यह कैसी आत्मनिर्भरता

दुनिया में चीन के बाद 138 करोड़ की भारी भरकम जनसंख्या वाले मेरे भारत का आजादी के 73 वर्षों बाद भी दलहन और तिलहन के मामलों में आज भी आत्मनिर्भर नहीं होना सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण है। देशवासियों को यह जानकर आश्चर्य होगा हमारा देश खाद्य तेलों के आयात के मामले में दुनिया में नंबर एक है। प्रतिवर्ष हमारे देश को खाद्य तेल दूसरे देशों के मँगाने पर 70000 करोड़ रुपये खर्च करना पड़ता है।

देश में चीनी की तरह तिलहन (वनस्पति तेल) की खपत प्रतिवर्ष ढ़ाई करोड़ टन है और उत्पादन मात्र एक करोड़ टन ही है अर्थात हमारे देश की प्रतिवर्ष खपत का हम केवल 40 प्रतिशत ही उत्पादन कर पाते हैं शेष 60 प्रतिशत खाने वाला तेल हमें दूसरे देशों से मंगाना पड़ता है। मँगाये गये डेढ़ करोड़ टन खाद्य तेल में से 90 लाख टन से अधिक पाम तेल और 25 लाख टन सूरजमुखी का होता है। भारत को पाम तेल इंडोनेशिया से और सूरजमुखी का तेल अर्जेंटीना, ब्राजील, यूक्रेन और रूस से खरीदना पड़ता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2001-2002 में खाद्य तेलों का आयात हमारी खपत का 44 प्रतिशत था वह अब बढ़ते-बढ़ते 60 प्रतिशत तक पहुँच गया है।

इसी तरह दलहन (वह फसल जिसकी दाल बनाई जाती है, जैसे अरहर, मूँग, मसूर, मटर, उड़द) के मामले में भी हमें विश्व के सबसे बड़े उत्पादक और उपयोग में प्रथम स्थान पर रहने के बावजूद भी हम देश की दलहन की माँग को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। हमारे देश में हम भारतीय अपने शरीर के लिए आवश्यक प्रोटीन के लिये दालों का उपयोग करते हैं।

प्रमुख रूप से सोयाबीन में 40 प्रतिशत प्रोटीन और तेल में 20 प्रतिशत प्रोटीन होता है। भारत को प्रतिवर्ष 240 लाख टन दालों की आवश्यकता होती है परंतु उत्पादन हम मात्र 220 लाख टन का ही कर पाते हैं हमें हमारी खपत का लगभग 10 प्रतिशत दूसरे देशों से मंगवाना पड़ता है। फ्राँस में 1963 में स्थापित ग्लोबल पल्स कान्फेडेरेशन (जी.पी.सी.) का मुख्यालय दुबई में है। यह संस्था दालों का उत्पादन, उपभोग जागरूकता, व्यापार को बढ़ावा देने के लिये कार्य करती है और यह एक और लाभकारी संगठन है।

वर्तमान में इसके सदस्य 50 से अधिक देश दालों के व्यापार में लगे हैं। इस संस्था की रिपोर्ट अनुसार दुनिया के कुछ ही देश हैं जो जरूरत से ज्यादा खाद्य तेल और अन्न पैदा करते हैं। यह कुछ देश इतना उत्पादन कर लेते हैं कि जितना पूरे यूरोप के देश भी नहीं कर पाते हैं। दुनिया के चार बड़े पैदावार करने वाले देशों में अमेरिका, चीन, भारत और ब्राजील हैं यह चारों देश धरती के बड़े भू-भाग पर खेती करते हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका वर्तमान में दुनिया के फूड मार्केट (खाद्य बाजार) में सुपर पावर होकर नंबर 1 पर है। अमेरिका के कृषि जगत में मजदूर या श्रम शक्ति कम होने के बावजूद भी सिरमौर है। अमेरिका की जीडीपी में कृषि का योगदान मात्र 1 प्रतिशत होने के बावजूद और वहाँ की आबादी का मात्र 1.3 प्रतिशत नागरिक ही कृषि उत्पादन में होने के बावजूद अत्याधुनिक मशीनों की बदौलत अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और अनाज निर्यातक देश है।

अमेरिका में टेक्सास, इलिनोस, कैलिफोर्निया सबसे ज्यादा कृषि उपज की पैदावार करते हैं। जबकि हमारे देश की 138 करोड़ की जनसंख्या में से 70 प्रतिशत लोग कृषि पर आधारित होने के बावजूद हमारा नंबर विश्व में तीसरा है। भारत में सोयाबीन और चना उत्पादन में हमारा मध्यप्रदेश प्रथम स्थान पर है जबकि महाराष्ट्र अरहर दाल और उत्तरप्रदेश मसूर उत्पादन में प्रथम है। (सोयाबीन दलहन और तिलहन दोनों में आता है।) दुनिया में सोयाबीन का सर्वाधिक उत्पादन ब्राजील और यू.एस.ए. में होता है।

आजादी के 73 सालों बाद देश पर राज करने वाले राजनैतिक दल इस बारे में विचार क्यों नहीं करते हैं कि दलहन और तिलहन में देश आत्मनिर्भर बने ताकि प्रतिवर्ष आयात में की जाने वाली भारतीय मुद्रा को बचाया जा सके। पंत प्रधान मोदी जी जिस आत्मनिर्भरता की बात कर रहे हें उसमें सबसे पहले कृषि क्षेत्र को ही प्राथमिकता देनी होगी तभी आत्मनिर्भरता शब्द सार्थक होगा।
जय किसान…।

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