मोबाइल के कारण दरकते सामाजिक रिश्ते

गत सप्ताह भोलेनाथ की इस नगरी से आयी दो खबरों ने कुछ यक्ष प्रश्न इस विकासशील और आधुनिक जीवन शैली के सामने छोड़ दिये हैं।

पहली खबर में 13 वर्षों से लिव इन रिलेशनशिप में रह रही तलाकशुदा महिला नर्स के ऊपर उसके साथ जीने-मरने की कसम खाने वाले, जन्मों-जन्मों तक साथ निभाने की दुहाई देने वाले व्यक्ति ने ही तेजाब डाल दिया जिसकी बीते सप्ताह मौत हो गई। मृत महिला एवं आरोपी पुरुष दोनों ही निम्न मध्यमवर्गीय पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते थे। दोनों के बीच विवाद का कारण ‘मोबाइल’ बना।

महिला के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले पुरुष को शंका थी कि महिला देर रात तक मोबाइल पर बात और चैट किया करती थी और फोन को हमेशा लॉक रखती थी जिसके कारण वो देख नहीं पाता था कि वह किससे बात करती थी और आये दिन होने वाले इसी विवाद के कारण उसने तेजाब डाल दिया जिससे उसकी मृत्यु हो गई।

दूसरी अजीबोगरीब घटना सोमवार को समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई जिसके अनुसार श्रमिक बस्ती शांतिनगर में रहने वाली महिला की दोस्ती फेसबुक के माध्यम से दिल्ली में मिस्त्री का काम करने वाले विकास कुमार नामक युवक से हो गई।

शांतिनगर निवासी विवाहिता महिला का उस अनजान युवक से प्रेम परवान चढ़ा और अपने प्रेमी से मुलाकात की चाहत ने विकास को उज्जैन बुलवा लिया चूँकि फेसबुक पर पता पूरा नहीं था इस कारण प्रोफाइल में लगी फोटो के आधार पर दिल्ली से प्रेमिका से मिलने आये विकास ने फोटो दिखा कर शांतिनगर में महिला की तलाश शुरू की।

दुर्भाग्यवश वह महिला के घर पहुँचकर उसके पति से ही महिला के बारे में पूछने लगा इस पर पति ने जमकर उसकी पिटाई लगाई और थाने ले जाकर जमा करा दिया। शिकायत के अभाव में पुलिस ने उसे प्रतिबंधात्मक धारा लगाकर न्यायालय भेजा जहाँ से विकास बाबू को कृष्ण जन्मस्थली भेज दिया गया है जहाँ की वह हवा खा रहे हैं। मामला निम्न आय वर्ग का और कारण वही ‘मोबाइल’।

संचार की दुनिया में हुई इस मोबाइल क्रांति ने यह बात सच कर दिखाई है कि दुनिया अब हमारी मु_ी में है परंतु हमारी संस्कृति और सामाजिक ताने-बाने को भी इसने तार-तार कर दिया है। बंद चारदीवारी के भीतर पल रहे रिश्तों को भी इसने बेगाना कर दिया है। सोश्यल मीडिया के इस रोग से कोई नहीं बचा है दुनिया में बचपन से लगाकर बुढ़ापा, सभी इसमें ही लगे हुए हैं। इस कलमुँहे मोबाइल के कारण माँ को अपने बच्चों से बात करने की फुर्सत नहीं है, उनके हाल-चाल जानने का समय नहीं है।

अनेक घरों में पति-पत्नी आपस में बात ना करके मोबाइल में लगे रहते हैं। भाई-बहन का प्यार- दुलार सब इस मोबाइल ने खत्म कर दिया है। जन्मदिन या किसी अन्य अवसरों पर लोगों ने एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप से बधाई देना तो दूर, फोन पर बात कर देने की जगह वाट्सएप, फेसबुक के माध्यम से बधाइयाँ प्रेषित की जाने लगी है।

शादी-ब्याह के आमंत्रण पहले जिसके यहाँ शादी होती थी वह रिश्तेदार-दोस्तों के यहाँ व्यक्तिगत रूप से जाकर आमंत्रण कार्ड देकर दोनों हाथ जोडक़र आमंत्रित करता था। परंतु अब यह सब पिछड़े लोगों और पुराने जमाने की बात हो गई। अब तो शादी के कार्ड वाट्सएप पर डाले जाने लगे हैं।

शादी-ब्याह तो ठीक है परंतु अब तो किसी के यहाँ मौत हो जाने पर उसके यहाँ जाकर सांत्वना देना भी बीते कल की बात हो चली है। अब तो शोक संवेदना और श्रद्धांजलि के लिये भी वाट्सएप, फेसबुक का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है। संवाद तो है पर प्रत्यक्ष ना होकर मोबाइल के माध्यम से होकर रह गया है।

भारत में पति-पत्नी के पवित्र रिश्तों के बीच भी यह मोबाइल खलनायक बनकर उभरा है। जिसने कई परिवारों की सुख- शांति में आग लगा दी है। देश में बढ़ रहे तलाक के पीछे भी प्रमुख कारण मोबाइल ही है। समाज के टीनएजर्स के लिये तो यह बहुत खतरनाक है। तमाम प्रतिबंधों के बावजूद भी यह मोबाइल धड़ल्ले से अश्लीलता परोस रहे हैं जिस कारण टीन एजर्स में मानसिक विकृति आना स्वाभाविक है।

देशभर में बढ़ रही बलात्कार और छेड़छाड़ की घटनाओं की जड़ में यह मोबाइल ही है। संस्कृति और समाज में विकृति का एक कारण शहरों में पनप रही कैफे संस्कृति भी है जहाँ प्रेमी जोड़ों से 10 रुपये की कॉफी के 100 रुपये वसूल कर उन्हें एकांत और अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराया जाता है।

पहले मोबाइल का यह रोग उच्च वर्ग में ही था परंतु अब 138 करोड़ की जनसंख्या के भारत में (सेल्यूलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार) मोबाइल फोन उपयोग करने वालों की संख्या 97.54 करोड़ है। यह आँकड़ा जनवरी 2018 का है, अब तो यह संख्या 110 करोड़ पार कर चुकी होगी। देश में 1१0 करोड़ में से अधिकतर के पास एंड्रायड फोन है। सबसे ज्यादा मोबाइल ग्राहक 8.49 करोड़ उत्तरप्रदेश और 8.15 करोड़ ग्राहक महाराष्ट्र में हैं।

मोबाइल की इस बीमारी ने आदमी की व्यक्तिगत जिंदगी का सुख-चैन तो छीना ही है। यह समस्या उच्च वर्ग से होती हुई निम्न वर्ग तक भी पहुँच गई है जो भविष्य में कोरोना से भी घातक साबित होने वाली है।

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