए।

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